my thoughts: रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी
मुठ्ठी के र...: रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी मुठ्ठी के रेत सी निकलती है जिन्दगी ख्वाबों की आरज़ू में भटका हूँ दर- बदर किस ख्वाहिश में यूँ ...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये
पुस्तक समीक्षा “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...
-
जीवन की हर घटना साहित्य नहीं होती ( सन्दीप तोमर आधुनिक समय में साहित्य का उदयीमान नाम है , वे पिछले 22 वर्षो से सतत लेखन कर रहे हैं। उनक...
-
एंकर, धनिक और सरकारी कोकटेल - सन्दीप तोमर विक्रम ने एक बार फिर पेड़ पर लटका शव उतारा और कंधे पर लटका कर चल दिया। शव में स्थित बेताल ...
-
तिकड़ी नहीं बनी बत्तख पानी के ऊपर कितने चिकने और शांत तरीके से तैरती है , पर , पानी के अन्दर बिना आराम के वह अपना पैर हिलाती है। ऐसा ही ...
No comments:
Post a Comment