Sunday, 18 September 2022

विक्रम बेताल टॉक

 


एंकर, धनिक और सरकारी कोकटेल

 - सन्दीप तोमर 

विक्रम ने एक बार फिर पेड़ पर लटका शव उतारा और कंधे पर लटका कर चल दिया। शव में स्थित बेताल ने कहा-“हे विक्रम तेरा हठ प्रशंसनीय है। रास्ता लंबा है सो तुझे अधिक थकान न हो इसलिये एक कथा सुनाता हूँ। कथा के आखिर में मैं तुझसे सवाल पूछूंगा, अगर तूने जानते-बूझते सही जवाब न दिया तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे और अगर तेरा जवाब सही हुआ तो मैं वापस उड़ जाऊँगा।“

बेताल ने कथा शुरू की- सुन विक्रम! ये कहानी है तो छोटी सी पर इसके मायने बड़े हैं। आर्यावर्त के भरत खंड में एक देश हुआ करता था। देश था तो लोग थे, सरकार थी और मीडिया भी था। सरकार के कुछ आलोचक थे, कुछ समर्थक परन्तु भगत ज्यादा थे।

सरकार जानती थी कि देश में बिना धनिकों का अनुगामी बने लम्बे समय तक भगतों के दिलों में स्थान नहीं बनाये रखा जा सकता है। धनिकों ने मिडिया को खरीद सरकार के गुणगान में लगा दिया। अब भगत जो चाहते थे वो देखते थे और जो नहीं देखना होता था वो नहीं देखते थे। लेकिन उसी समय एक मिडिया घराना था जो सरकार और धनिकों की मिलीभगत की पोल खोलता रहता था। एंकर खुद को सबसे महंगा जीरो टीआरपी एंकर कहता था, जिसे उसके चेहतों के साथ-साथ उसके विरोधी और सरकारी भगत भी देखते थे। उसका एंकर और मालिक सरकार और धनिकों की किरकिरी बन गये।

एक दिन सरकारी उदारता से बने सर्वाधिक धनिक ने समय और नीतियों का लाभ उठा अंतिम साँस लेते उक्त मिडिया के शेयर खरीद मालिकाना हक की जुगत लगानी शुरू कर दी। अब न सरकार चुप, न  मीडिया चुप और न ही समदर्शी भगत भी चुप रहे। चारों तारफ एक ही सवाल था- अब जीरो टीआरपी एंकर का क्या होगा? हल्ला मच गया। बड़े बड़े कयास लगाये जाने लगे, चर्चा जोरो पर थी कि एंकर का कैरियर तवाह हो जायेगा। भगत कहते न थकते कि अकेला चना कब तक भाड़ फोड़ता? कुछ को यह भी कहते सुना गया कि अब एंकर सरकार की शरण में चला जायेगा। एक जुमला चला- धनिक और सरकार एंकर को न खरीद पाए तो उसके मालिक को खरीद लिया। चर्चा ये भी हुई कि एंकर खुद का मिडिया घराना बना लेगा।

अब तू बता विक्रम - क्या एंकर सरकार और धनिक के सामने घुटने टेक देगा? क्या उसके समर्थक उसके लिए कोई उपाय खोजेंगे या फिर  वह गुफाओं की कंदराओं में जाकर समाधिस्थ हो जायेगा? याद रख- अगर तूने जानते-बूझते जवाब न दिया तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।“

विक्रम ने कहा – “हे बेताल! अंध-भक्ति से अधिक भयानक कुछ नहीं होता। अन्याय और सरकार के जन-विरोधी कार्यों को उजागर करना मीडिया का दायित्व है, उसे बिना लागलपेट के सारी ख़बरें देश और दुनिया के सामने लानी चाहिए। एंकर को बाकायदा घोषणा कर देनी चाहिए कि मेरे चैनल छोड़ने की खबर उतनी ही अनोखी है जितना सरकार प्रमुख का मेरे समाने बैठ साक्षात्कार देना।  समर्थकों और विरोधियों का दायित्व है कि वे विधवा-प्रलाप न करें। धनिकों को मिडिया से अधिक अपने व्यवसाय और व्यवसाय की सुचिता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। एंकर को क्या करना है ये उसके विवेक पर छोड़ दिया जाए।“

बेताल बोला-“तू धन्य है विक्रम। तू वाकई सच्चा न्यायप्रिय राजा है। मैं तुझे साधुवाद देता हूँ लेकिन तूने तो सही जवाब दे दिया सो मैं चला।“

यह कहकर बेताल विक्रम के कंधे से उड़ा और फिर उसी पेड़ की उसी डाल पर वापस उल्टा लटक गया।

12 comments:

  1. संदीप जी, यह अलग और दिलचस्प है।

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    1. ये सीरीज लिखी जा रही है।

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  2. अच्छे ट्रैक पर हो, चलते रहो। शुभकामनाएं💐

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  3. समसामयिक व्यवस्था पर गहरा तंज

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  4. मौजूदा हालात को आईना दिखाता एक और अनूठा प्रयास

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. कुल मिलाकर बेताल को भी आख़िर राजा विक्रम ने अपना भगत बना ही लिया।

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    1. जी, आपको लगा तो सहमत होना ही पड़ेगा

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