Wednesday, 10 January 2018

संदीप तोमर/ “अब सांस नहीं ली जाती”/ एक लघु सी कथा


“अब सांस नहीं ली जाती”


पलाश अब हमेशा खुश रहने का प्रयास करता, वह पहले की तरह पत्नी के प्रति रुखा व्यवहार नहीं करता था। न ही गुस्सा ही करता। जहाँ पहले वह आफिस के काम के बोझ के चलते झल्ला पड़ता था अब वह एकदम फ्री  माइन्ड रहने की कोशिश करता।
पत्नी उसके इस व्यवहार से हैरान थी साथ ही संसयित भी। पत्नी रोज की गतिविधि पर नजर रख रही थी। वह रोज किस-किस से कब फोन पर बात करता है, कितना समय मोबाइल और लैपटॉप पर देता है आदि आदि।
आज सुबह जैसे ही वह नहाने के लिए बाथरूम में घुसा था, पत्नी ने उसके पूरे मोबाइल को कंघाल दिया था। हर आशंका से बेखबर वह पहले ऑफिस गया फिर उसे ध्यान आया- रात का सीने का भयानक दर्द, वह सीट से उठा और अस्पताल की ओर चल दिया
अस्पताल के परिसर में घुसा ही था कि कंचन से मुलाकात हो गयी।
"
पलाश तुम यहां कैसै?"
"
कल रात सीने में कुछ प्रोब्लम थी तो चेकअप कराने आया था।"-उसने नपातुला जवाब दिया।
"तुम आजकल मुझसे दूरी क्यों बनाये हो? क्या मैं तुम्हें जबर्दस्ती बांधती हूँ?"- कंचन ने कहा।
“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है।“-पलाश बोला।
“ अच्छा सुनो, आज तुम्हारे घर में कुछ बात हुई क्या?”
“नहीं, कुछ भी तो नहीं।“
"आज तुम्हारी पत्नी का मेरे मोबाइल पर कॉल आया था, उसने मुझको गाली देकर जलील किया, मैं चुपचाप सुनती रही, बोली- तुम्हारे पति के सामने तुमको एक्सपोज करुँगी।"
“ओह उसने ये सब किया, मुझे अफ़सोस है।“
"हाँ पलाश, इस प्रेम को कोई समझ नहीं सकता, जो मुझे धमकी दे सकती है वह कल तुम्हें भी सबके सामने बेज्जत कर सकती है?”
“हाँ, कंचन, मैं तो अब घर में शांत ही रहता हूँ, मैंने जीने के तरीके ढूंढ लिए हैं।“
“मैं समझ सकती हूँ तुम कितना सहन रहे हो, इसलिए शायद मुझे तुमसे दूर हो जाना चाहिए।"
"
मै तो रोज ही उसके तीखे बाणों को झेलता हूँ। तुम भी दूर हो जाओगी तो कैसे जी पाऊंगा?"
कंचन की ऑंखें डबडबा रही हैं.... वह वार्ड की ओर बढ़ चली, पीछे-पीछे पलाश चल रहा है। वह वार्ड के अन्दर जाकर एक कमरे की ओर बढ़ी, जिसमें दो बेड लगे हुए हैं। वह पहले बेड के पास जाकर रुक गयी। पलाश कुछ भी समझ पाने की स्थिति में नहीं है। बेड पर लेटा युवक ऑंखें बंद किये है, कई मशीने उसके शरीर पर लगी हैं, आक्सीजन मास्क भी लगा है। ह्रदय गति के ग्राफ बहुत डगमगाया है।
तभी पलाश ने पूछा-“ ये कौन हैं? आप तु यहाँ कैसे?”
“पलाश ये मेरे पति हैं, कैंसर की लास्ट स्टेज में हैं। शायद ही..... ।“
“लेकिन तुमने तो मुझसे हमेशा कहा कि तुमने शादी नहीं की।“
वह कुछ जवाब देती इससे पहले एक कर्कश आवाज उसके कानों में गूंजी-“ पलाश तुम तो ऑफिस गए थे फिर यहाँ?”
पलाश ने पीछे मुड़कर देखा, यह उसकी पत्नी की आवाज थी, वह मन ही मन बुदबुदाया-“ कंचन का पति... आक्सीजन नली से सांसे ले रहा है और मेरी नली पर तुम पैर जमाये खड़ी हो, जब चाहो पैर हटा दो, जब चाहो दबाव बढ़ा दो।“


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