Wednesday 10 July 2019


सन्दीप तोमर की कुछ लघुकथाएँ

(कम शब्दों में बात कहने का प्रयास)

" अफ़सोस"

चाकू का फर्र सीधा पेट में घुसा तो आंत-औजड़ी बाहर निकलता हुआ नीचे तक पहुँचा। शर्म-हया का पर्दा कट कर शरीर से अलग हुआ तो चाकूबाज को अफ़सोस हुआ उसके मुँह से शब्द निकले-“अरे ये तो अपने मजहब का है, मूंछ-दाढ़ी न रखने के दौर में कितना मुश्किल है पहचानना, साला मजहब की पहचान ही नहीं होती।“
लाश सड़क पर गिर चुकी थी। चाकूबाज को हत्या पर नहीं गुनाह पर अफ़सोस था।

“तैनाती”
शहर के जिस भी इलाके में कोई वारदात होती अगले दिन उसकी तैनाती वारदात वाले इलाके में कर दी जाती| पिछले कई महीने से ये ही सिलसिला चल रहा था| वह वारदात और तैनाती से खीज चुका था| 
उसने बड़े इत्मिनान से अफसर से कहा- “साहब, जब पक्की खबर है कि दो दिन बात सर्राफा बाजार में वारदात होने वाली है और उसके बाद मेरी तैनाती वहाँ तय है तो आज ही क्यों मुझे वहाँ तैनात कर दिया जाता?”

“खबरदार”
दबंग उस मरियल को घर से बाहर घसीट लाये। उसकी पसलियाँ किसी धोकनी की तरह चल रही थी। 
एक दबंग ने उसका गिरेवान पकड़ कर कहा-“ दबंगो के मोहल्ले में रहकर अपने मजहब के गीत गाता है, तुझे मौत का डर नहीं?”
मरियल गिडगिडाते हुए दहाडा-“ देखो मुझे जान से मार दो लेकिन खबरदार जो मेरे मजहब के खिलाफ़ एक शब्द भी कहा।“

"सपना”

वह सोया हुआ था, मैंने उसे नहीं जगाया - "दीवाना है किसी प्रेयसी की याद में सपना देख रहा होगा।"
वह उठा तो मुझसे बोला-"अगर तुम मुझे सोते से जगा देते तो वह आज यूँ दिल तोड़कर नहीं चली जाती।"

"जवाबी मेल"

आज मुझे एक औरत का मेल आया। उसमें उसने स्वयं की नग्न, अर्धनग्न तश्वीरें भेजी थी।

और मैंने उस औरत को जवाबी मेल भेजा। मेरी माँ जन्म देते ही मर गयी, जिन्दा होती तो इन्हीं स्तनों से मुझे दूध पिलाती।

"पहुँच"

उसने कहा - "मेरे पास बंगला है, पनामा है, पैराडाइज़ है, तुम्हारे पास क्या हैं हें ...?"
पत्रकार बोला-"मेरे पास ये सारे दाग धोने वाला डिटर्जेंट पाउडर है, वह भी एकदम देशी।"
पुलिस वाला-"(पिछवाड़े पर डंडा फटकारते हुए), साले तेरी पत्रकारिता निकालता हूँ, जानता नहीं साहब की पहुँच कहाँ तक है?"
पत्रकार बगले झांक रहा था।

विनती"

दंगई बमुश्किल १६ साल की छरहरे बदन वाली सांवली लड़की को घसीटकर मकान से बाहर ले आये.. लड़की लड़खड़ाते हुए खड़ी हुई कपडे झाड़े और दंगईयों से बोली-"तुम मुझे जान से मार दो लेकिन मेरी विनती है, देखो मेरी सलवार मत फाड़ना."

"भूतो न भविष्य"/ लघुकथा/ सन्दीप तोमर

हिसाब से बीज, खाद, पानी, निराई, हल, सबका खर्च बराबर भी किसानो को उनकी फसल के दाम की एवज में नहीं मिला था।
सभा हुई तो उसने ऐलान किया, इस बार सब तय करें कि हम शहर या सरकार को अपनी फसल नहीं बेचेंगे।
सब किसान उठकर अपने घरों का रुख करने लगे। वह खाली होते पंचायतघर को तकता रहा।

"प्रेम गली"
"महिवाल कहता रहा- जी करता है तेरे जैसा एक घड़ा बनाऊं। आधुनिक जमाने का प्रेमी हूँ। रोबोट बनाता और अपने हिसाब का सॉफ्टवेयर डालता।"
"देव कहता फिरा-मेरी किस्मत में तू नहीं शायद। आधुनिक जमाने का देव हूँ। किस्मत पर क्यों हाथ धरे बैठूं। जमाने में प्रेमिकाओं की क्या कमी है?"
रांझा फटे कपड़े, जगह-जगह पैच लगी पोशाक पहने गलियों में फिरता रहा। मैं आधुनिक जमाने का प्रेमी, सूट-टाई पहन कैसिनो में मिलूंगा, आएगी न?"

"नवयुग" 
"हम एक राष्ट्र एक चुनाव पर विश्वास करते हैं।"-सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि ने कहा।
"इसका सीधा मतलब है एक पार्टी एक नेता एक सरकार।"-विपक्ष का प्रतिनिधि बोला।
"चिल्लाओ, तुम्हारी सुनता कौन है?" 
"यानि आप लोग लोकतंत्र को ही समाप्त कर दोगे?"
"लोकतंत्र, ये किस चिड़िया का नाम है?"

“परहेज”
उसे लोहिया के बनाये गए बुतों से परहेज होने लगा, उसने हथोडा हाथ में लिया और लखनऊ के लोहिया पार्क जाकर लोहिया के बुत पर ताबड़तोड़ प्रहार शुरू कर दिए| पार्क में घूम रहे लोगो ने उसकी बेजा हरकत पर उसे लात, घूंसों से मारना शुरू किया, ताबड़तोड़ मार से उसकी अंतड़ियाँ बाहर आई तो भीड़ रफूचक्कर हुई| पुलिस की गाड़ी और अम्बुलेंस साथ-साथ आई| उसे लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराकर पुलिस ने आगे की कार्यवाही शुरू कर दी| 

"मजमून"
उसने तमाम उम्र लिखे खतों को एक लिफाफे में रक्ख डाक से प्रेषित कर दिया। 
हफ्ता भी नही बीता लिफ़ाफ़ा वापिस लौट आया इस मजमून के साथ कि" अब यहाँ कोई भावना नहीं रहती, यह मकान अब कामना के पास है।"
वह कभी उलट-पलटकर लिफ़ाफ़ा देखता , कभी उसका मजमून।

"करतब बनाम भूख"
मदारी ने एक नया करतब दिखाया और तमाशबीन जिनमें कुछ मनोरंजन के लिए खड़े थे लेकिन कुछ भूखें थे, सब ही उछल-उछल कर तालियां बजाने लगे थे। एक करतब पर लोगों की ताली बंद नहीं होती थी कि मदारी कुछ नया तमाशा पेश कर देता था।
इस तरह भीड़ में मेरी आवाज़ अनसुनी फरियाद बन गयी, जबकि मैं तो मजमें में यह सोचकर शामिल हुआ था कि यहाँ कोई लंगर लगा हुआ है।
भूख भी आखिर भूख थी, उसे भी ढेर हो जाना था बिलकुल मेरी ही तरह।

"करवा चौथ" 
आज सुबह से घर में कोहराम मचा था।
"तुम ये दकियानूसी सोच का व्रत नही रखोगी।"-देवेश ने पूरे आवेश में कहा।
"तुम्हारी ही लंबी आयु के लिये है, कौनसा अपनी आयु बढ़नी है इससे।"-जया ने जवाब दिया।
"इस नारकीय जीवन से तो मौत बढ़िया।"-देवेश ने कुढ़ते हुए कहा।
"तो फिर मरो।"-कहते हुए जया चाय बनाने के लिए किचन की ओर बढ़ गयी।

एक खबर 
वह किसी विशेष दल का सदस्य था। उसे किसी मिशन पर लगाया गया था। आईपीएस राणा वहां से गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि वह हनुमान मंदिर के सामने संदिग्ध घूम रहा है। आईपीएस राणा ने उसकी हरकत को देखा तो उन्हें शक हुआ। वे अपनी गाड़ी से उतरे और उसे धर दबोचा।
शाम को टीवी पर एक खबर आई---
" एक हनुमान भक्त को मुसलमान आईपीएस राणा ने पीटा।"
मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि समाचार में क्या बताने की कोशिश की गई थी? न्यूज़ बनाने से पहले क्या मापदंड तय किये जाते हैं ये शायद मैं क्या कोई नही जानता था।

"सपना”
वह सोया हुआ था, मैंने उसे नहीं जगाया -"दीवाना है किसी प्रेयसी की याद में सपना देख रहा होगा।"
वह उठा तो मुझसे बोला-"अगर तुम मुझे सोते से जगा देते तो वह आज यूँ दिल तोड़कर नहीं चली जाती।"

"पहुँच"
उसने कहा - "मेरे पास बंगला है, पनामा है, पैराडाइज़ है, तुम्हारे पास क्या हैं हें ...?"
पत्रकार बोला-"मेरे पास ये सारे दाग धोने वाला डिटर्जेंट पाउडर है, वह भी एकदम देशी।"
पुलिस वाला-"(पिछवाड़े पर डंडा फटकारते हुए), साले तेरी पत्रकारिता निकालता हूँ, जानता नहीं साहब की पहुँच कहाँ तक है?"
पत्रकार बगले झांक रहा था। 

“दौड़"
उसके पास मंत्री जी के घोटाले में सम्मिलित होने के पर्याप्त सबूत थे। वह सुबह ही मोटरसाइकिल से मंत्री जी की कुटिया के बाहर पहुँच गया था, जैसे ही मंत्री जी चुनाव प्रचार के लिए निकले, उसने गेट से बाहर निकलती गाड़ी का शीशा नॉक करके पूछा था-"मंत्री जी देश के सबसे बड़े घोटाले में आपका नाम आने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?"
मंत्री जी ने इशारों में ही संवाददाता से कलम मांगी और कागज पर लिखा- “7 दिन के भागवत यज्ञ में मौनव्रत है।”
पत्रकार आज फिर ब्रेकिंग न्यूज की दौड़ में पिछड गए थे।

"चिड़िया का मजहब"

वह पिस्तौल से ताबड़तोड़ गोलियां चला रहा था, गोली से  एक आदमी उसी जगह दोहरा हो गया। थोड़ी देर बाद ही एक बूढ़ी औरत भी ढेर हो गई। तभी कमसिन जवान छरहरे बदन की एक लड़की गली में निकली, गोलियाँ चलाने वाले की बांछे खिल गयी।उसके साथ वाले का सिर भिन्ना गया। उसने कहा-"देखते क्या हो, गोलियाँ चलाओ।"गोलियां चलाने वाले ने पिस्तौल की नाल उसकी  ठुड्डी पर फेरते हुए कहा-" करारा माल है।" उसके साथ वाले ने कहा : “यह क्या कहते हो, हम बलवाई हैं, हमारा पेशा दूसरे मजहब के लोगो को मारना है।" गोलियां चलाने वाले ने जवाब दिया- “अबे लेकिन इन चहकती चिड़ियाओं का कोई मजहब नहीं होता।देखता है न, कब से जनानी का मुंह नहीं देखा।”

मूर्ति प्रकरण 
1
अम्बेडकर की मूर्ति ने लेनिन की मूर्ति से पूछा-"ये लोग मेरी मूर्ति तो रोज ही कहीं न कहीं तोड़ते ही रहते हैं, आज तुम्हारी भी तोड़ डाली। हमलोगों की मूर्तियों से ये इतना भय क्यो खाते है? 

लेनिन की मूर्ति ने कहा- " ये मामला भय का नहीं है,  मानसिक अवसाद का है। जहां विचार नहीं होता, वहां विकार चला आता है।"

2
लेनिन की मूर्ति ने अम्बेडकर की मूर्ति से सवाल किया- मेरी मूर्ति तो यहां पहली बार तोड़ी है, तुम्हारी तो वर्षो से तोड़ते आये हैं, तुमसे ये इतना क्यों चिढ़ते हैं? 

अम्बेडकर की मूर्ति ने कहा-" ये चिढ़ते इसलिए हैं कि हमारे विचार इनके विकारों पर हमेशा भारी पड़ते हैं।"

3
लेनिन की मूर्ति पर पहला वार ही हुआ था कि मूर्ति ने कहा- "रुको, किसे तोड़ रहे हो?"
हाथ में घन लिए व्यक्ति ने कहा-"तुम्हें और किसे?"
"मैं कौन हूँ?"
"होगा कोई, उससे मुझे क्या लेना-देना। हुकुम हुआ है इसलिए तोड़ रहा हूँ।"

4
वह लेनिन की मूर्ति पर ताबड़तोड़ घन चलाए जा रहा था। लेकिन मूर्ति लगातार हँस रही थी। 
वह बोला-" तुम हँस क्यों रहे हो? जानते नहीं दो मिनट में धरासायी हो जाओगे।"
मूर्ति ने जोर का ठहाका लगाया और कहा-" मैं विचार हूँ, यूँ धराशाही नहीं होता।"

5

लेनिन की मूर्ति ने पेरियार की मूर्ति से कहा-"मैं तो बाहर वाला यानी विदेशी हूँ, तुम तो इनके अपने हो। फिर भी......।"
पेरियार की मूर्ति ने कहा-"जिससे इन्हें खतरा लगता है, ये उसकी मूर्ति को तोड़ते है।"
"लेकिन मूर्ति ही क्यों?"
"क्योंकि ये विचार तक पहुंच नहीं पाते।"

6

लेनिन की मूर्ति लखनऊ के लोहिया पार्क पहुंच बोली-" हमारे दोनों के गुरु एक ही हैं, आज मुझे तोड़ा, कल तुम्हारी बारी।"
लोहिया ने कहा-"मुझे अंदेशा था तभी मैं मूर्ति लगाने का विरोध किया करता था।"

"मलेच्छ"

पहला दरवेश: विरह से भक्ति में लीन होना है तो योग आजमाओ.
दूसरा दरवेश: विरह और भक्ति में योग की क्या संधि है?
तीसरा दरवेश: इससे नया ज्ञान पनपेगा.
दूसरा दरवेश: उसे भक्ति-सुयोग और विरह-दुर्योग से जाना जायेगा? 
पहला दरवेश: मलेच्छ लगते हो?
तीसरा दरवेश: इस अपराध में तुम्हे देश निकाला दिया जायेगा.
दूसरा दरवेश: नहीं सखा, मैं रोज कसरत करूँगा.
पहला दरवेश: राजा तुम पर प्रसन्न होगा.

"मजदूर"

वह सुबह उठा..अख़बार उठाया तो देखा कि आज मई दिवस पर उसे सर्वश्रेष्ठ मजूर पुरस्कार मिला है..
उसने बचपन से ही सोच लिया था कि वो मजूर बनेगा और घूम घूमकर देश में मजूरी करेगा..
अपना सपना सच होते देख उसने राहत की साँस ली....

“निम्मी का जाना”
निम्मी तनाव को कम करने की जद्दोजहद में लगी रही। उसे जिंदगी का कोई ओर छोर नहीं मिल पाया। वो सोच रही थी-जिंदगी में कुछ बनने की गरज से ही तो वो गॉव छोड़कर शहर आई थी। नहीं चाहती थी वो अनीता की तरह बदनाम होना। उफ़्फ़ जिससे दामन छुड़ाना चाह रही थी, वो ही उसकी नियति बन गया। 
आज उसकी जिंदगी अनीता के नाड़े की तरह क्यों उलझ गयी। वो नेपथ्य में खोती चली गयी।

"तलाक"
"आज मैं जिंदगी के झमेलों से पूरी तरह आज़ाद हो गया, मुझे मेरी 15 साल की घुटन भरी जिंदगी से मुक्ति मिल गयी।"-इतना कहकर वो दहाड़ा और फुट-फूटकर रोया।
बड़ी बेटी को हॉस्टल छोड़ने का विदारक दृश्य और छोटी बेटी का अस्पताल का कमरा न. 327 उसकी आँखों के सामने तैरने लगे थे।

                              "तमन्ना"

विवेकानंद स्टेचू के पास पेड़ के नीचे सुस्ताने बैठी सुन्दरी को वो अपलक निहार रहा था..
सुन्दरी ने पलकें उठा एक हल्की मुस्कराहट फैलाई...
वो सकपकाते हुई पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगा.

"जरुरत"

आज दोनों ही दोस्तों का इंटरव्यू था। कितने ही दिनों से जिसका भी इंटरव्यू होता वही एक मात्र पैंट कमीज और काले फीतेदार जुते पहनकर चला जाता। एक ने निर्णय किया, इसे नौकरी की ज्यादा जरुरत है, ये इंटरव्यू दे आएगा. पिता की मौत के बाद दो बहनों की शादी का भार भी इसके ऊपर है। बिना कुछ कहे वह गमछा बांध बाहर चला गया।
दूसरे ने सोचा ये कितना मजबूर है, बूढी माँ की आंख बनवाने तक के लिए पैसे नहीं है। बहाने से बाहर चला जाता हूँ। अभी दातुन लाने गया होगा.. वापिस आकर इंटरव्यू देने चला जायेगा। 
चेहरे पर मुस्कान बिखेर उसने गमछा उठा कंधे पर डाला और खोली से बाहर निकल गया।

“खुदा और गरीबी”
गरीबी उसकी नियति थी..वो दो जून की रोटी नहीं जुटा पाता था. खुदा के करम से रमजान का पाक महिना आ चुका.. उसने पत्नी और बच्चो के साथ रोज़े रखे..ईद के मुबारक रोज़ के लिए उसने कर्ज लिया था.. वो बच्चो को खुश करना चाहता था..
सुबह उसके बच्चे नींद से नहीं उठे.. उसने बेगम को सांत्वना दी--" बेगम हमारे बच्चो को जन्नत नसीब होगी..”

"कामरेड बनाम राष्ट्र्बाद"

दोनों दोस्त टल्ली होकर बात कर रहे थे..समझ नहीं आ रहा था कि टांगों और जुबान में से कौन ज्यादा कौन लडखडा रहा था । "बोलो, गरीब का सोचोगे?" "नहीं भाई, योग करेंगे।" "लालाजी वाला?" "खामोश! सरकार वाला। आखिर तुमने हमें समझा क्या है?" "बात तो एक ही है।" "कॉमरेड लगते हो?" "काम की तो रेड लग गयी जनाब.. भक्त सेना का रंगरूट हूँ।". " ट्रेनिंग में सब गंदा लगता है, बाद में मजे करोगे। बोलो भारत माता की जय!" उसने जय बोलना चाहा लेकिन आवाज हलक में ही घुटी रह गयी।

"कवित्व"
पहला कवि- "यार सुन ये सरकार का अखंड भारत का सपना कभी पूरा नहीं होना चाहिए."
दूसरा कवि- "क्यों भाई उससे क्या फर्क पड़ता है?"
पहला कवि-" देख हमारा तो धंधा चोपट हो जायेगा."
दूसरा कवि-" मैं तो श्रृंगार रस का कवि हूँ..मुझे क्या फर्क पड़ना?"
पहला कवि-" लेकिन मैं वीर रस का कवि हूँ..पाकिस्तान ही नहीं रहा तो हम किस काम के रहेंगे?"
गूढ़ मंत्रणा में दोनों की आँखों में आंसू थे..

"मजहब"
दोनों दिन भर अपने अपने मजहब को श्रेष्ठ साबित करने के लिए महफिलों में सिरकत करते रहे..जितना जहर उगलने को कहा गया, उन्होंने उगला.
शाम को दोनों थके-हारे मिले. देशी के अद्धे से थकान उतार कल तक के लिए रुखसत ली ..

"आहट"
वो अकेली ही लड़ी थी उन 5-5 वहशियों से लेकिन एक बार फिर दरिंदगी जीत गयी थी।
एक हल्की सी आहट में जाग जाने वाली दिव्या आज माँ के विलाप, पिता के रुदन और छोटे भाई की सिसकारियों सबसे बेखर चिरनिंद्रा में सोई थी।

"मुद्दा"
मुलजिम अभी कोर्ट में क्यों नहीं है?"-जज ने बचाव पक्ष के वकील से पूछा।
"वो देश द्रोही था मेलॉर्ड। हमने कोर्ट के बाहर ही उसकी जमकर धुनाई कर दी।"-सरकारी वकील ने कहा।
लेकिन हमने बचाव पक्ष के वकील से पूछा है। "
"इन्होंने भी मेरे बराबार ही कानून की हिफाजत की कसम खाई है।"
"लेकिन , सजा देने का अधिकार तो मुझे है।"
"आप भी तो वही सजा देते। मुद्दा तो राष्ट्रद्रोह है।"

बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये

  पुस्तक समीक्षा  “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...