क्या होगा जब राजनैतिक पार्टियों को कार्यकर्ता नहीं मिल रहे होंगे और नेताओं को अनुयायी नहीं पूछ रहे होंगे ?क्या पेड वर्कर की अवधारणा बलिष्ठ होगी और भारत कि कुछ एजेंसीज राजनितिक पार्टियों के लिए कुछ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता ठेके पर उपलब्ध कराएगी जो चुनावी मौसम में कमाई करेगें और ये भी क्या रोज़गार का एक जरिया होगा ?
Saturday, 20 September 2014
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लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?
“लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?”-- संदीप तोमर (हिंदी दिवस स्पेशल ) हिंदी दिवस आते ही बधाइयाँ रेवड़ियों की तरह बंटने लगती हैं। सोशल ...
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जब मुझसे कोई पूछता है — “ आप कहानी कैसे लिखते हैं ?” तो मैं अकसर मुस्कुरा देता हूँ। क्योंकि कहानी लिखना मेरे लिए कि...
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पुस्तक - समीक्षा पुस्तक - आवें की आग लेखक - अखिलेश द्विवेदी अकेला प्रकाशक - मित्तल बुक एजेंसी पृष्ठ - १७६ मूल्य - १९० रूपये समीक...
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