क्या होगा जब राजनैतिक पार्टियों को कार्यकर्ता नहीं मिल रहे होंगे और नेताओं को अनुयायी नहीं पूछ रहे होंगे ?क्या पेड वर्कर की अवधारणा बलिष्ठ होगी और भारत कि कुछ एजेंसीज राजनितिक पार्टियों के लिए कुछ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता ठेके पर उपलब्ध कराएगी जो चुनावी मौसम में कमाई करेगें और ये भी क्या रोज़गार का एक जरिया होगा ?
Saturday, 20 September 2014
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हिंदुस्तान एकता समाचार-पत्र में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा
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