दुनिया के रंजोगम तक बदल गए फकत
उस चेहरे से अब भी उदासी नहीं जाती.
जज्बा -नवाजी का हुनर बदस्तूर जारी है
फाँकों में भी खाली कोई दिवाली नहीं जाती
“लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?”-- संदीप तोमर (हिंदी दिवस स्पेशल ) हिंदी दिवस आते ही बधाइयाँ रेवड़ियों की तरह बंटने लगती हैं। सोशल ...
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