Wednesday, 7 April 2021

“ गाथाओं का एनसाइक्लोपीडिया लेखिका डॉ. निधि”

 

                        पुस्तक समीक्षा

पुस्तक अपेक्षाओं के बियाबान (कहानी संग्रह) 

लेखक – डॉ निधि अग्रवाल

प्रकाशक- बोधि प्रकाशन

प्रकाशन वर्ष: २०२०

मूल्य:  २५० /.

 
(
समीक्षक-संदीप तोमर)

 

“गाथा या एनसाइक्लोपीडिया लेखिका डॉ. निधि

लेखिका डॉ. निधि नए जमाने की विशिष्ट कथाकार हैं अपेक्षाओं के बियाबान डॉ. निधि अग्रवाल के सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह का नाम है इस अद्भुत संकलन को पढने के पश्चात् इसकी समीक्षा लिखने से पूर्व मेरे मस्तिष्क में अजीब सी हलचल मचती रही। कहानियों पर चर्चा करने से पहले डॉ. निधि के बारे में पड़ताल करने की जिज्ञासा हुई। उनके लेखन में विषय और शिल्प दोनों ही में नयापन है। रजनी गुप्त उनके विषय में लिखती हैं-“डाक्टर निधि अग्रवाल की कहानियां पढ़ते हुए प्रतीत होता है- परंपरागत मध्यवर्गीय परिवारों के अंतर्द्वंद्व‌ और आसपास जिये जीवन जगत की तकलीफों को संवेदनशीलता की महीन परतों से बुना गया है जिन्हें पढ़ते हुए हमें संक्रांति दौर में बदलते संबंधों की जटिलता का अहसास होता है। नयी पीढ़ी के कलमकारों में निधि अग्रवाल के पास अच्छी भाषा है और संदर्भ भी नये समय की नब्ज़ पकड़ पाते है। एक सुझाव कि इन्हें अभी बहुत सुदूर आकाश तलाशने के लिए कहन के अपने अंदाज को विकसित करने की जरूरत है। इनके पास अपनी सुपरिचित ज़मीन और अपना आकाश है जिसे भेदकर उन्हें नयी जमीं खोजना होगा जहां एक नई इबारत लिखने के लिए नये कथ्य में कहन के नये अंदाज और संवेदनशीलता की चीरफाड़ करना होगा, संवेदना के उत्स तक पहुंच कर सामाजिक-आर्थिक व व्यवस्था की विडंबनाओं को चीन्हते हुए खुरदुरे यथार्थ तक पहुंचना होगा, जहां वे नये नजरिए से सच का नया झरोखा निधड़ता से खोल सकेंगी, मेरी शुभकामनाएं कि आगामी समय में वे पूरी तटस्थता व संलग्नता से नायाब उपन्यास रच पाएं।“ रजनी गुप्त के शब्दो से कुछ उधार लूँ तो कहना होगा कि निधि द्वारा चुने गए अधिकांश विषय और कथानक उपन्यास की जमीन लिए हैं, जिन्हें कहानियों में पिरोने का प्रयास किया गया है। हाँ, इतना अवश्य कहना होगा कि उनके पात्र भी उनकी ही तरह संवेदनशीलता से औतप्रोत हैं,बक़ौल  दोआबा पत्रिका के संपादक जाबिर हुसैन- “निधि अग्रवाल की कहानियों में एक नए प्रकार की रचनात्मकता का संचार होता है। उनकी कहानियों के पात्र अपनी संवेदनशीलता के कारण हमारे मन के हर कोने में अपनी जगह लंबे समय तक बनाए रखते हैं। एक सफल रचनाकार की सारी विशेषताएँ इनकी कहानियों में मौजूद हैं।

अपने समय की शिनाख्त करती इस संकलन की कहानियाँ अद्भुत हैं डॉ. निधि हिन्दी के साहित्यजगत में बहुत ही कम समय में एक विशिष्ट स्थान बनाने वाली पहली कहानीकार हैं अगर मैं खुद से ही कुछ शब्द उधार लेकर कहूँ तो कहना पड़ेगा कि “उपन्यास के फ्लेवर कि ये कहानियां एकदम अलहदा हैं।“ डॉ. निधि की कहानियां न तो कलावादी शिल्पकारी से निर्मित होती हैं और न ही कथ्य की सपाट प्रस्तुति से सधी हुई संप्रेषणीय भाषा और बेहद कसे हुए महीन शिल्प के सहारे वह विषय के इर्द-गिर्द एक ऐसा ताना-बाना रचती हैं जो पाठक को न केवल अंतिम पन्ने तक बाँधे रखता है बल्कि उनके साथ अपने समय और समाज की यात्रा कराते हुए उस पूरी विडंबना से रुबरु कराता है। कहा जा सकता है कि अपने समय पर लेखिका की गहरी पकड है, वे परिस्थितियाँ जिन्होंने डॉ. निधिसे ये कहानियाँ लिखवाई हैं, कहीं अधिक सशक्त रहीं हैं। अपने चिकित्सकीय कर्म के चलते उनका वास्ता ज़िंदगी से जूझते पात्रों से अक्सर होता है, लेखिका की पैनी और महीन नजर उन परिस्तिथियों से कथानक पकड़ती हैं और उन पर कलम चलाकर पात्रों को कालजयी बना देती हैं

बोधि प्रकाशन” द्वारा प्रकाशित इस कहानी संग्रह अपेक्षाओ के बियाबानमें संकलित छोटी-बड़ी कुल बारह कहानियों में लेखिका अपने समय के विभिन्न आयामों के साथ उपस्थित हैं। इन कहानियों में से अधिकांश में प्रेम की अलग-अलग परतों को प्रस्तुत किया गया है, पाठक इन कहानियों में अपने समय के प्रेम के दर्द को साफ-साफ देख और महसूस कर सकते हैं। लेखिका  और कहानियों के पात्रों का केन्द्रीय भाव भी शायद यही है। इन कहानियों की एक विशेषता ये है कि यहाँ वास्तविक चरित्र कहानी के पात्र बन जाते हैं और उसे पढते हुए आपको लगेगा ही नहीं कि कहानी से बाहर की कोई चीज़ है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये पात्र आपके आस-पास ही हैं और आप उनसे रोज रूबरू होते हैं।

परजीवी, फैंटम लिंब, तितली और तिलचट्टा कुछ ऐसे शीर्षक हैं जो कुछ साधारण से अतिसाधरण के रूप में कहानियों पर एक अलग दृष्टि डालती हैं, विशिष्ट शैली में मनोविज्ञान का भरपूर इस्तेमाल और चिंतन के सकारत्मक सामंजस्य के साथ लेखिका अपने विज्ञान की जानकार होने का भी भरपूर इस्तेमाल करती हैं। ये कहानियां केवल  प्रश्न ही नहीं  बुनती, वरन पाठको के बीच  समाधान भी उपस्थित करती हैं | लेखिका विचारों में चेतना के अंकुर बोने का ऐसा कार्य करती है कि पाठक आगे पढ़ना भी चाहता है और कुछ कुछ जगहों पर थोड़ा ठहरकर स्वयं चिंतन को आतुर हो उठता है। संग्रह की पहली कहानी को पत्र शैली में लिखा गया है, कहानी में पत्र-लेखन कोई नूतन प्रयोग नहीं है लेकिन यहाँ यह प्रयोग कथानक और कथ्य दोनों की ही डिमांड के हिसाब से किया गया है| इंसान बिना अपेक्षाओं  के नहीं जी पाता, ये अपेक्षाएं ही उसके लिए बियाबान हो जाती हैं, जिनमें इंसान कितनी ही बार निरीह जीवन जीने को अभिशप्त होता है, आवश्यकता इस बात की है कि हमारे जीवन में पात्र “दादा” स्थायी चरित्र की भांति रहें। हमारी जीवन शैली में संवाद के लिए स्थान निश्चित होना अवश्यंभावी है, संवाद से बेहतरीन चिकित्सा भला दूसरी कोई हो सकती है?यमुना बैंक की मेट्रो” और “मोहर” देखने में हल्की-फुल्की  कहानियाँ अवश्य हैं लेकिन इनका फ़लक बड़ा है, ये कहानियाँ भी हमें बरबस सोचने को विवश करती हैं।

“हरसिंगार जानता है उत्तर” एक लंबी कहानी है, जिसमें वर्चुअल वर्ल्ड को कथानक के साथ बढ़िया तरीके से जोड़ा है, कहानी पढ़कर समझ आता है कि मानवीय संवेदनाओं से उपजे प्रश्नों के उत्तर भी स्वतः ही मिल सकते हैं, बस उन्हें खोजने भर की दृष्टि चाहिए। कितनी ही बार अजनबी भी हमारे अति प्रिय हो जाते हैं, तब उनका दर्द हमारा साझा दर्द हो जाता है। “आईना झूठ नहीं बोलता” एक ऐसी युवती कि व्यथा-कथा है जिसके सारे सपने एसिड अटैक के चलते  तार-तार हो गए हैं, जिसके जख्मों को बार-बार कुरेदा जाता है, विवाह करने वाला पुरुष भी उसे छलता है, संवेदनाओ की आड़ में खुद को सेलेब्रिटी बना वह उसकी भावनाओ की परवाह तक नहीं करता, उक्त कहानी में लेखिका बनी-बनाई लीक को न अपना कहानी को अलग ही मोड की ओर ले जाती हैं, जहां समाज के प्रति, असन्वेदनशीलता के प्रति नायिका का विद्रोह अपनी कलम से लिख लेखिका समाज से अपेक्षाओं पर सोचने की सलाह देती हैं।

फलक तक चल साथ मेरे” कहानी के माध्यम से लेखिका नारी मन के सपनों का प्रतिबिम्बन करती हैं, नायिका पर होते जुल्म की पूरी दास्तान पाठक को एक अलग फलक से रूबरू कराती है, लेखिका इस कहानी को लिखते हुए किस उलझन में रही यह कहानी के अंत में उजागर होता है, नायिका द्वारा आत्महत्या का कदम उठाना समाज और लेखिका दोनों की हतासा है, पाठक स्वयं को एक बारगी ठगा सा महसूस करता अवश्य है लेकिन फिर तटस्थ होकर रह जाता है|

“दंडनिर्धारण” एक क्लासिक स्टोरी  है जिसमें लेखिका ने गज़ब की फंटेसी का इस्तेमाल किया है, एक पल को मैं नास्तिक धर्म को तज दूँ तो कहना न होगा कि दो लोकों की कल्पना और पुनर्जन्म के सिद्धांत का गज़ब का प्रत्यारोपन हुआ है इस कहानी में।

“दूसरी पायदान” पर बात न करना पूरे संग्रह के साथ अन्याय होगा। यह कहानी न होकर एक लघु उपन्यास है, जिसमें लेखिका ने नायिका अरुजा के माध्यम से प्रत्येक नारी के जीवन के विभिन्न पायदानों को दर्शाने का प्रयास किया है, दरअसल यह कहानी अरूजा की न होकर हर  पढ़ी-लिखी उस हुनरमंद स्त्री की कहानी है जो परिवार के लिए अपने स्वयं के करियर तक को दांव पर लगा देती है, अपने लिये खुद दूसरा पायदान चुनना उसे अखरता नहीं, मजेदार बात ये कि उसे खुद से भी कोई शिकायत नहीं होतीउसे इस बात की भी परवाह नहीं होती कि कोई उसके त्याग की सराहना करेगा या नहीं? वह समाज का  हर फैसला मौन होकर स्वीकार कर लेती है।

सरसरी तौर पर हमें अरुजा के चारों तरफ एक खुशहाल वातावरण दिखता है, जहां एक प्यार करने वाला पति है, एक संवेदनशील बेटा भी है और तमाम सुख-सुविधाएं हैंलेकिन कहीं अगर कुछ नहीं है तो वह है स्वयं का अस्तित्व’, पति विभोर और अरु के बीच का प्रेम और विश्वास एक बारगी पाठक को आनन्दित जरूर कर सकता है लेकिन कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, अरुजा की टीस पाठक के मस्तिष्क पर चोट करती है और जब उसे एक अन्य पुरुष का स्नेह मिलता है तो वह संशय से भर जाती है, मजेदार बात ये कि वह संशय भी उसके मन की उपज न होकर सामाजिक परिवेश से उत्पन्न संशय है जो एक स्त्री को अन्य पुरुष पर सहज विश्वास करने या उसके स्नेह को स्वीकारने/अस्वीकारने के लिए भी पति कि सहमति/असहमति पर निर्भर होना पड़ता है 

कौस्तुभ कहानी का सबसे अलग किस्म का पात्र है, वह अरुजा को छिपी प्रतिभा को निखारने के लिए प्रेरित करता है। स्नेहमयी स्वभाव (रोमटिसिज़्म से भरपूर भी) का कौस्तुभ उसके हुनर के लिए जिस तरह के निर्णय लेता है उससे पाठक के मन में उसके चरित्र को लेकर संशय उत्पन्न हो सकता है लेकिन यह संशय अधिक देर तक ठहरता नहीं, पाठक उसे पितृसत्तात्मक रवैये से ग्रसित भी मान सकते हैं लेकिन ये हर कलाकार की समस्या है कि वे कला में इतने खो जाते हैं कि समाज उसके दंभी होने का भ्रम पाल लेता है, वह अरु से भावनात्मक सहयोग चाहता है लेकिन उसके मन में अरु को इस्तेमाल करने की मंशा नहीं है, अलबत्ता वह रोमांच के भरपूर पलों की आकांक्षा रखता है, कई बार अरु उसके व्यवहार से आहत भी होती है लेकिन परिस्थिति समझ आने पर वह खुद को संभाल भी लेती है, यह उसके चरित्र का सबल पक्ष भी है साथ ही पति विभोर का अगाध प्रेम और विश्वास भी उसे डिगने नहीं देता, उसके कदम डगमागते जरूर हैं लेकिन वह जल्दी ही संभल भी जाती हैलेखिका के अनुभव इतने गहरे हैं कि वह पाठको को संदेश देती है कि परिवार की गाड़ी चलाने के लिए पति का यह विश्वास संजीवनी की तरह है।  लेखिका का कथन है-“यह तो सत्यापित तथ्य है कि सब दोष नारी के सिर और श्रेय पुरुष के हिस्से लिखे जाते हैं। मैटिल्डा और मैथ्यू के नियम केवल विज्ञान क्षेत्र तक ही सीमित तो नहीं हैं।“ कितने ही दर्शनशास्त्रियों, चित्रकारों, कवियों के नाम के साथ उनके सिद्धांतो को कहानी में प्रयुक्त करना लेखिका के विस्तृत ज्ञान-फ़लक को प्रकट करता है। अरु के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयो पर कलम चलाकर लेखिका अपनी लेखन क्षमता का परिचय देती है, एक उदाहरण देखें- अपने बेटे के जीवन में एक नई आहट सुन अरु एक महत्वपूर्ण निर्णय लेती है, उसके जीवन में भी दूसरे पायदान पर उतर वह कहती है –“सुदृढ़ जड़ों के बिना कोई भी पुष्प प्रस्फुटित नहीं हो सकता। तुम भी तैयार रहना जब कभी अपर्णा पुष्प होना चुने तो तुम जड़ बन जाना।“ कौस्तुभ के जीवन में उसकी बेटी सुजाता के पुनः लौटना भी अरु की सूझबूझ का ही परिणाम है, वह सुजाता के हिस्से के अधिकार उसे सौंप खुद को वहाँ से अलग कर लेती है, यह प्रकरण पुनः लेखिका की सूझबूझ के रूप में ही चिन्हित किया जाना अपेक्षित है। सुवर्णा भी इस कहानी की एक और सशक्त पात्र है, अरु और सुवर्णा दोनों में  काफी हद तक समानता है दोनों के मन-सेतु  अदृश्य तारों से  जुड़े हैं। नारी मन के इन सेतुओं में पाठक भी  स्वतः ही जुड़ जाता है।  

इस कहानी को पाठक जितनी बार पढ़ेगा- इसके हर पात्र में कुछ अलग खुशबू महसूस करेगा, हर बार पढ़ने पर एक नया चरित्र पाठक के सामने उपस्थित होता है। विभोर, कौस्तुभ, सुवर्णा, सुजाता और स्वयं अरु सभी पात्र एक से अधिक चारित्रिक लेयर लिए हैं। जैक्स एकमात्र ऐसा पात्र है जो दूसरी कोई लेयर लिए हुए नहीं है।

निधि संवाद करने की कला में कितनी पारंगत हैं ये कुछ संवादो के माध्यम से समझा जा सकता है,एक माँ का दिल क्या अपनी संतान को कभी जी भर देख पाया है।“समय की सलाई पर नियति सुख-दुःख के फंदे कुछ यूँ चढ़ाती है कि धागा आप कोई भी खींचो, जीवन-अस्तित्व की चादर पूरी ही बिखरती चली जाती है।“; छोड़ा क्षण में जा सकता है। निभाने में उम्र गुज़र जाती है।“;

जीवन एक दुखदायी रंगमंच सरीखा है और नाटक का जो भाग आपको प्रिय हो उसे ही नियति संपादित कर छोटा कर देती है।“ प्रेम पर भी उनके विचार स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं- “प्रेम की यही तो खूबसूरती है। इसकी सुगंध से आह्लादित होने के लिए आपको स्वयं प्रेम में होना भी आवश्यक नहीं।“ कितने ही संवाद हैं जो उनके दार्शनिकता की पुष्टि करते हैं-“किसी के दुखों को बाँटते कब जानते हैं कि हम स्वयं उसके लिए दुख के पर्याय बनते जा रहे हैं।“ ;जो कुछ मन को पसंद आता है, दुर्भाग्य जाने कहाँ से ढूँढता हुआ, द्रुत गति से आ, उसके साथ जुड़ जाता है।“ निधि का बात को कहने का अपना अंदाज है, बहुत ही सरल तरीके से वे गंभीर बात कह जाती हैं- “हर रिश्ते को शिद्दत से निभाते हुए भी 'स्व' को बचाए रखना बेहद ज़रूरी है।“;भावनात्मक निवेश के बक़ाया का हिसाब कैसे होगा? एक और प्रयोग देखें-““इसे तो अब जीवन सूत्र बना लिया है- जिन रिश्तों में दूर से स्नेह महसूस हो, पास जा, उन रिश्तों को शापित नहीं करना चाहिए।“

निधि के कहन के अंदाज में एक कवि-हृदय के भी दर्शन होते हैं,होंठों पर हँसी की किरणें अभी भी अटकी हैं और थकान से आँखें बोझिल। मैं अपलक उसके चेहरे को निहार रही हूँ। उसकी मुँदती पलकें जीवन-संघर्षों की व्यथा कह रही हैं और होंठों पर विद्यमान मृदुल स्मित, अमिट प्रेम की सतत जिजीविषा की!”

 वर्तमान पीढ़ी की महिला रचनाकारों में एक बार अक्सर महसूस की जाती है कि वे नारीवादी लेखन के मोह में पुरुष पात्रों को विलेन की भूमिका में पेश करती हैं निधि इस मिथ को तोड़ते हुए स्त्री के मन की बात कहते हुए पुरुषों पात्र को विलेन नहीं बनाती। पति विभोर पर अरु को कहीं-कहीं गुस्सा जरूर आता है लेकिन वह विभोर के प्रेम के आगे जल्दी काफूर हो जाता है,  कौस्तुभ को भी लेखिका ने विलेन की तरह पेश नहीं किया, वह जो भी है जैसा भी उसका चरित्र है, उसी रूप में पेश किया गया है। स्त्री-पुरुष की तुलना में लेखिका कहीं-कहीं अधिक जज्बाती  हो गयी हैं- उधारण देखें- पुरुष का प्यार भी कितना सतही होता है या शायद सरल होता है। हम स्त्रियाँ ही संभवतः अधिक जटिल हैं, जिसे प्यार करती हैं, उस पीआर सर्वस्व लुटा देती हैं। हर रिश्ते में हम ही अधिक निवेश करती हैं।‘; ....पुरुष यह नहीं समझ सकते। स्नेह भी हम पर अहसान की तरह लादते हैं। ; स्त्री को आप शिद्दत से से बस एक बार अपने प्यार का अहसास करा दीजिये, वह सम्पूर्ण जीवन आपके लिए समर्पित है। ; भगवान ने पुरुषों को झूठ बोलने की काला नहीं दी लेकिन शौक़ दे दिया और उस पीआर हम स्त्रियॉं को झूठ भाँपने के हुनर से नवाज दिया।... स्त्रियॉं में भावनाओं की प्रबलता होती है परंतु पुरुष न चाहते हुए भी विवेक के अधीन होता है। निधि का लेखन देख कोई भी प्रेम पर विश्वास करना सीख सकता है।

लेखिका का चिकित्सा क्षेत्र से होने के चलते कुछ जगह उनके भाषा-प्रयोग पर नजर ठहरती है-यथा, यमुना बैंक की मैट्रो कहानी के कुछ वाक्य- अपने निजी वाहन यहाँ निजी वाहन कहना काफी था, दूसरा प्रयोग देखें-मोबाइल पर चले आए किसी मैसेज.....चले आए को भेजे गए या प्राप्त लिखना ज्यादा उपयुक्त होता। इसी तरह मुझ अट्ठावन साले के विधुर... बिना उम्र लिखे भी वाक्य स्पष्ट है। मोहर कहानी में एक जगह लेखिका लिखती है-चल रही गतिमान ट्रेन... चल रही स्थिर ट्रेन या रुकी हुई गतिमान ट्रेन नहीं होती लिहाजा लेखिका को चल रही और गतिमान दोनों शब्दों का प्रयोग एक साथ नहीं करना चाहिए।

दंड निर्धारण कहानी को आठ पृष्ठों मे समेटा गया है और इन आठ पृष्ठो में आठ अध्याय हैं, उक्त कहानी को अध्यायों में बाटने से बचा जा सकता था, शीर्षक कहानी अपेक्षाओं के बियाबान के पात्रों पर भी और काम किए जाने की आवश्यकता महसूस होती है। दूसरा पायदान में नवजात सूरज शब्द का प्रयोग अजीब लगता है। ऐसे ही एक और चूक लेखिका करती है बेटे अनि को एक जगह कार चलाते हुए लिखा है तो दूसरी जगह बेटे को स्कूल के लिए तैयार करने का प्रसंग भी है।लेखिका से इस तरह की चूक की आशा नहीं की जा सकती।

सभी कहानियों के कथानकों की विविधता, लेखिका के विस्तृत अनुभव, प्रकांड ज्ञान व अत्यंत सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचय देती है। लेखिका निधि अपने खुले नेत्र, संवेदनशील हृदय और सक्रिय कलम से अपनी रचनाओं में स्मरणीयता के साथ-साथ पठनीयता जैसे गुणों को जन्म देकर हिंदी-जगत के सुधी पाठकवृंद को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हैं। भाषा और शिल्प की बात की जाए तो हम पाते हैं कि निधि ने इन कहानियों के लिए किसी विशेष शिल्प को नहीं अपनाया। उनकी कथा कहने की शैली इतनी सरल और सहज है कि उनके पात्र बड़े ही सहज-सरल शब्दों में संवाद करते हैंवे ज्कहीन कहीं व्यंग्यात्मक शब्दावली भी प्रयोग करती हैं, देखें- पाँच मिनट में किसी भी स्त्री को तैयार होने के लिए बोल्न किसी प्रतड्ना से कम नहीं, लेखिका जो भी जैसा भी घटते हुए देखती है, उन घटनाओं से बड़ी आसानी से कथा में बुनती है वाक्य विन्यास एकदम सहज है और संवाद कथा की मांग के हिसाब से ही प्रयुक्त किये गए हैं, कुल मिलाकर कहानियां पठनीय है

“अपेक्षाओं के बियाबान” कहानी संग्रह से साहित्य जगत में लेखिका ने जो एंट्री की है , निश्चित रूप से साहित्य में उनका यह प्रयास मील का पत्थर साबित होगा, निश्चय ही ये कथा संग्रह साहित्य की अनमोल निधि के रूप में याद किया जाएगा 

 

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  1. प्रतिक्रियाओं का स्वागत है

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