Friday, 3 January 2025

हिंदुस्तान एकता समाचार-पत्र में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा

 

हिंदुस्तान एकता समाचार-पत्र में प्रकाशित  एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा 

 

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक एस फॉर सिद्धि (उपन्यास)


लेखक – संदीप तोमर 

प्रकाशन वर्ष -2021

मूल्य -150 रूपये

प्रकाशक- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली

एक उपन्यास, कहानीकार, कवि और समीक्षक के उपन्यास की समीक्षा लिखना अवश्य ही चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि उसके उपन्यास सभी मापदंडों पर समरसता बनाये रखते हैं। अपने पहले उपन्यास थ्री गर्लफ्रेंड्स उपन्यास से चर्चा में आए हिंदी साहित्य के  जाने-माने  लेखक संदीप तोमर का उपन्यास  एस फार सिद्धि”  सभी पाठको के जहन में अमिट छाप छोड़ रहा है। “एस फार सिद्धि” संदीप  तोमर का चौथा उपन्यास है।

इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि आधुनिकता के परिवेश में बदलती हुई जीवन शैली, चिंतन, खानपान और रहन-सहन पर संदीप तोमर की गहरी पकड़ है। लेखक इन सभी अवयवों पर अपने उपन्यास के चरित्रों और घटनाओं के माध्यम से कहानी का तानाबाना बुनता है वे प्रतीकात्मकता का प्रयोग करते हुए संकीर्ण मानसिकता और समाज में देह को इस्तेमाल करने वाले पुरुष वर्ग कलाम चलाते हुए स्वतंत्र चिंतन, स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को पाठको के सम्मुख रखते हैं

यौवनावस्था में जो सोंच और अभिलाषाएं जाग्रत होती हैं उसका हमारे व्यक्तित्व पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है जिसे लेखक ने एस फॉर सिद्धि में विभिन्न पात्रों के माध्यम से एक वास्तविक रूप दिया है। इस उपन्यास में महानगरीय जीवन शैली से साथ छोटे शहरों में भी नायिका के तादात्म्य स्थापित करने की कहानी को लेखक बड़ी संजीदगी के साथ रखता है

संदीप तोमर का उपन्यास “एस फॉर सिद्धि” 27 अध्यायों में विभाजित है यानी कि हम यह कह सकते हैं कि यह 27 अलग-अलग कहानियाँ है जो सिद्धि  नामक नायिका के जीवन को प्रतिबिम्बित करते हुए इस उपन्यास को पूर्णता की ओर ले जाती है। यह 27 कहानियाँ नायिका  सिद्धि की हैं जो अपने प्यार को अंजाम देती हैं । कई कहानियों को पढ़कर तो यह लगता है कि शायद यह हमारे आस-पास की ही घटित घटनाएँ हैं। उपन्यास  प्रारम्भ  में  पढते हुए  पाठक को  लगता है कि यह एक प्रेम कथा पर आधारित उपन्यास है लेकिन उपन्यास को अंत तक पढते हुए लगता है कि यह  एक प्रेम कथा नहीं बल्कि हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों का चित्रण है जिसे लेखक ने सिद्धि के माध्यम से उजागर किया है। लेखक ने स्वयं भूमिका में कहा है-“उपन्यास में प्रेम के ताने-बाने को बुना अवश्य गया है लेकिन कहानी में प्रेम केन्द्रीय नहीं है, प्रेम के माध्यम से समाज के स्त्री के विभिन्न पक्षों को उसी के दृष्टिकोण से रखने का प्रयास  किया है। आमस्त्री के सवालों को सिद्धि के माध्यम से यहाँ उठाने को कोशिश की गयी है।“

एक प्रेयसी के अंतर्मन की पीड़ा के स्वर है सिद्धि  के एक-एक कहे वाक्य।   एक औरत कितने पुरुषों से धोखा खाती हैं उसके प्रेम जाल में फंस कर यह लेखक ने बखूबी दर्शाया है एस फार सिद्धि  उपन्यास में। सिद्धि  इस उपन्यास की वह नायिका  है जो है समाज की उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती जो इस बेरहम समाज में हालातों के चलते पग-पग पर जोखिम उठाते हुए  अपनी एक अलग पहचान  बनाती है। एक नारी जब समाज की बेडियों को काटकर अपनी राह चुनती है तो उसे समाज के दकियानूसी मानसिकता के लोगों का सामना करना पड़ता है। एक पुरुष जो मन में आए वह करें लेकिन जब एक औरत अपनी जिंदगी जीना चाहती है तो वह पग-पग पर सड़ी गली पुरुषवादी मानसिकता की शिकार होती है। उपन्यास का एक पात्र अनिकेत हैं जो एक बड़े बिजनेसमैन हैं वो सिद्धि से प्यार करते हैं, अपनी कैंसर से हुई मौत के समय वे सिद्धि को अपने ट्रस्ट का ट्रस्टी बनाता है। वह अपनी नायिका के उपन्यास कमरा नंबर 204 के प्रकाशन तक मौत से अकेला लड़ता है ताकि उसकी प्रियसी अपना उपन्यास पूरा कर सकें। सिद्धि अनिकेत की बिन ब्याही पत्नी है  जिसकी आंखों से प्रेमी की मौत के बाद आंसुओं का सैलाब उतर आता है, क्योंकि अनिकेत से उसका प्रेम आँय प्रेमियों से अलहदा है

लेखक ने इस उपन्यास में आत्मकथ्यात्मक शैली का भरपूर प्रयोग किया है प्रतीत होता है जैसे वह सिद्धि की कहानी स्वयं सिद्धि के रूप में प्रकट होकर कह रहा हो। ऐसा चित्रण पाठक को उपन्यास से आत्मसात होने को विवश कर देता है। संदीप तोमर की कहानी कहने की यह विशिष्ट शैली है कि वे चित्रात्मक खाका खींचते हैं, यह बात किसी स्थान पर मशहूर कहानीकार और अनुवादक सुभाष नीरव भी लेखक के बारे में कहते हैं। लेखक भी अपनी भूमिका में लिखता है- “चुनौती ये रही कि किसी नारी-पात्र की कहानी को आत्मकथ्यात्मक शैली में कैसे कहा जाए, स्वयं को नारी-पात्र बना कहानी कहने का जोखिम था, यानि लेडी व्लादिमीर नोबोकोव का पुनर्जन्म हो चुका था और उसकी परिणति थी उपन्यास “एस फॉर सिद्धि” के रूप में पाठकों को लोलिता का नया संस्करण पढने को मिलने वाला है। असल में मैंने एक ऐसे पात्र की कल्पना की, जिसका भातीय समाज में अस्तित्व होते हुए भी वह किसी बड़े से बड़े लेखक की कृति का हिस्सा नहीं बन पायाइस उपन्यास की ये भी विशेषता है कि लेखक कथानक का बिखराव नहीं मालूम होने देता। सारे घटनाक्रम इस तरह पिरोए गए हैं कि वे पाठक को उपन्यास से संलिप्त रखते हैं।

उपन्यास में नायिका के साथ अलग-लग समय पर अलग-अलग पुरुष पात्र प्रवेश करते है। सिद्धि का उस सबके प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। क्योंकि मन स्नेह को ढूंढता रहता है लेकिन सभी पुरुष पात्र सिद्धि से तादात्म्य स्थापित नहीं कर पातेवे सभी अपनी पिपाषा को शांत केआर उससे किनारा करते जाते हैं, उपन्यस में अनिकेत एकमात्र पात्र है जो प्रेम की परिभाषा पर खरा उतरता है। अनिकेत एक सरल व्यक्तित्व है, वह हृदय से स्पष्ट है उसका प्रेम इस बात में निहित है कि वह मरने से पूर्व सिद्धि के जीविकोपार्जन की समुचित व्यवस्था करता है।

कैसा वैचित्रय है कि सभी पुरुष पात्र नायिका के मन की थाह पाने से वंचित ही रहते हैं, लेकिन नायिका कि विशेषता है कि किसी भी पुरुष के सामने कमजोर पड़ती दिखाई नहीं देती है। और नायिका हर जगह पुरुष  पात्रों से इक्कीस है। कहा जा सकता है कि उपन्यासकार नायिका  को बहुत ही विशिष्ट नारी के तौर पर प्रस्तुत करते है, अमूमन देखा जाता है कि आत्मकथ्यात्मक उपन्यास में लेखक अनावश्यक महिमामंडन करके कृत्रिम माहौल बना देते हैं लेकिन संदीप ऐसा नहीं करते। वे नायिका की अच्छाई-बुराई दोनों को साथ लेकर लेखन कार्य को संपन्न करते हैं ।

सबसे विशेष है इस उपन्यास के कथाक्रम में एक निरंतरता है जो पाठकों को बांधे रखती है। कथा में कहीं भी ठहराव नहीं आता। कथोपकथन में स्वाभाविकता है। जहां तक भाषा-शैली का प्रश्न है, भाषा सरल, सुबोध और सुगम्य है, शैली में प्रवाह है। लेकिन अत्यधिक अङ्ग्रेज़ी भाषा के शब्दों का प्रयोग हिन्दी के पाठक को अवश्य ही चौंकाता है। उपन्यास में एक बात और है-लेखक ने “ अपने पहले उपन्यास थ्री गर्लफ़्रेंड्स” की तरह ही इस उपन्यास में भी अत्यधिक चरित्रों को रखा है, हो सकता है ये कथानक की मांग के हिसाब से रखे गए हों, लेकिन पाठक विभिन्न पात्रों के नामों को लेकर कई बार उलझता भी है। डायमंड बुक्स जैसे बड़े प्रतिष्ठान में भी उपन्यास में प्रूफ रीडिंग कि कमी खलती हैं, टंकण और संसोधनकर्ता को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता यहाँ भी अनुभव होती है।

कहना न होगा कि साहित्य-जगत में नायिका के दृष्टिकोण से आत्म्कथ्यात्मक उपन्यास कम ही देखने को नजर आते हैं, आ भी यौन सम्बन्धों को विषय बनाकर लिखें गए उपन्यासों में सामाजिक, राजनितिक और मनोवैज्ञानिक मापदंडो को नजरअंदाज किया जाता है लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ है, लेखक ने इन सब पर भरपूर फोकस करने का प्रयास किया है। लेखक के इस उपन्यास का साहित्य जगत में स्वागत किया जाना चाहिए।

उपन्यास आने वाले समय में बेस्टसेलर के रूप में प्रसिद्धि पाएगा ऐसा मेरा अनुमान है। संदीप तोमर को एक मार्मिक उपन्यास लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई।

 

 

समीक्षक

राजेन्द्र यादव आज़ाद”

संपर्क सूत्र- 2 / 150

 हाउसिंग बोर्ड, गुप्तेश्वर रोड

दौसा, राजस्थान, पिन 303303

(समीक्षक, एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

शिवना साहित्यिकी में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा

 

शिवना साहित्यिकी में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा 

पुस्तक समीक्षा

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पुस्तक एस फॉर सिद्धि (उपन्यास)

लेखक – संदीप तोमर 

प्रकाशन वर्ष -2021

मूल्य -150 रूपये

प्रकाशक- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली

 

किताब हाथ में है और देख रही हूं इसके मुखपृष्ठ को। शायद सिद्धि को उकेरने का प्रयास किया गया है उसकी एकटक देखती आँखें और चेहरे पर छपे बारीक ढेरों शब्द। मुखपृष्ठ उसके मन की ढेरों इच्छाओं और सवालों को दर्शाता प्रतीत हो रहा है। आगे बढ़ती हूँ तो समर्पण ध्यान आकृष्ट करता है "उनको जिनके लिए पात्र जीवंत हो उठते है"। ऐसी कहन जिस लेखक के पास है, उस उपन्यास को पढ्न और अधिक दिलचस्प हो उठता है।

फिर कथाकार के उद्गार द्वारा उपन्यास की एक झलक मिलती है जिसमें उन्होंने जिक्र किया है व्लादिमीर नोबोकोव के उपन्यास लोलिता का और दावा किया है कि लेडी नोबोकोव का जन्म हो चुका है तब थोड़ा आभास मिलता है कि लेखक स्त्री की दृष्टि से कथा कहने जा रहा है। वैसे भी मेरा तो यहाँ तक मानना है कि लेखक स्त्री, पुरुष, धर्म, जाति से ऊपर होता है, जब वह सृजन कर रहा होता है क्योंकि जन्म के वक्त कोई भी निरा शिशु ही होता है जिसका हम बाद में धर्म, मूल्य इत्यादि निर्धारित करते हैं पढ़ना शुरू कर चुकी हूँ। चाह रही हूँ भूलना कि किसी पुरुष द्वारा रचित है यह स्त्री पात्र, फिर भी जेहन में अटकी है कहीं यह बात कि हाँ, लेखक ने कहा है कि यह आत्मकथयात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है

शुरुआत मेरी जगह से होती है, पटना के जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डे से, तो मेरा पूरा ध्यान आकृष्ट किए हुए है। कथा के साथ दिल्ली, धनवाद, हैदराबाद, मसूरी, मुंबई सब जगह भ्रमण कर रही हूँ और सारे दृश्य आँखों के सामने आते जा रहे हैं। लेखक जो भी लिखा रहा है, उसका एक रेखाचित्र खिचता हुआ चलता है आँखों के सामने। कहना न होगा कि सिद्धि एकदम  परिचित सी लग रही है। उसकी जीवन यात्रा में एक साथ कई जानी-पहचानी अपने दम पर खड़ी लड़कियों की छवि नज़र आती रहती है। कई बार कई चेहरे एक-दूसरे से इतने गड़मड़ से हो ही जाते हैं। लेखक कि यही खूबी भी है कि उसने लेखन प्रक्रिया जो भी अपनायी, छोटे-बड़े शहरों कि कितनी ही सिद्धियों को एक सिद्धि के चरित्र में गूँथ दिया है।

लेखक महीन से महीन छोटी से छोटी बातों का वर्णन इस तरह करता है कि पढ़ते हुए लगता है जैसे अपने आस-पास की ही कहानी है, जिसके पात्र जाने-पहचाने से हैं। सिद्धि के बाहर से आने पर उसे वैसा ही व्यवस्थित कमरा मिलना, बाथरूम में छूटे फेसवाश के पुराने एक्सपायर्ड ट्यूब का ज्यों का त्यों रखा मिलना, लखानी की चप्पलों को बारिश में तैराने का जिक्र –यही  छोटी छोटी बातें लिख देना लेखक के तीक्ष्ण दृष्टि को दिखाता है। बारिश के साथ फिल्मों ने हमेशा प्रेमियों की याद को ही चित्रित किया है।

पाठक को अच्छा लगता है यहाँ स्त्री मनोविज्ञान को समझते हुए सिद्धि का अपनी मित्रों को याद करना और फिर फोन लगाना।सिद्धि के मनोविज्ञान को लेखक ने जिस तरह से प्रस्तुत किया है, ऐसा शायद सिद्धि स्वयं अपनी गाथा लिखती तो भी इस स्टार तक व्याख्या न कर पाती।

प्रेम एक ऐसा शब्द है, जिसके नाम पर सबसे ज्यादा धोखे हुए हैं, फिर भी हरेक भावुक इंसान प्रेम करता ही है और बहुत बार धोखा खाता है। सिद्धि चाहे कितनी भी आधुनिक हो, भावुक भी उसी दर्जे की है। तभी ना आभासी प्रेम के लिए एक लाख अस्सी हज़ार के गहने बेच दिए। आम लोगों को ये मजाक लग सकता है क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि आत्मनिर्भर स्वतन्त्र स्त्री प्रेम में क्या कर सकती है। उसे रोकना किसी के लिए संभव नहीं। इस बात की यथार्थता को उसी स्तर के स्त्री या पुरुष समझ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि उस स्त्री को उस क्षण पता नहीं होता कि यह प्रेमी उसके साथ छल भी करेगा। लेकिन जब ऐसी स्त्रियों में प्रेम का वेग प्रचण्ड होता है, तो ये स्वनिर्मित, आर्थिक रूप से स्वतन्त्र स्त्रियां झटके में प्रेम के पक्ष में निर्णय लेती हैं, उस समय वे कदापि उसके परिणाम को नहीं सोचतीयहाँ लेखक उसी स्त्री मन की पड़ताल करता है।

स्त्रियों के कई प्रेमियों की कल्पना सामान्यतौर पर हम कर नहीं पाते क्योंकि जिस तरह से पुरुष गर्व से अपनी सहस्त्र प्रेमिकाओं का वर्णन करते हैं, स्त्रियां नहीं करती। और इसलिए इस गलत धारणा को बल मिलता रहा है कि स्त्रियां ताउम्र एक प्रेमी / पति को समर्पित रहती हैं। हर सम्वेदनशील स्त्री के मन में एक आदर्श प्रेमी भी अवश्य होता है और जिनका जितना विस्तार होता जाता है, उसके जीवन में प्रेम की बुभूक्षा उतनी तीव्रतर होती है। शुरुआत में ही लेखक ने लिखा है कि सिद्धि कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उस जैसी कई व्यक्तित्वों का समन्वय है। जाहिर है प्रेम उसके जीवन का अत्यावश्यक तत्व है जिसका आस्वादन वह स्वाभाविक रूप से विभिन्न समय में विभिन्न तरीके से करती जाती है।

साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति को स्वतन्त्र करता है और मुक्त करता है अपराधबोध से कि मैंने यह सोच कर / करके गलत किया। इस उपन्यास को पढ़ने के क्रम में पाठक का परिचय बहुत से ऐसे लोगों से होता है, जो उसे अपने से लगते हैं। उनकी सोच, उनका कर्म उसे  आश्वस्त करता है कि यहाँ कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है सिद्धि की बात की जाये तो उसने विश्व साहित्य पढ़ा है और उसे अपनी किसी भी स्वाभाविक इच्छा पर कोई ग्लानि नहीं। वह हरेक दिन को अपने तरीके से जीती है। उसकी यही स्वछंदता इस उपन्यास को नए स्त्री विमर्श की गाथा के रूप में प्रस्तुत करती है। कहा जा सकता है कि लेखक सिद्धि के माध्यम से नारी- विमर्श की पुरजोर वकालत करता है, देखना ये होगा कि इस नारी-विमर्श को लेखिकाएं और समीक्षक किस रूप में लेते समझते हैं। हाँ एक बात अवश्य है कि स्त्री मन को अच्छे से प्रस्तुत करते हुए भी कुछ बातों पर लेखक उसी धारणा का अनुकरण करता दिखाई देता है जो आज तक चला आ रहा। लेखक लिखते हैं -"पुरुष मन की एक बड़ी विडंबना है, वह कभी एकनिष्ठ प्रेम नहीं कर पाता। एकनिष्ठ प्रेम में उसे स्त्री होना होता है, जो उसके लिए नितांत मुश्किल है।" यहाँ लेखक से असहमति दर्ज की जानी चाहिए। एकनिष्ठता वैयक्तिक गुण है, जिसका स्त्री-पुरुष होने से कोई लेना-देना नहीं। एक बात और महत्वपूर्ण है कि कथा में सिद्धि के जीवन संघर्ष के समय के भावनात्मक पक्ष को लेखक ने ज्यादा तवज्जो दी है, उसके संघर्ष के अन्य पक्षों को थोड़ा और बताया जाता तो रोचकता में और वृद्धि होती।

उपन्यास शुरू से अंत तक रोचकता बनाए रखता है। यही इस उपन्यासकार की विशेषता भी है कि वह बढ़िया किस्साकोई पैदा करता चलता है, और पाठक एक बार पढ़ना शुरू करता है तो पूरा पढे बिना किताब रखने का मन न करे। उपन्यास के कथाक्रम में निरंतरता ही पाठकों को बांधे रखती है। यदि कथा में ठहराव नहीं आता तो पाठक और लेखक के बीच एक अंजाना सा रिश्ता कायम हो जाता हैसंदीप तोमर इस रिश्ते को कायम करने में सफल साबित हुए हैं, कथोपकथन में भी स्वाभाविकता है। भाषा-शैली की बात की जाये कहना होगा कि भाषा सरल, सुबोध और सुगम्य है, शैली में प्रवाह है। लेकिन लेखक कहीं-कहीं सीमा से परे जाकर भी कुछ शब्दों का प्रयोग कर्ता है, यह उपन्यास के कथानक के चलते भी हो सकता है और नायिका की जीवन शैली भी उसकी एक वजह हो सकती है लेकिन अगर बोल्ड लेखन पर बात की जाये तो कृष्ण सोबती के उपन्यास” मित्रों मरजानी या फिर मृदुला गर्ग के उपन्यास चितकोबरा की भी पड़ताल की जा सकती है। हाँ अत्यधिक अङ्ग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग हिन्दी के पाठक को अवश्य ही थोड़ा चकित कर सकता है। उपन्यास में अत्यधिकपटरों के चलते कहीं कहीं पाठक नाम भूल जाने कि गलती भी कर सकता है। लेकिन जागरूक पाठक आयध्यिक पात्रों के साथ भी वहीं रोमांच महसूस करेगा जो कम पात्रों कि रचनाओ के साथ यात्रा करते हुए महसूस होता है।  पात्र संख्या का निर्धारण अमूमन लेखक कथानक की  मांग के हिसाब से ही तय करते हैं।

कहना न होगा कि साहित्य-जगत में नायिका के दृष्टिकोण से लिखे गए आत्मकथ्यात्मक  उपन्यास पुरुष लेखकों द्वारा कम ही देखने को नजर आते हैं। यौन-सम्बन्धों को विषय बनाकर लिखें गए उपन्यासों में सामाजिक, राजनितिक और मनोवैज्ञानिक मापदंडो को अकसार नजरअंदाज किया जाता है लेकिन संदीप तोमर ने इन सब पर भरपूर कलम चलायी है। लेखक के इस उपन्यास का साहित्य जगत में स्वागत किया जाना चाहिए।

160 पृष्ठों की 150 मूल्य वाली यह पुस्तक पठनीय बन पड़ी है। एक अलग तरह के स्वाद के लिए पाठक को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।

 

 

समीक्षक- मेधा झा

हिंदुस्तान एकता समाचार-पत्र में प्रकाशित एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) की समीक्षा

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