Tuesday, 11 October 2011

दुनिया के रंजोगम तक बदल गए फकत - संदीप तोमर


 
दुनिया के रंजोगम तक बदल गए फकत 
उस चेहरे से अब भी उदासी नहीं जाती. 

 जज्बा -नवाजी का हुनर बदस्तूर जारी है 
फाँकों में भी खाली कोई दिवाली नहीं जाती
 
मासूमों को तमाम ख्वाब सताते हैं मगर 
बकरों की सरे आम हलाली नहीं जाती 

 कर्ज में दबा किस कदर जवाँ बेटी का बाप 
बिन दहेज़ मजबूर की डोली नहीं जाती 

 खाना बदोसी में जी रहें है पल-पल मगर 
मुर्ग-मुसल्लम के बिना बोतल खोली नहीं जाती 

 इज्जत की खातिर जीने का बाकी है भरम अब 
जुबाँ किसी तराजू में तोली नहीं जाती 

 मै कितनी ही दफा खोजने निकला उसूल 
औकात अपनी ही यहाँ संभाली नहीं जाती 

 अपने ही पाव से कोई कैसे चले पहरों सहर 
कोमल सी एडियाँ है पर बिन्वाई नहीं जाती 

 किस बात से दुनिया खफां थी "उमंग" 
जान कर भी कुछ बात बताई नहीं जाती.

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