एक अपाहिज की डायरी (आत्मकथा)
आत्मकथा
का पहला पार्ट- "एक अपाहिज की डायरी” पाठकों के बीच रखने हुए गौरव का अनुभव
हो रहा है। 122 पृष्ठ की इस गाथा में ‘संदीप तोमर’
यानि मेरे जीवन की वो कडुवी दास्तान है जिसे लिखने का साहस बहुत लोगों में नहीं
होता।मैं भी ऐसा साहस नहीं रख पाता यदि मेरे पिताश्री “श्री हरिसिंह तोमर” ने मुझे
भट्टी में तपाकर कुंदन न बनाया होता, आज मैं जहाँ हूँ, जो भी हूँ, उसका ९९% श्रेय
उन्हीं को जाता है, बाकि सब तो सप्लिमेंट्री हैं। इस सम्पूर्ण गाथा को लिखते हुए
मैंने बहुत ईमानदारी बरतने की कोशिश की है। “मोहनदास करमचंद गाँधी” तो मैं हूँ
नहीं, जो “सत्य के मेरे प्रयोग” जैसी रचना हम लोगों को दे गए।जो सच को लिखने का एक
प्रभावी दस्तावेज है और आत्मकथा लिखने वाले रचनाकारों के लिए प्रेरणा-ग्रन्थ।
कुछ
लोगों को शीर्षक से आपत्ति हो सकती है। लेकिन वास्तव में शारीरिक विकलांगता के
चलते जो कष्ट जीवन भर मिले उन्हें आज सोचता हूँ तो इससे उपयुक्त शीर्षक नही पाता
हूँ।मेरे साहित्यिक मित्र और प्रेरणा स्वरुप अग्रज भाई “श्री अनिल शूर ‘आजाद’ ने
मुझसे कहा- शीर्षक एक जाँबाज की डायरी रखिये, मैं जानता हूँ आप जाँबाज हैं, और
इतना साहस है कि आप सच को मुखर होकर लिखते हैं।
मेरी
सोशल नेटवर्किंग से बनी दोस्त ‘गीता कैथल का कहना था-“आपको
सशक्त सबल स्पष्टवादी लेखक, विचारक के साथ एक बेहतरीन इंसान के रूप ही पाया है, जाने
क्यों आज यकीन करने का मन नही कर रहा, पर जो भी है यह इस बात का प्रमाण है कि जो भी
जाना, कम ही जाना, आप उससे कही ज्यादा आगे हैं। हमें इस पुस्तक का बेसब्री से
इंतजार रहेगा।“ इसी के साथ उन्होंने हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की।
पितातुल्य
मार्गदर्शक “श्री सूरजमल रस्तोगी” जी का मत है-“श्री तोमर
जी,निस्संदेह
आप स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध हैं। जान मिल्टन ने एक कविता लिखी थी ‘ऑन हिज ब्लाइंडनेस’ जिसमे
उन्होंने स्पष्ट किया था – ‘माना कि मेरी आँखों की रोशनी नहीं हैं लेकिन मुझे
ईश्वर ने इसके बदले में एक और शक्ति दी है जिससे मैँ समाज की सेवा कर सकता
हूँ और वह है काव्य सृजन’।आपको भी मैं उसी रूप में पाता हूँ, जो साहित्य के माध्यम
से लोगो के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
हां, मैँ
आस्तिक हूँ और उस एक शक्ति में विश्वास रखता हूँ। आप सच्चे हैं, यह सही है
किंतु कहीं आंशिक रूप में ही क्यों न हो, एक नैराश्य आपके उपरोक्त कथन में अवश्य
है।“
हो सकता
है कि मेरे किन्हीं वक्तव्यों से उन्हें या किसी अन्य शुभचिंतक को नैराश्य का भाव
लगे लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि
“दरिया
होकर भी समुन्द्र में खो यूँ जाना मंजूर न था
हम वो हैं
जो अपने रास्ते खुद तलाश किया करते हैं।
-----संदीप
तोमर
क्रमशः
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