क्या होगा जब राजनैतिक पार्टियों को कार्यकर्ता नहीं मिल रहे होंगे और नेताओं को अनुयायी नहीं पूछ रहे होंगे ?क्या पेड वर्कर की अवधारणा बलिष्ठ होगी और भारत कि कुछ एजेंसीज राजनितिक पार्टियों के लिए कुछ ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता ठेके पर उपलब्ध कराएगी जो चुनावी मौसम में कमाई करेगें और ये भी क्या रोज़गार का एक जरिया होगा ?
Saturday, 20 September 2014
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बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये
पुस्तक समीक्षा “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...
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जीवन की हर घटना साहित्य नहीं होती ( सन्दीप तोमर आधुनिक समय में साहित्य का उदयीमान नाम है , वे पिछले 22 वर्षो से सतत लेखन कर रहे हैं। उनक...
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एंकर, धनिक और सरकारी कोकटेल - सन्दीप तोमर विक्रम ने एक बार फिर पेड़ पर लटका शव उतारा और कंधे पर लटका कर चल दिया। शव में स्थित बेताल ...
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तिकड़ी नहीं बनी बत्तख पानी के ऊपर कितने चिकने और शांत तरीके से तैरती है , पर , पानी के अन्दर बिना आराम के वह अपना पैर हिलाती है। ऐसा ही ...
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