मुक्तक
धरती की तो बात क्या फलक तक चिकते हैं यारो
कल गम हो जायेंगे बस्ती में आज दीखते है यारों
कुचलोगे कब तलक यूँ फूलों को पैरों तलेअपने
सियासतों का दौर है अरमान भी बिकते है यारों
“लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?”-- संदीप तोमर (हिंदी दिवस स्पेशल ) हिंदी दिवस आते ही बधाइयाँ रेवड़ियों की तरह बंटने लगती हैं। सोशल ...
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