Tuesday 2 June 2015

प्रभु लीला

प्रभु  लीला 

भक्त ने कहा----कुबेर का खजाना पहले सेवक ने ख़त्म किया हुआ था..अब खजाना खाली तो सेवक क्या करे..खजाना ऋणात्मक था.. फिर सेवक ने एकसाल में खजाना भरा..हमने पूछा--कही डैकेती डाले क्या...बोले नहीं--- वो तो पुष्पक विमान के इंधन से आया.. हमने पूछा -वो कैसे तो भक्त ने बताया-- भैया सेवक ने इंधन का दामकमनहीं किया. जनता देती रही खजाना भरता रहा.... हमने कहा -भक्त भाईआपनेहमारे चक्षु खोल दिए..और दो चार चीजो का दाम बढ़ा दीजिये ताकि... फिर ठहरे जड़बुद्धि फिर एक सवाल पूछ बैठे-- ये तो बताइए कि समस्त लोग की यात्रा का व्यय प्रभु कहाँ से लाते है...? तो भक्त नजरे हमें भस्म करने की मुद्रा में थी बोले-- ये जो कोष भरा है उसी से खर्च होता है.. हमने पूछा और आज कल नारद मुनि नहीं दीखते.. बोले अब परभू ही सारे विभाग देखते हैं.. पहले सब लोगो में भ्रस्ताचार था.. अब सब ठीक है...हमें फिर सवाल किया..-और उर्वशी कहाँहै? सुना है कि बड़ी कटीली नचनियां थी.. स्वर्ग में उसे बड़े अदब से देखा जाता था..भक्त हौले से मुस्काए..बोले--- हम आज कल प्रभु ने अपने सभासदो में प्रमुख स्थान दिया है...सम्पूर्ण लोको में अब ज्ञान का विस्तार होगा.. आपके भी...

बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये

  पुस्तक समीक्षा  “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...