Saturday 20 September 2014

क्या होगा

क्या होगा जब राजनैतिक पार्टियों को कार्यकर्ता नहीं मिल रहे होंगे और नेताओं को अनुयायी नहीं पूछ रहे होंगे ?क्या पेड वर्कर की  अवधारणा बलिष्ठ होगी और भारत कि कुछ एजेंसीज राजनितिक पार्टियों के लिए कुछ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता ठेके पर उपलब्ध कराएगी जो चुनावी मौसम में कमाई करेगें और ये भी क्या रोज़गार का एक जरिया होगा ?
मेरे एक अध्यापक साथी ने आज एक विचार रखा कि क्यों न POK कश्मीर और cokको मिला कर एक आज़ाद मुल्क बना दिया जाये? क्योंकि जितना इससे हमें राजस्व नहीं मिलता उससे अधिक तो हमें इसकी रक्षा पर खर्च करना होता है और इससे हमें देश के अन्दर भी आतंकवाद से गुजरना होता है. 
मेरा ऐसा मानना बिलकुल भी नहीं है. अर्थ से इसकी गणना नहीं हो सकती. देश को सीमा का निर्धारण तो तब भी करना होगा . लेकिन जो नदिया हिमालय से निकलती है और जिन्हें देश की संस्कृति और तहजीब कहा जाता है उनका हम कैसे उपयोग कर पाएंगे? भारत कोई ब्रिटेन और स्काटलैंड नहीं हैं जो ऐसे देश का विभाजन हो. और ऐसे तो फिर नार्थ ईस्ट के राज्य और अरुणाचल जैसा विवाद भी सामने होगा. पंजाब के खालीस्थान की मांग को भी देखा है हमने. उड़ीसा भी मांग करेगा. और तमिलनाडु जो भाषा विवाद में हमेशा उलझा रहता है.
ऐसे निर्णय नहीं हो सकता. इसके लिए कुछ अलग से योजना बनानी पड़ेगी, जैसे नेपाल के साथ ..............अभी तो हम तिब्बत को वापिस अपने साथ लाने की सोचते है और इन तीनो हिस्सों को अलग कर दे. नहीं दोस्तों.
एक अत्यंत भयानक वायरस से पीड़ित लोगो कीराय का भी स्वागत है
दिनांकः १४ सितम्बर दिन को अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवसके उपलक्ष में नांगलोई क्षेत्र में साहित्य नभ संस्था की ओर से एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था, आप लोगो के असीम स्नेह से यह कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ जिसके लिए आप सब बधाई के पात्र हैं.आपने असीम प्यार और सहयोग के बिना ये कार्यक्रम पूर्ण होना असंभव था.मैं सभी फेसबुक मित्रो का तहे दिल से सुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने कार्यकर्म में आकर इस कार्यक्रम की शोभा को बढाया.विशेष रूप से राधेश्याम शर्मा जी का शुक्रिया जो श्रोता के रूप में उपस्थित थे, वर्ना तो कवियों के लिए श्रोता खोजना ही सबसे दुरूह कार्य है.
पेश है कार्यक्रम कि कुछ झलकिया-----. मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो साथी कार्यक्रम में सिरकत नहीं कर पाए वो इस पोस्ट के बाद कार्यक्रम में उपस्थिति सा लुत्फ़ उठा पाएंगे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साथी सेवानिवृत प्रवक्ता (व्याख्याता) यस्शवी कवि .कहानीकार पंडित हरनाम शर्मा जी ने की. मुख्य अतिथि (देरी से आने वाले) श्री किशोर श्रीवास्तव जी थे. कार्यक्रम अमुमन समय से शुरू हुआ.(मेरी फिदरत के अनुसार).
मेरे साथी मित्र लघु कथाकार अनिल शूर आजाद जी के किसी कारणवश न आ पाने के कारण मंच सञ्चालन का कार्यभार श्री ललित कुमार मिश्र जी को सौपा गया.
मकेश जी ने अपनी कविता "सिसकता गॉव बिलखती गलियां " से लोगो का मन मोह लिया और खूब तालियां बटोरी.वहीँ राजीव जी ने छोड़ हरकत शैतानो की, बन तू इंसान रे" के माध्यम से युवा पीड़ी को दलदल से बहार रहने का सन्देश दिया.
आलोचना और समीक्षा में महारत रखने वाले संदीप तोमर (मैं स्वं) ने सामाजिक विसंगति को आधार बना कुछ क्षणिकाएं प्रस्तुत की, लधु कथा में महारथ रखने वाले संदीप तोमर ने व्यंग्य शैली कविता पाठ करके पुराने साथियों को आश्चर्य चकित किया -
इस बस्ती का जनाब
अजीब मटियामेट है
छत टपकती कमरों की
क्या आलिशान गेट है
भूखी मरती जनता यहाँ
मुखिया धन्नासेठ है .........
साथ ही गजल में भी उन्होंने हाथ आजमाए------
रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी
मुट्ठी के रेत सी यूँ निकलती है जिन्दगी I
......
......
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कहीं आँखों से आंसूं ही ना छलक जाये "उमंग"
बहाना ही बना दो के कुछ खटकती है जिन्दगी I
मनोज मैथिल की कविता ---- "मेरे पास शब्द नहीं हैं .... क्या तुम मुझे दोगे उधार शब्द "
धारदार हथियार कि तरह पैनापन लिए थी.
अखिलेश द्विवेदी अकेला ने "हे नाथ शक्ति दीजिये" के माध्यम से परमेश्वर का आव्हान किया जिसने अध्यक्ष महोदय का मन मोह लिया.
ललित कुमार मिश्र जी की ने सुनाया---- " गुजर जाता हूँ मैं आज भी उन गलियों से ..... जहा तेरा आना जाना था"
उक्त पंक्ति हर एक रचनाकार को अपने अतीत में ले जाने को बाध्य करती है.
उनकी दूसरी कविता "आ जाओ प्रिये" में वो अनायास ही अपनी प्रेयसी का आह्वान करते हैं .जो निश्चित ही रचना कर्म का एक अभिन्न हिस्सा है.
शशि श्रीवास्तव ने "मेरे दो मन है" काश मेरे घर में होती एक अदद बेटी " नामक रचनाये सुनाई. पहली बार उसके मुख से कविता सुनकर अच्छा लगा.
एक और कवयित्री भावना ने " आज मैं बहुत उदास हूँ " कविता के माध्यम से लोगो कि रही सही उदासी को भी दूर किया.
संजय कुमार कश्यप ने जिस प्रकार मंच संचालक के बिना आग्रह के मंच पर " माँ "और "पिता " विषय पर काव्य पाठ किया वो बेहद प्रसंशनीय था. असल में पता चला कि कवि में अगर उर्जा है तो बस मंच काफी है. कविता के उद्गारों के लिए समय का क्यों इंतज़ार किया जाये. उनकी कविता "चाँद कि चांदनी गर मुझे मिल जाये" भी काफी अच्छी रचना रही.
किशोर श्रीवास्तव ने दो गीत सुनाये ----
"उसकी पल पल की ख़बरों से
रूबरू हो जाती है सारी दुनिया "
और
"नहीं अलगाव की हम बात किया करते है
हम तो हर सख्स से खुल के मिला करते है"
गीत बेहद लाजबाब थे.
अध्यक्ष महोदय ने भी तो आधुनिक युग की कविता सुनाकर सभी कनिष्ठ साथियों को कविता लिखने के राज़ बताये. और उनके अध्यक्षीय भाषण से सभी को प्रेरणा मिली. उन्होंने सभी साहित्य नभ परिवार के सदस्यों को आगामी कार्यक्रमों की रुपरेखा के लिए भी प्रेरित किया.
मैं संदीप तोमर साहित्य नभ परिवार कीओर से कार्यक्रम के सिरकत करने वाले साथियों और स्रोताओं और फेसबुक के साथियों का एक बार फिर से अभिनन्दन और धन्यवाद् प्रेषित करता हूँ.

बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये

  पुस्तक समीक्षा  “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...