जीवन की हर घटना साहित्य नहीं होती
(सन्दीप तोमर आधुनिक समय में
साहित्य का उदयीमान नाम है, वे पिछले 22 वर्षो से सतत लेखन कर रहे हैं। उनके नाम दर्जनाधिक पुस्तकें दर्ज हैं। वे दिल्ली प्रशासन के विद्यालय में विज्ञान शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं साथ ही दिल्ली विश्विद्यालय से शिक्षा-शास्त्र में पीएचडी कर रहें हैं। हाल ही में इण्डिया नेटबुक प्रकाशन के स्वामी और संचालक और 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक डॉ. संजीव ने सन्दीप तोमर का साक्षात्कार लिया, प्रस्तुत है सन्दीप तोमर की साहित्यिक यात्रा और उनके साहित्यिक विचार- संपादक)
सन्दीप तोमर का परिचय:
सन्दीप तोमर
का जन्म ७ जून १९७५ को उत्तर प्रदेश के जिला मुज़फ्फरनगर के गंगधाड़ी नामक गॉंव में हुआ। आपके पिता एक आदर्श अध्यापक रहे तो माताजी एक धर्म परायण स्त्री हैं। दोनो का ही प्रभाव आपके जीवन पर बराबर रहा है। चार भाई बहनों में सबसे छोटे सन्दीप तोमर ने शारीरिक अक्षमता के चलते सीधे पांचवी कक्षा में प्रवेश लिया और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए।
तत्पश्चात विज्ञान विषयों से स्नातक करके
प्राथमिक शिक्षक के लिए दो वर्ष का प्रशिक्षण लिया। उत्तर प्रदेश में कुछ दिन अध्यापन करने के बाद नॉकरी छोड़ दिल्ली विश्वविद्यालय पढ़ने आ गए। बी.एड, एम.एड के बाद एम्.एस सी (गणित)
एम् ए (समाजशास्त्र व भूगोल) एम फिल (शिक्षाशास्त्र) की शिक्षा ग्रहण की। दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ते हुए ही साहित्य का स्वाध्याय करते हुए लेखन में रुचि उत्पन्न हुई।
उन्होंने
कविता, कहानी, लघुकथा, आलोचना, नज़्म, ग़ज़ल के साथ साथ उपन्यास को अपनी विधा बनाया। पेशे से
अध्यापक सन्दीप तोमर का
पहला कविता संग्रह "सच के आस पास" 2003 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद एक कहानी सँग्रह
"टुकड़ा टुकड़ा परछाई" 2005 में आया। शिक्षा और समाज (लेखों का संकलन शोध-प्रबंध) का प्रकाशन वर्ष 2010 था। इसी बीच लघुकथा सँग्रह "कामरेड संजय" 2011 में प्रकाशित हुआ। "महक अभी बाकी है" नाम से कविता संकलन का संपादन
भी किया। 2017 में प्रकाशित "थ्री गर्ल्सफ्रेंड्स" उपन्यास ने संदीप तोमर को चर्चित उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया। 2018 में आपकी आत्मकथा "एक अपाहिज की डायरी" का विमोचन नेपाल की धरती पर हुआ। जनवरी २०१९ में “यंगर्स लव” कहानी संग्रह का विमोचन विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में हुआ। समय पर दस्तक (लघ कथा संग्रह 2020 में इंडिया नेटबुक, नॉएडा से प्रकाशित हुआ। उपन्यास एस फ़ॉर सिद्धि 2021 में
डायमण्ड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित हुआ, यह उपन्यस भी उनके पहले उपन्यास की तरह ही एक चर्चित उपन्यास है। आत्मकथा “कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें” (यात्रा- अन्तर्यात्रा की स्मृतियों का अनुपम शब्दांकन, 2021
में इंडिया नेटबुक, नॉएडा से प्रकाशित हुआ। सुकून की तलाश (कविता संग्रह), 2023 परम ज्योति (कविता संग्रह), 2023 दीपशिखा (उपन्यास) 2023 प्रकाशित हो चुके हैं, उपन्यास “ये कैसा
प्रायश्चित”
प्रेस में है।
वे प्रारंभ, मुक्ति, प्रिय मित्र अनवरत अविराम इत्यादि साझा संकलन में बतौर कवि सम्मलित हो चुके हैं। सृजन व नई जंग त्रैमासिक पत्रिकाओं में बतौर सह-संपादक सहयोग करते
रहे। फिलहाल उनकी कई पुस्तकें प्रकाशन हेतु प्रकाशकों के पास गई है। आपको
क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय, सुचना और प्रसारण मंत्रालय (भारत सरकार) देहरादून द्वारा १९९६ में बाल अधिकार विषय पर नियोजित निबंध प्रतियोगिता के लिए सम्मानित किया गया। श्री सत्य साई सेवा समिति शामली, मुज़फ्फरनगर (उ. प्र.) द्वरा कला प्रतियोगिता के लिए १९९६ में सम्मानित किया गया। हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा निबन्ध व कविता लेखन के लिए( २००३ व २००५), मानव मैत्री मंच द्वारा काव्य लेखन के लिए सम्मान (२००२-२००३) जिला हिन्दी भाषा- साहित्य परिषद्, खगड़िया (बिहार) द्वारा "सच के आस पास" काव्य कृति के लिये
"तुलसी स्मृति सम्मान" २००४ में, १२ वां अखिल भारतीय हिन्दी
साहित्य सम्मलेन में काव्य लेखन के लिए "युवा राष्ट्रीय प्रतिभा" सम्मान (२००४),
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावां
प्रतापगढ़ (उ.प्र.) द्वारा "साहित्य श्री" सम्मान (२००५), अजय प्रकाशन रामनगर वर्धा (महा.) द्वारा
"साहित्य सृजन" सम्मान ( २००४), सहित कई बड़ी संस्थाओं द्वारा समय- समय पर आपको सम्मानित किया गया है।
2011-12 में स्कूल स्तर पर तत्कालीन
विधायक के हाथों बेस्ट टीचर आवर्ड से सम्मानित किया गया। 2011 में आल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ टीचर्स आर्गेनाईजेशन के तत्वाधान में तत्कालीन संसदीय मन्त्री हरीश रावत के कर कमलों से दिल्ली के बेस्ट टीचर के लिए सम्मानित हो चुके हैं।
आपको “औरत की आज़ादी: कितनी हुई पूरी, कितनी रही अधूरी?” विषय पर अगस्त २०१६ में आयोजित परिचर्चा संगोष्ठी में विशेष रूप से
सम्मानित किया गया। भारतीय समता समाज की ओर से आपको समता अवार्ड 2017 से सम्मानित किया गया। साहित्य-संस्कृति मंच अटेली, महेंद्र गढ़ (हरियाणा) द्वारा साहित्य- गौरव सम्मान (२०१८), छठवा सोशल मिडिया मैत्री सम्मलेन में नेपाल की भूमि पर वरिष्ठ प्रतिभा के अंतर्गत साहित्य के क्षेत्र में सतत वा सराहनीय योगदान
के लिए “साहित्य सृजन”(२०१८), इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र एवम हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी द्वारा शिक्षक प्रकोष्ठ में सहभागिता प्रमाण पत्र दिया गया। पाथेय साहित्य कला अकादमी, जबलपुर/दिल्ली द्वारा
सितम्बर २०१८ में कथा गौरव सम्मान से नवाजा गया। साथ ही दिसंबर 2018 में ही नव सृजन साहित्य एवं संस्कृति न्यास, दिल्ली नामक संस्था द्वारा
हिन्दी रत्न
सम्मान दिया गया।सितम्बर २०१९ में पत्रकार
देवेन्द्र यादव मेमोरियल ट्रस्ट, दौसा एवम अभिनव सेवा संस्थान, दौसा द्वारा साहित्य में
विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। नवम्बर 2019में अभिमंच द्वारा उपन्यास लेखन के लिए प्रेमचन्द सम्मान-2019 से विभूषित किया गया।
1.
साहित्य सृजन में आपकी रुचि कैसे उत्पन्न हुई? किस साहित्यकार से आपको लिखने की प्रेरणा मिली?
संदीप तोमर: सातवीं क्लास में पढ़ते हुए एक मित्र ने कहा- उसका कोई जानकार पत्रकार है कहानी
लिखने पर छपवा देगा, तब “पेड़ का भूत” कहानी
लिखी लेकिन उसे उस मित्र ने अपने नाम से छपवा दिया। तब लिखने-पढ़ने के फायदे-नुकसान
नहीं पता थे। 1999 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान प्रेमचंद के
“कर्मभूमि”, शरदचंद्र के “श्रीकांत” और
“चरित्रहीन”, फणीश्वर रेणु के “मैला आँचल” को
पढ़ा, शरदचंद्र के मोहपाश में इतना पड़ा
कि अंदर से लगता - यह सब मेरी ही कहानी है जो लेखक लिख रहा है फिर विचार आया कि मैं
क्यों नहीं लिख सकता। श्रीकांत तो जैसे मेरा ही हमरूप हो, श्रीकांत न पढ़ता तो शायद लेखन में
कभी रुचि उत्पन्न न होती, इस
मायने में कह सकता हूँ कि शरदचंद्र ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।
2.
आपकी पहली रचना क्या थी और कब प्रकाशित हुई थी?
संदीप तोमर: सन २००० में कविता लिखना शुरू
किया..”पतझड़” कविता को इस मायने में मैं अपनी पहली रचना मानता हूँ, लेकिन
प्रकाशित हुई “ताकतवर हिजड़े“ जिसे मानव मैत्री मंच ने 2002 में पुरस्कृत
किया और छापा भी।
यह मंच कभी विष्णु प्रभाकर जी ने बनाया था जिसे उस वक़्त जीतेन कोही चला रहे थे। फिर मैंने लगातार कविताए लिखी।
3.
साहित्य की किस किस विधा में आपने काम किया है? और किस विधा में आपकी रुचि सर्वाधिक है?
संदीप तोमर: मैंने अपने लेखन की शुरुआत कविताओं
से जरूर की लेकिन उसके साथ-साथ लघुकथा और कहानियाँ भी लिखी, शुरुआती दौर में एक कविता-संग्रह और एक कहानी-संग्रह प्रकाशित हो
चुका था। शिक्षा, समाज और राजनीति पर लेख भी लिखे। कहानी के
साथ-साथ कुछ जीवन अनुभव संस्मरण रूप में लिखे, जिन्हें बाद में उपन्यास के रूप में लाया, तब शायद उपन्यास की एक
नयी विधा “संस्मरणात्मक उपन्यास” का अस्तित्व सामने आया, जिसे सुभाष नीरव जी ने भी मान्यता दी, उनका मत था कि जब आत्मकथ्यात्मक उपन्यास लिखे जा सकते हैं तो फिर
संस्मरणात्मक उपन्यास क्यों नहीं। कुछ यात्रा-वृतांत भी लिखे। हाँ, पहचान एक लघुकथा लेखक की जरूर बनी हालाकि मैं उपन्यास में खुद को
अधिक सहज महसूस करता हूँ, और ऐसा सपना भी है कि
साहित्य में लोग उपन्यासकार के रूप में जाने।
4.
आपने कविता और कहानी में चुनाव कैसे किया?
संदीप तोमर: कविता और कहानी में मेरे लिए चुनाव
जैसा कुछ कभी नहीं रहा, जब जिस विधा में खुद
को सहज महसूस किया उसी में कलम चलाई। कविता को मैं भावप्रधान विधा मानता हूँ, वहीं कहानी मेरे लिए जीवन
का साज़ है, जिये गए पलों की ध्वनि है जो पूरे वातावरण को
गुंजायमान करती है। सब कुछ जो जी लिया वह कहानी में रूपायित होता है।
5.
आपका रचना संसार बड़ा व्यापक है? कृपया अपनी कृतियों का उल्लेख करे।
संदीप तोमर: पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें, कहानियाँ, लघुकथाएं, लेख इत्यादि तो सन 2000 से ही लगातार छपते रहे, लेकिन मुझे लगता था- जब तक पुस्तक रूप में
साहित्य प्रकाशित नहीं होता खुद को रचनाकार नहीं माना जा सकता। यह सपना सच हुआ सान
2003 में, जब “सच के आस-पास”
कविता-संग्रह छप कर आया। इसी दौरान किशोर श्रीवास्तव “हम सब साथ साथ” मार्रुन
निकाल रहे थे, उनसे संपर्क हुआ, एक टीम बनी तो “युवाकृति” पत्रिका की रूपरेखा बनी
लेकिन नियम और शर्तो से असहमति के चलते प्रवेशांक से ही मैंने स्वयं को अलग कर
लिया। 2005 में “टुकड़ा टुकड़ा परछाई” कहानी संग्रह छपा। इसी बीच “ये कैसा
प्रायश्चित” प्रेम आधारित उपन्यास और उसके बाद “दीपशिखा” और “थ्री
गर्लफ्रेंडस” लिखा। प्रकाशकों की शर्तें न मानने के चलते पहले दोनों उपन्यास
प्रकाशित नहीं हुए, “थ्री गर्लफ्रेंडस” 2017 में छपा। उससे भी पहले एक रचना हमने भेजी
‘कथा संसार’ में। सन २००० के आस-पास सुरंजन इस मैग्जीन के लिए संघर्ष कर रहा था,
उसे आर्थिक मदद चहिये थी, इधर अध्यापन शुरू हो चुका था। आर्थिक मदद के साथ-साथ उसके
लिए सदस्य बनवाये। उन्होंने शिक्षा पर अंक निकाला और उनकी बहुत चर्चा हुई। राजेन्द्र
यादव हंस निकाल रहे थे, मैंने उन्हें एक कहानी भेजी, रिजेक्ट होकर आ गयी। हँस के एक अंक में यादव जी ने सम्पादकीय में
लिखा- हनुमान लंका में पहले आतंकवादी थे। अक्षर प्रकाशन के दफ्तर में तोड़-फोड़ हुई।
मैंने “हंस और आतंकवाद” शीर्षक से, एक लेख लिखा, सुरंजन ने उसमे जोड़ दिया “हंस
और आतंकवाद उर्फ़ राजेन्द्र यादव” और उसे छाप दिया। यह शायद २००४ के मेला-विशेषांक
अंक में आया था। जब मैं २००८ में यादव जी से हंस के दफ्तर में मिला तो इस विषय पर
उनसे चर्चा हुई। 2010 में “शिक्षा और समाज” नाम से लेखो का संग्रह प्रकाशित
हुआ,
इस बीच एक लघुकथा संग्रह “कामरेड संजय”
और कविता संग्रह “परम ज्योति” एक प्रकाशक ले गए, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह
दोनों को ही लंबित करते रहे। 2010 से 20117 तक पुस्तक रूप में कुछ खास नहीं हुआ
लेकिन उसके बाद फिर लेखन में रुझान बढ्ने से लगातार प्रकाशन होने लगा। 2016 में
कुछ मित्रों के आग्रह पर “महक अभी बाकी है” कविता संकलन का संपादन भी किया। “एक अपाहिज की डायरी” आत्मकथा का विमोचन मार्च 2018 को नेपाल के जनकपुर की पवन भूमि पर
हुआ। “यंगर्स लव” शीर्षक से कहानी संग्रह 2019 में प्रकाशित हुआ। “समय पर दस्तक” लघुकथा संग्रह 2020 में प्रकाशित हुआ। डायमंड बुक्स से “एस फ़ॉर सिद्धि” उपन्यास 2021 में प्रकाशित हुआ जिसने एक बार फिर मेरे लेखन को चर्चा के केंद्र
में ला किया। आत्मकथा का दूसरा भाग “कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें” (यात्रा- अन्तर्यात्रा की स्मृतियों का अनुपम
शब्दांकन, 2021) डॉ संजीव ने अपने
प्रकाशन से छापा, जिसे पाठकों ने मेरे लेखन के अलग प्रयोग के रूप में खूब सराहा। “ये
कैसा प्रायश्चित” भी जल्दी प्रकाशित हो रहा है। “परम ज्योति” मेरा ड्रीम
प्रोजेक्ट था जिसे हर्ष पब्लिकेशन्स ने छापने के लिए स्वीकृत किया है। “सुकून
की तलाश में” कविता संग्रह भी शीघ्र आ रहा है। इसके अलावा कुछ अन्य प्रोजेट्स
भी हैं, “विकलांग विमर्श की कहानियों” को संकलित करने में आजकल व्यस्त हूँ, ये एक बढ़िया और अलग तरह का काम होगा।
6.
आप अपने रचनाओं में विषय वस्तु कैसे चुनते हैं?
संदीप तोमर: कुछ तो है ही जो लिखने का दबाव
डालता रहा है,
शायद
ये प्रेम ही है जो मेरे जीवन का हिस्सा है। एक समय था जब मैं खुद को साबित करने के
लिए लिखना चाहता था, शायद इसलिए लिख रहा था। लेकिन अब देखता हूँ समाज की प्रमुख
सामाजिक,
राजनीतिक
घटनाएं हैं,
जो
एक लेखक के तौर पर मुझे उद्वेलित करती रहती हैं और वहीं से विषयवस्तु भी मिलती है, कथानक का चुनाव भी होता है। हाँ, इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि
सामाजिक हो या राजनीतिक हर तरह की विषयवस्तुं में प्रेम स्वतः ही प्रधान हो जाता
है।
7.
क्या आपके पात्र वास्तविक जीवन से जुड़े होते हैं या काल्पनिक होते
हैं? आपका सबसे प्रिय
पात्र कौन सा है?
संदीप
तोमर’ मेरा मानना है कि कल्पना से लेखन संभव ही नहीं
है, अत: मेरे सभी पात्र वास्तविक जीवन से जुड़े होते
हैं, मुझ पर जब तब ये आरोप भी लगते रहे कि संदीप
पहले खुद किरदार को जीता है फिर उसे रचता है, और मैं भी स्वीकार कर लेता हूँ कि हाँ, आपका आरोप निराधार नहीं है। हाँ, अच्छी किस्सागोई के लिए फंटेसी क्रिएट करनी पड़ती है लेकिन मूल
पात्र यथार्थ से ही रहते हैं। पसंदीदा पात्र की बात करूँ तो कहना न होगा कि हर
रचनाकार को अपने सभी पात्र प्रिय होते हैं। मेरी एक कहानी “ताई” को कई
वैबसाइट ने छापा, ताई पात्र से मुझे बेहद प्रेम है। मेरे उपन्यास
“थ्री गर्लफ़्रेंड्स” का सुदीप भी मुझे अत्यंत प्रिय है। नारी पात्रों में “एस
फॉर सिद्धि” की नायिका सिद्धि मुझे अधिक आकर्षित करती है।
8.
आपकी रचना प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मूल तत्व क्या है।
संदीप तोमर : विभिन्न विधाओं में लेखन करते हुए
मैंने महसूस किया कि मुझे खुद को एक कथाकार के रूप में स्थापित करना चाहिए, कथा के आज प्रचलित तीनों ही रूपों यथा- लघुकथा, कहानी और उपन्यास में मैंने लेखन किया। लघुकथा एक एकांगी विधा है, मेरी नजर
में लघुकथा प्रेयसी संग बैठ किसी प्रसंग की गुफ्तगू का नाम है, यह गद्य का एक ऐसा अंश है जो एक सिटिंग में पढ़ा जा सके। इसलिए इसकी रचना-प्रक्रिया भी अलग है, जहाँ आपको ज्यादा कुछ कहने की गुंजाइश नहीं है, उपन्यास का गौरव जीवन की
समग्रता में है तो कहानी का संक्षिप्तता में। कहानी में
एकपन है – एक घटना, जीवन का एक
पक्ष, संवेदना का एक बिन्दु, एक भाव, एक उद्देश्य, जबकि उपन्यास में विविधता
है, अनेकता है।
इस रूप में देखे तो किसी भी रचनाकार की रचना-प्रक्रिया को पात्र
सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, लघुकथा में कई बार एकल
पात्र या बमुश्किल दो या तीन पात्र होते हैं तो कहानी में उससे अधिक हो सकते हैं
जबकि उपन्यास में पात्र बहुतायत में भी हो सकते हैं। कितनी ही बार पात्रों के मूल-चरित्र
से हटकर किसी बड़े संदेश के चलते उस पात्र का चरित्र चित्रण ही बदलना पड़ता है। बुरे
पात्र को अच्छा दिखाना भी रचना की डिमांड से तय होता है।
दूसरी बात भाषा, शैली और संवाद को लेकर है जो रचना-प्रक्रिया में महती भूमिका
निभाती है, कहीं-कहीं भाषा के स्तर पर वह सब लिखना पड़ता है
जिसे आलोचक सुचिता के नाम पर अश्लील या अभद्र घोषित कर दें, लेकिन कथानक की मांग और पात्र का चरित्र आपसे वह सब लिखवा लेता
है। कथोपकथन या वार्तालाप से ही कथानक की सार्थकता है, मेरी कोशिश रहती है कि वार्तालाप पात्र के अनुकूल हो, आलोचना की परवाह किए बिना वह सब लिखना लेखक के लिए आवश्यक है
जिससे चरित्र-चित्रण में आसानी हो। शिल्पगत प्रयोग भी रचना-प्रक्रिया का
महत्वपूर्ण सोपान है।
देशकाल-वातावरण भी किसी लेखक के लेखन पर बहुत प्रभाव डालते हैं, मेरी कई लघुकथाएं हैं जिन पर देशकाल और परिवेश का प्रभाव दृष्टिगोचर
होता है। हाँ, वातावरण के लिए आवश्यक है कि वह रचना के मूल भाव
के अनुकूल हो।
9.
सामाजिक परिवेश और उसमें होने वाले परिवर्तनों से आपकी रचनाओं पर
क्या प्रभाव पड़ता है?
संदीप तोमर: सुकरात ने मनुष्य को सामाजिक प्राणी
कहा था, लेखन हो या अन्य कोई भी उपकरण सबके केंद्र में
समाज ही प्रमुख है, निश्चित ही सामाजिक परिवेश का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष
प्रभाव लेखन पर पड़ता है। उदाहरण के तौर पर कभी नारी अत्याचार पर कलम चली लेकिन जब
देखा कि कुछ कानूनों की आड़ में पुरुषों के वैवाहिक जीवन को दूभर किया जाने लगा तो
स्वाभाविक रूप से ऐसे कथानक जहन में आने लगे जहाँ पुरुष के शोषण पर रचनाकर्म हो।
एकल अभिभावक भी नए सामाजिक परिवेश की उपज है, स्त्री-पुरुष दोनों के कामकाजी होने से बच्चो की परवरिश के
मापदण्डों में हुए परिवर्तन और उनमें व्यवहारगत समस्याओं से भी लेखन अछूता नहीं रह
सकता। अभिप्राय यह है कि आधुनिकता ने नाम पर जो भी नया समाज में घट रहा है लेखक
उससे अनभिज्ञ कैसे हो सकता है?
10.
आप अपनी कौन सी रचना को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं? और क्यों?
संदीप तोमर: मुझे लगता है सन 2000 से 2021 तक जो
लेखन हुआ वह लेखन सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा था, जब “थ्री गर्लफ़्रेंड्स” को पोपुलेरिटी मिल रही थी तो मन
खुश अवश्य हुआ था लेकिन कालांतर में मैंने
वह सब लेखन खुद से ही खारिज करने का मन बनाया। आज मैं कह सकता हूँ कि “एस फॉर
सिद्धि” यथार्थ के धरातल पर लिखी गयी मेरी पहली रचना है, वह एक ऐसी नारी के जीवन का जहरीला सच है, जिससे लगभग हर वो स्त्री दो-चार होती है जिसे खुद को साबित करने
के लिए, कुछ बनने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मैं कह
सकता हूँ कि सिद्धि आज की नारी का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है। वहीं मेरी यात्रा-अन्तर्यात्रा की स्मृतियों का अनुपम शब्दांकन “कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें” मेरे जीवन का कड़ुवा और मीठा दोनों तरह का अनुभव
है, मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं कि यह पुस्तक
मेरे जीवन के विकलांग जीवन का स्याह सच है तो मेरी लेखन यात्रा और लेखकों, प्रकाशकों से मेरे सम्बन्धों की पड़ताल करता एक दस्तावेज़ भी है।
11.
आजकल लेखकों द्वारा काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है किन्तु पाठक उतना प्रभावित
नहीं हो पा रहा। आपकी द्रष्टि में इसका कारण है?
संदीप तोमर: ये बात सही है कि आजकल काफी कुछ
लिखा जा रहा है, क्या लिखा जा रहा है हमें ये देखना होगा। अभी
के लेखकों की सबसे बड़ी समस्या है- वे पढ़ते कम हैं और
लिखते अधिक हैं, और जो लिखते हैं उस सब को प्रकाशित होते हुए
देखना चाहते हैं, ये छपास की चाह लेखन से क्वालिटी को खत्म करती
है। अभी प्रकाशन के मापदंड भी बदले हैं, प्रिंट ऑन डिमांड, सेल्फ पब्लिशिंग जैसे टर्म चलन में आयें हैं, इस सबसे छपना अवश्य आसान हुआ, लेकिन इस क्वालिटी बनाम क्वान्टिटी के खेल में अच्छा साहित्य कहीं
विलुप्त होने लगा। एक बात और मैं कहता हूँ- लेखक को 1000 शब्द पढ़कर एक शब्द लिखने
की कोशिश करनी चाहिए और खुद के लिखे को खुद खारिज करने की कुव्वत पैदा करनी चाहिए
लेकिन कितने लोग ये साहस रखते हैं?
12.
डिजिटल युग मे आपको साहित्य का क्या भविष्य प्रतीत होता है?
संदीप तोमर: डिजिटल युग में लेखक की पहुँच अवश्य
ही पाठक तक बढ़ी है, प्रकाशन की प्रक्रिया भी आसान हुई है। वर्तमान में डिजिटल मीडियम ने अपना एक व्यापक
पाठक वर्ग तैयार किया है लेकिन सोशल मिडिया की एक समस्या है - अधिकांश पाठक वही है
जो या तो लेखक हैं या फिर लेखक बनने की होड़ में शामिल हैं। मुझे ऐसा महसूस होता है कि डिजिटल के साथ एक समस्या है, इसकी अवधि बहुत
लम्बी नहीं है, एक दिन या तो लेखक ही उससे उकता जाता है या फिर पाठक किनारा कर
सकता है। इसके विपरीत प्रिंट
मीडिया एक एतिहासिक दस्तावेज होता है, उसका अपना एक
विस्तृत पाठक वर्ग है, अगर ऐसा नहीं होता तो लघुपत्रिकाओ की इतनी बाढ़ न आती। अगर इन दोनों
माध्यमो की तुलना करूँ तो मैं प्रिंट मिडिया को अधिक महत्व दूँगा उसका कारण है
इसका सर्वकालिक होना, जो एक बार प्रकाशित हुआ वह सर्वकालिक हुआ।
13.
प्रवासी हिन्दी साहित्य की समृद्धि के लिए आपके क्या विचार है?
संदीप तोमर: प्रवासी हिन्दी साहित्य की समृद्धि
के लिए हमें मैत्री-कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। गिरमिटिया
मजदूर तथा जिप्सी जो अपने समाज से कटकर मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिडाड आदि स्थानों पर बसा दिये गए उन्होने अपने पूर्वजों
की पीड़ा और उस दर्द को कहानी, उपन्यास, कविता आदि माध्यमों में व्यक्त किया, उनके लिखे साहित्य को भारत में अधिक से अधिक प्रचारित प्रसारित
किया जाना होगा, दूसरा
वे भारतीय जो जीविकोपार्जन के लिए
एनआरआई के रूप में सुख-सुविधा की चाह में विदेशों
में बस गए लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि
अपनी भाषा, संस्कृति और समाज की संवेदना उनसे
छूट रही है लिहाज़ा उन्होंने लिखना शुरू किया, उनके लेखन को भी भारतीय प्रकाशक प्रमुखता से प्रकाशित करें तो
निश्चित ही साहित्य समृद्ध होगा। लेखन हेतु ईनामी प्रतियोगिता और पुरस्कार योजनाएँ
भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
14.
लेखन कार्य के अलावा आपकी अन्य अभिरुचियाँ क्या हैं?
संदीप तोमर: पहली बात जो लेखन के लिए बहुत जरूरी
है, पठन-पाठन उसे मैंने अपनी सबसे बड़ी अभिरुचि
बनाया। 1998 में एक्सिडेंट हुआ, एक साल बैड पर रहना
पड़ा था, जब आप कहीं घूम नहीं सकते, आ जा
नहीं सकते, आप बहुत सीमाओं में खुद को बंधा हुआ महसूस करते हैं तब आपकी मन:शक्ति
बहुत तेजी से विचरण करती है। आप उस समय स्वाभाविक रूप से सृजनात्मक हो जाते हैं, तब कल्पना शक्ति की गति तीव्र हो
जाती है। तब कुछ स्केच बनाये, वो कहानी नहीं कहते थे, लेकिन किसी के पास प्रेषित
करने के लिए और समय का उपयोग करने के लिए स्केच बनाये। कहा जा सकता है कि वह भी
मेरी रुचियों में शामिल रहा। घुमक्कड़ी भी मेरा शौक है, कुछ अच्छे फोटोग्राफ्स भी जीवन
में लिए। पाककला में भी खुद को महारथी अनुभव करता हूँ।
15.
उदीयमान लेखकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहते हैं।
संदीप तोमर: एक समय तक पढना किसी भी विधा के अंगोपांग
को समझने के लिए जरुरी है, हाँ, अगर आप एक अच्छे
पाठक हैं तो ये अच्छी बात है, उदीयमान लेखकों में एक
पाठक अवश्य ही होना चाहिए, कई बार देखने में आता है कि किसी एक ही लेखक को अधिक पढने से खुद का लेखन प्रभावित होने लगता है, कुछ नवरचनाकार किसी
लेखक से इतने प्रभावित होते हैं कि उनकी शैली को ही अपनाने लगते हैं। इससे बचने की जरूरत है, दूसरा वही जिसकी चर्चा पहले भी कर चुका हूँ, खुद के लिए को खारिज करने की काबलियत पैदा करने की जरूरत है। किसी
कार्यक्रम में महीप सिंह ने कहा था- “जीवन की हर घटना साहित्य नहीं होती।“
नवोदतों को हर घटना पर रचनाकर्म न करके बेहतर और प्रासंगिक का चुनाव करने का हुनर
विकसित करना चाहिए।
ये भी जरुरी है कि नयी
पीढ़ी खेमेबाजी से किनारा करे, और किसी एक वरिष्ठ पुरुष की बात को
पकडकर न बैठे, साहित्य में कोई राम बाण या लक्ष्मण रेखा नहीं होती, अपनी राह खुद
तलाशनी होती है।
16.
हिन्दी साहित्य के पाठकों की संख्या के विकास के लिए आप क्या सुझाव
देना चाहते हैं?
संदीप तोमर: हमें पुस्तक संस्कृति को पुनर्जीवित
करना होगा, पुस्तकों को उपहार का जरिया बनाना होगा, लोगो को अपना एक छोटा सा निजी पुस्तकालय बनाने के लिए प्रेरित
किया जाए, साहित्यिक कार्यक्रमों, पुस्तक विमोचन में लेखको की बजाय आम इन्सानो को आमंत्रित किया
जाये ताकि पुस्तकों का महत्व लोगो को समझ आए। पाठको की रुचि के अनुरूप लेखक लिखें
तो पाठक वर्ग अधिक आकर्षित होगा।
वाह बहुत सुन्दर, ढेर सारी शुभकामनाएं सैंडी...🌺🌺
ReplyDeleteआभार दोस्त
DeleteSandy, My talented younger brother.Great skill as far as
ReplyDeletewriting ability is concerned.I have read almost all his
books and novels.A master in short stories too.He will be
48 on 7th of this june.He has all the degrees against his
name.Currently doing Ph.d from DU...Amazing.Salute to my younger brother and his efforts.My blessings are always with him.Keep it up bro...
आह ! भाई, अप मेरी हिम्मत हो..
ReplyDeleteThanks bro
Deleteशानदार हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआभार रहेगा भावना जी...
ReplyDeleteवाह! जितना प्रभावी साहित्यकार, उतना ही टटका विचार और उतनी ही गुरूत्वीय शक्ति से संपन्न साक्षात्कार। बधाई और शुभकामनाएं, संदीप जी।
ReplyDeleteबात आप तक पहुँची, उसके लिए आभार रहेगा, विश्वमोहन जी
ReplyDelete