Saturday, 20 September 2014

क्या होगा

क्या होगा जब राजनैतिक पार्टियों को कार्यकर्ता नहीं मिल रहे होंगे और नेताओं को अनुयायी नहीं पूछ रहे होंगे ?क्या पेड वर्कर की  अवधारणा बलिष्ठ होगी और भारत कि कुछ एजेंसीज राजनितिक पार्टियों के लिए कुछ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता ठेके पर उपलब्ध कराएगी जो चुनावी मौसम में कमाई करेगें और ये भी क्या रोज़गार का एक जरिया होगा ?

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बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये

  पुस्तक समीक्षा  “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...