Friday, 31 October 2025

कहानी लिखना – जीने और कहने के बीच की यात्रा”

 

जब मुझसे कोई पूछता है आप कहानी कैसे लिखते हैं?”

तो मैं अकसर मुस्कुरा देता हूँ। क्योंकि कहानी लिखना मेरे लिए किसी एक विधा का अभ्यास नहीं, बल्कि एक जीवन-प्रक्रिया है। असल में कहानी तब नहीं जन्म लेती जब मैं लिखने बैठता हूँ, बल्कि तब जन्म लेती है जब कोई बात, कोई चेहरा, कोई सिसकारी मेरे भीतर उतर जाती है और वहाँ से कभी जाती नहीं।

कहानी दरअसल सामने नहीं आती। जो सामने आती है, वह कहानी नहीं होती वह तो उसका रंग-रोगन किया हुआ रूप होता है। असली कहानी तो वे मुड़े-तुड़े पन्नों में छिपी रहती है जिन्हें मैं बार-बार रिजेक्ट करता हूँ। वही सच्ची कहानी होती है जहाँ मैंने ठोकर खाई, गिरा, फिर उठा, खुद से झगड़ा किया, और फिर किसी वाक्य में थोड़ी-सी रोशनी पा ली।

लेखन मेरे लिए एक अनवरत गिरने और संभलने की प्रक्रिया है। लेखक जब लिखता है तो वह सिर्फ शब्द नहीं गढ़ता, वह अपने भीतर बार-बार मरता है, और हर बार जी उठता है।
पाठक जो पढ़ता है, वह उस पुनर्जन्म की झलक मात्र है; पर लेखक जानता है कि एक पंक्ति लिखने के पीछे कितनी बार उसने अपने भीतर की चुप्पियों को तोड़ा होगा।

कई बार लगता है क्या लेखक का दर्द, उसकी टीस, उसकी व्यथा से परे कोई संसार होता भी है? शायद नहीं। क्योंकि हर पात्र, हर दृश्य में कहीं--कहीं लेखक अपनी ही छाया खोज रहा होता है।
लेकिन फिर भी कहानी आत्मकथा नहीं होती। वह सिर्फ एक चेहरा नहीं, बल्कि असंख्य चेहरों का समुच्चय होती है। कोई पात्र एक व्यक्ति नहीं होता वह समय का, समाज का, और लेखक की कल्पना का मिला-जुला रूप होता है। कभी हम पात्र को उस रूप में नहीं दिखाते जैसे वह जीवन में था हम उसे वैसा बनाते हैं जैसा उसे होना चाहिए था कभी जीवन में क्रूर पात्र कहानी में नर्म हो जाते हैं, कभी साधारण पात्रों में हम असाधारण करुणा खोज लेते हैं। यह बदलाव, यह चयन ही लेखक की सर्जना है।

कहानीकार का काम सिर्फ विवरण देना नहीं होता ब्योरे तो सिर्फ कहानी में गति लाने का माध्यम हैं। असल काम है बुननाजैसे एक बुनकर अपने करघे पर धागों को जोड़ता है, वैसे ही लेखक स्मृतियों, संवेदनाओं और विरोधाभासों के धागे जोड़ता है। एक सफल लेखक कहानी कहता नहीं है, वह उसे बुनता है नए-नए डिज़ाइन के साथ। इसी को मैं शिल्प कहता हूँ।

अच्छा शिल्पी किसी का रोजनामचा नहीं लिखता; वह साधारण पात्रों को कहानी के भीतर अमरत्व तक ले जाता है।

मेरी कहानियों में जो कुछ भी है वह मेरे अपने जीवन से आया है, पर वह मेरे बारे में नहीं है।
वह उन लोगों के बारे में है, जिन्हें मैंने देखा, सुना, महसूस किया। कभी वह मेरे मोहल्ले की कोई स्त्री रही, जो रोज़ाना खामोशी में दुनिया झेलती थी। कभी कोई शिक्षक, कोई मजदूर, कोई छोटा-सा संवाद।
वे सब मेरे भीतर धीरे-धीरे एक संसार बनाते हैं, और जब वह संसार पूरा हो जाता है मैं लिखने बैठता हूँ।
लिखना तब सहज नहीं होता यह अपने भीतर से बाहर आने की, और बाहर से भीतर लौट जाने की यात्रा होती है।

मैं कहता हूँ कहानी लिखना, जीने और कहने के बीच की एक सतत यात्रा है।

कहानी का जो रूप पाठक तक पहुँचता है, वह दरअसल चहारदीवारी के भीतर किए गए प्लास्टर और रंगीन पेंट के बाद का रूप है।

उससे पहले की जो इमारत थी जो अधूरी थी, टूटी हुई थी वही असली कहानी थी।
कभी-कभी मुझे लगता है जो कहानी मैंने नहीं लिखी, वही मेरी सबसे सच्ची कहानी थी।

और शायद यही लेखन का सौंदर्य है कि वह हमें अपूर्णता में भी पूर्णता खोजने की कला सिखाता है।


सन्दीप तोमर 

6 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति ,अद्भुत लेखनीय सौन्दर्य जो कहानी को पूर्णता प्रदान करता है .

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    1. आपको लेखन पसंद आया उसके लिए आभार

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  2. सुप्रभात!बहुत सुंदर!आपके लेखन में जो बात है वह और कहीं नहीं मिलती।बहुत सार्थक और सटीक विवरण !कहानी को जीना पड़ता है।यह दिल में उतरी किसी घटना का ही चित्रण होता जिसे शब्दों का जामा पहनाकर कागज़ पर उतार दिया जाता है।कहानी के पात्र शब्दों के माध्यम से बोलने लगते हैं।
    बिल्कुल सही कहा आपने कि कहानी लिखना कहने और जीने के बीच की सरल यात्रा है।
    आपसे प्रेरित हूँ।मैं भी कहानी लेखन में आपकी तरह दक्षता प्राप्त करना चाहती हूँ।आज से ही शुरुआत कर लूँगी।
    धन्यवाद ऐसा लेख साझा करने के लिए।

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    1. इंदु जी कोशिश रहती है कि कुछ नयापण दिया जाए पाठकों को...

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