Friday, 3 January 2025

शिवना साहित्यिकी में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा

 

शिवना साहित्यिकी में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा 

पुस्तक समीक्षा

                                                          सन्दीप तोमर का ख्यातिलब्ध उपन्यास



पुस्तक एस फॉर सिद्धि (उपन्यास)

लेखक – संदीप तोमर 

प्रकाशन वर्ष -2021

मूल्य -150 रूपये

प्रकाशक- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली

 

किताब हाथ में है और देख रही हूं इसके मुखपृष्ठ को। शायद सिद्धि को उकेरने का प्रयास किया गया है उसकी एकटक देखती आँखें और चेहरे पर छपे बारीक ढेरों शब्द। मुखपृष्ठ उसके मन की ढेरों इच्छाओं और सवालों को दर्शाता प्रतीत हो रहा है। आगे बढ़ती हूँ तो समर्पण ध्यान आकृष्ट करता है "उनको जिनके लिए पात्र जीवंत हो उठते है"। ऐसी कहन जिस लेखक के पास है, उस उपन्यास को पढ्न और अधिक दिलचस्प हो उठता है।

फिर कथाकार के उद्गार द्वारा उपन्यास की एक झलक मिलती है जिसमें उन्होंने जिक्र किया है व्लादिमीर नोबोकोव के उपन्यास लोलिता का और दावा किया है कि लेडी नोबोकोव का जन्म हो चुका है तब थोड़ा आभास मिलता है कि लेखक स्त्री की दृष्टि से कथा कहने जा रहा है। वैसे भी मेरा तो यहाँ तक मानना है कि लेखक स्त्री, पुरुष, धर्म, जाति से ऊपर होता है, जब वह सृजन कर रहा होता है क्योंकि जन्म के वक्त कोई भी निरा शिशु ही होता है जिसका हम बाद में धर्म, मूल्य इत्यादि निर्धारित करते हैं पढ़ना शुरू कर चुकी हूँ। चाह रही हूँ भूलना कि किसी पुरुष द्वारा रचित है यह स्त्री पात्र, फिर भी जेहन में अटकी है कहीं यह बात कि हाँ, लेखक ने कहा है कि यह आत्मकथयात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है

शुरुआत मेरी जगह से होती है, पटना के जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डे से, तो मेरा पूरा ध्यान आकृष्ट किए हुए है। कथा के साथ दिल्ली, धनवाद, हैदराबाद, मसूरी, मुंबई सब जगह भ्रमण कर रही हूँ और सारे दृश्य आँखों के सामने आते जा रहे हैं। लेखक जो भी लिखा रहा है, उसका एक रेखाचित्र खिचता हुआ चलता है आँखों के सामने। कहना न होगा कि सिद्धि एकदम  परिचित सी लग रही है। उसकी जीवन यात्रा में एक साथ कई जानी-पहचानी अपने दम पर खड़ी लड़कियों की छवि नज़र आती रहती है। कई बार कई चेहरे एक-दूसरे से इतने गड़मड़ से हो ही जाते हैं। लेखक कि यही खूबी भी है कि उसने लेखन प्रक्रिया जो भी अपनायी, छोटे-बड़े शहरों कि कितनी ही सिद्धियों को एक सिद्धि के चरित्र में गूँथ दिया है।

लेखक महीन से महीन छोटी से छोटी बातों का वर्णन इस तरह करता है कि पढ़ते हुए लगता है जैसे अपने आस-पास की ही कहानी है, जिसके पात्र जाने-पहचाने से हैं। सिद्धि के बाहर से आने पर उसे वैसा ही व्यवस्थित कमरा मिलना, बाथरूम में छूटे फेसवाश के पुराने एक्सपायर्ड ट्यूब का ज्यों का त्यों रखा मिलना, लखानी की चप्पलों को बारिश में तैराने का जिक्र –यही  छोटी छोटी बातें लिख देना लेखक के तीक्ष्ण दृष्टि को दिखाता है। बारिश के साथ फिल्मों ने हमेशा प्रेमियों की याद को ही चित्रित किया है।

पाठक को अच्छा लगता है यहाँ स्त्री मनोविज्ञान को समझते हुए सिद्धि का अपनी मित्रों को याद करना और फिर फोन लगाना।सिद्धि के मनोविज्ञान को लेखक ने जिस तरह से प्रस्तुत किया है, ऐसा शायद सिद्धि स्वयं अपनी गाथा लिखती तो भी इस स्टार तक व्याख्या न कर पाती।

प्रेम एक ऐसा शब्द है, जिसके नाम पर सबसे ज्यादा धोखे हुए हैं, फिर भी हरेक भावुक इंसान प्रेम करता ही है और बहुत बार धोखा खाता है। सिद्धि चाहे कितनी भी आधुनिक हो, भावुक भी उसी दर्जे की है। तभी ना आभासी प्रेम के लिए एक लाख अस्सी हज़ार के गहने बेच दिए। आम लोगों को ये मजाक लग सकता है क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि आत्मनिर्भर स्वतन्त्र स्त्री प्रेम में क्या कर सकती है। उसे रोकना किसी के लिए संभव नहीं। इस बात की यथार्थता को उसी स्तर के स्त्री या पुरुष समझ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि उस स्त्री को उस क्षण पता नहीं होता कि यह प्रेमी उसके साथ छल भी करेगा। लेकिन जब ऐसी स्त्रियों में प्रेम का वेग प्रचण्ड होता है, तो ये स्वनिर्मित, आर्थिक रूप से स्वतन्त्र स्त्रियां झटके में प्रेम के पक्ष में निर्णय लेती हैं, उस समय वे कदापि उसके परिणाम को नहीं सोचतीयहाँ लेखक उसी स्त्री मन की पड़ताल करता है।

स्त्रियों के कई प्रेमियों की कल्पना सामान्यतौर पर हम कर नहीं पाते क्योंकि जिस तरह से पुरुष गर्व से अपनी सहस्त्र प्रेमिकाओं का वर्णन करते हैं, स्त्रियां नहीं करती। और इसलिए इस गलत धारणा को बल मिलता रहा है कि स्त्रियां ताउम्र एक प्रेमी / पति को समर्पित रहती हैं। हर सम्वेदनशील स्त्री के मन में एक आदर्श प्रेमी भी अवश्य होता है और जिनका जितना विस्तार होता जाता है, उसके जीवन में प्रेम की बुभूक्षा उतनी तीव्रतर होती है। शुरुआत में ही लेखक ने लिखा है कि सिद्धि कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उस जैसी कई व्यक्तित्वों का समन्वय है। जाहिर है प्रेम उसके जीवन का अत्यावश्यक तत्व है जिसका आस्वादन वह स्वाभाविक रूप से विभिन्न समय में विभिन्न तरीके से करती जाती है।

साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति को स्वतन्त्र करता है और मुक्त करता है अपराधबोध से कि मैंने यह सोच कर / करके गलत किया। इस उपन्यास को पढ़ने के क्रम में पाठक का परिचय बहुत से ऐसे लोगों से होता है, जो उसे अपने से लगते हैं। उनकी सोच, उनका कर्म उसे  आश्वस्त करता है कि यहाँ कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है सिद्धि की बात की जाये तो उसने विश्व साहित्य पढ़ा है और उसे अपनी किसी भी स्वाभाविक इच्छा पर कोई ग्लानि नहीं। वह हरेक दिन को अपने तरीके से जीती है। उसकी यही स्वछंदता इस उपन्यास को नए स्त्री विमर्श की गाथा के रूप में प्रस्तुत करती है। कहा जा सकता है कि लेखक सिद्धि के माध्यम से नारी- विमर्श की पुरजोर वकालत करता है, देखना ये होगा कि इस नारी-विमर्श को लेखिकाएं और समीक्षक किस रूप में लेते समझते हैं। हाँ एक बात अवश्य है कि स्त्री मन को अच्छे से प्रस्तुत करते हुए भी कुछ बातों पर लेखक उसी धारणा का अनुकरण करता दिखाई देता है जो आज तक चला आ रहा। लेखक लिखते हैं -"पुरुष मन की एक बड़ी विडंबना है, वह कभी एकनिष्ठ प्रेम नहीं कर पाता। एकनिष्ठ प्रेम में उसे स्त्री होना होता है, जो उसके लिए नितांत मुश्किल है।" यहाँ लेखक से असहमति दर्ज की जानी चाहिए। एकनिष्ठता वैयक्तिक गुण है, जिसका स्त्री-पुरुष होने से कोई लेना-देना नहीं। एक बात और महत्वपूर्ण है कि कथा में सिद्धि के जीवन संघर्ष के समय के भावनात्मक पक्ष को लेखक ने ज्यादा तवज्जो दी है, उसके संघर्ष के अन्य पक्षों को थोड़ा और बताया जाता तो रोचकता में और वृद्धि होती।

उपन्यास शुरू से अंत तक रोचकता बनाए रखता है। यही इस उपन्यासकार की विशेषता भी है कि वह बढ़िया किस्साकोई पैदा करता चलता है, और पाठक एक बार पढ़ना शुरू करता है तो पूरा पढे बिना किताब रखने का मन न करे। उपन्यास के कथाक्रम में निरंतरता ही पाठकों को बांधे रखती है। यदि कथा में ठहराव नहीं आता तो पाठक और लेखक के बीच एक अंजाना सा रिश्ता कायम हो जाता हैसंदीप तोमर इस रिश्ते को कायम करने में सफल साबित हुए हैं, कथोपकथन में भी स्वाभाविकता है। भाषा-शैली की बात की जाये कहना होगा कि भाषा सरल, सुबोध और सुगम्य है, शैली में प्रवाह है। लेकिन लेखक कहीं-कहीं सीमा से परे जाकर भी कुछ शब्दों का प्रयोग कर्ता है, यह उपन्यास के कथानक के चलते भी हो सकता है और नायिका की जीवन शैली भी उसकी एक वजह हो सकती है लेकिन अगर बोल्ड लेखन पर बात की जाये तो कृष्ण सोबती के उपन्यास” मित्रों मरजानी या फिर मृदुला गर्ग के उपन्यास चितकोबरा की भी पड़ताल की जा सकती है। हाँ अत्यधिक अङ्ग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग हिन्दी के पाठक को अवश्य ही थोड़ा चकित कर सकता है। उपन्यास में अत्यधिकपटरों के चलते कहीं कहीं पाठक नाम भूल जाने कि गलती भी कर सकता है। लेकिन जागरूक पाठक आयध्यिक पात्रों के साथ भी वहीं रोमांच महसूस करेगा जो कम पात्रों कि रचनाओ के साथ यात्रा करते हुए महसूस होता है।  पात्र संख्या का निर्धारण अमूमन लेखक कथानक की  मांग के हिसाब से ही तय करते हैं।

कहना न होगा कि साहित्य-जगत में नायिका के दृष्टिकोण से लिखे गए आत्मकथ्यात्मक  उपन्यास पुरुष लेखकों द्वारा कम ही देखने को नजर आते हैं। यौन-सम्बन्धों को विषय बनाकर लिखें गए उपन्यासों में सामाजिक, राजनितिक और मनोवैज्ञानिक मापदंडो को अकसार नजरअंदाज किया जाता है लेकिन संदीप तोमर ने इन सब पर भरपूर कलम चलायी है। लेखक के इस उपन्यास का साहित्य जगत में स्वागत किया जाना चाहिए।

160 पृष्ठों की 150 मूल्य वाली यह पुस्तक पठनीय बन पड़ी है। एक अलग तरह के स्वाद के लिए पाठक को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।

 

 

समीक्षक- मेधा झा

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