my thoughts: रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी
मुठ्ठी के र...: रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी मुठ्ठी के रेत सी निकलती है जिन्दगी ख्वाबों की आरज़ू में भटका हूँ दर- बदर किस ख्वाहिश में यूँ ...
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लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?
“लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?”-- संदीप तोमर (हिंदी दिवस स्पेशल ) हिंदी दिवस आते ही बधाइयाँ रेवड़ियों की तरह बंटने लगती हैं। सोशल ...
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जब मुझसे कोई पूछता है — “ आप कहानी कैसे लिखते हैं ?” तो मैं अकसर मुस्कुरा देता हूँ। क्योंकि कहानी लिखना मेरे लिए कि...
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पुस्तक - समीक्षा पुस्तक - आवें की आग लेखक - अखिलेश द्विवेदी अकेला प्रकाशक - मित्तल बुक एजेंसी पृष्ठ - १७६ मूल्य - १९० रूपये समीक...
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