Wednesday, 10 January 2018

एक अपाहिज की डायरी (आत्मकथा)- संदीप तोमर

एक अपाहिज की डायरी (आत्मकथा)


प्रथम भाग 
1

मैं चार भाई बहन में सबसे छोटा थाजन्म से पहले कच्चे मकान में रहता था परिवार मेरे आने की सूचना मात्र के समय से नया पक्का मकान बनने लगा आलम देखिये कि इधर पक्का मकान बनकर तैयार हुआ और उधर मुझ शिशु का आगमन हुआ साढ़े पांच किलो वजन का हस्ट-पुष्ट बालक, मोहल्ले में शोर मच गया कि बड़ा मोटा-ताज़ा बेटा हुआ है नए मकान में नयी खुशियां, पिताजी को लगा कि लड़का भाग्यवान हैजिसके आने की खबर मात्र से मेरा नया मकान बन गया सारे परिवार का ध्यान जैसे उस एक नवजात बालक पर केन्द्रित हो गयासुप्रिया भाई के पास आती और उसे छूकर चली जाती, माँ को देखती तो मायूस हो जाती, उसे लगता माँ अब मेरे लिए खाना भी नहीं बनाती, ऐसा क्या हुआ माँ को? और ये बच्चा जिसे सब मेरा छोटा भाई कह रहे हैं ये क्यों आया? अब माँ किसी को नहलाती भी नहीं दादी कहती है- बेटा अभी ४० दिन तक माँ जच्चा-घर में रहेगीसुप्रिया हर बात पर गौर करती जैसे उसे सब पारिवारिक दायित्व अभी से सीख लेने हैं सुप्रिया बमुश्किल साढ़े तीन-चार साल की होगी, ६ दिन बाद घर में त्यौहार जैसा माहौल था
सुप्रिया ने दादी से पूछा -"दादी आज क्या हो रहा है?'
"मेरी बच्ची आज तेरे भाई की छटी है"
"ये छटी क्या होती है दादी?"
"जब कोई बच्चा होता है तो छ: दिन बाद जच्चा बाहर निकलती है, उसे छटी कहते हैं"
"आज क्या होगा?"
"आज सब घर परिवार वालो का खाना हमारे घर में होगा, दाल-चावल और रोटियां बनेगीं, तेरी सारी दादियाँ और ताइयाँ खाना बनायेंगी..."
"दादी मैं भी खाना बनाउंगी"
"मेरी बच्ची अभी तू छोटी है, जब बड़ी हो जाएगी तो सारा काम सीख लेना, लड़कियों के भाग्य में तो सारे काम लिखें हैं"
“दादी मेरा भाई भी खाना खायेगा?"
"पगली! वो अभी ६ महीने माँ का दूध पिएगा, फिर उसे ऊपर का कुछ खिलाना शुरू करेंगेअभी तो तू अपने बड़े भाई सुकेश और छोटे भाई नीलू के साथ खाना खाना"
दादी सुकेश भैया मुझे मारते हैं, मैं उनके साथ नहीं खाने वाली और नीलू की तो नाक बहती रहती है"
"चल पगली वो तेरे भाई हैं, ऐसे नहीं बोलते एक तेरा बड़ा भाई है और दूसरा छोटा..."
"दादी मेरा भाई तो छोटू है, मेरा छोटू, हम उसका नाम छोटू रख दें?"
"चल पगली, छोटू कोई नाम थोड़े ना होता है"
"एक बात बता दादी ये तू मुझे चल पगली--चल पगली क्यों बोलती है, मैं दादा से तुझे पिटवाउंगी"
"
अच्छा तेरा दादा मुझे पीटेगा? उसे रोटी नहीं खानी?"
और इस तरह मुझे छोटू नाम मिल गयाजैसे-जैसे मैं थोडा बड़ा होता गया, सुप्रिया का दुलारा बनता गया.. माँ ने चालीस दिन बाद घर के काम देखने शुरू किये तो सुप्रिया मुझे गोद में लेकर बैठने लगी स्कूल तो अभी सुकेश के अलावा कोई जाता नहीं थामैंने अपनी उम्र से पहले ही बैठना और घुटनों के बल चलना शुरू कर दियानौ महीने का हुआ तो खड़ा होकर चलने लगा पास-पड़ोस की औरतें आती तो कहती- “अरे देखो सुदीप कैसे पैर उठाता है? अमूमन बच्चे 1 साल के होते हैं तो पहला कदम रखते हैं जब सुप्रिया किसी को मेरे बारे में कुछ कहते सुनती.. तो कहती- "चाची मेरे भाई को नजर मत लगाओ"
चाचियाँ उसकी बात पर हँस देती अभी मैं ११ महीने का हुआ तो उसे बुखार हुआसारा शरीर आग सा तप रहा था, माँ ने मुझे डाक्टर के पास ले जाने का उपाय सोचा, पिताजी ऑफिस गए हुए थे दादी ने बीच में अडंगा लगा दिया.. -"तू घर की बहु है अकेले लड़के को लेकर जाएगी.. जयें का पानी उबाल कर पिला दे.. ठीक हो जायेगा..बड़ी आई डाक्टर के पास जाने वाली"
माँ दादी के सामने बोलती नहीं थीदादी ने डाक्टर के पास नहीं जाने दिया शरीर का ताप बढ़ता ही जा रहा था.. माँ ठन्डे पानी की पट्टी मेरे सर पर रखती, बदलती शाम हुई तो पिताजी घर आये, मेरे माथे पर हाथ लगाया, मेरा बदन अभी भी तप रहा था.. माँ को साईकिल पर बैठा शहर के डाक्टर के पास ले गए पैर लटके हुए थे कोई हलचल नहीं हो रही थी, डाक्टर ने चेक-अप करके बताया--"मास्टर साहब इसे पोलियो हुआ है"
पिताजी अध्यापक थे तो पोलियो का नाम सुन रखा था लेकिन माँ इस नाम से अनजान थी, पूछ बैठी -"डाक्टर साहब ये पोलियो क्या होता है?"
बहन जी जिसे लोग आम बोलचाल में फालिस कहते हैं, अब ये लड़का चल फिर नहीं पायेगा, मैं बुखार की दवा दे देता हूँ" यहाँ इसका अभी कोई इलाज नहीं, हाँ जिले में एक डाक्टर सलूजा हैं वो कुछ कर दें तो आपका भाग्य, ये बीमारी बड़ी ख़राब है इससे नसें मर जाती है खून का दोर बंद हो जाता है"
माँ तो रोने ही लगी, रोते-रोते बुरा हाल था शाम घिर आई थी, पिताजी, माँ और मुझको लेकर घर आयेघर आकर दादी ने पूछा क्या हुआ? पिताजी ने बताया –“माँ तेरे पोते को फालिश मारा है"
दादी ने सुना तो रोना शुरू.. सुप्रिया सब देख रही थी, बोली किसी से नहीं उसे समझ नहीं आया कि उसके छोटू को क्या हुआ? बस समझ रही थी कि कुछ गलत हुआ है उसका छोटू रोये जा रहा था, माँ से पूछा-“माँ मेरे छोटू भाई को क्या हुआ, ये रोता चुप क्यों नहीं होता?"
माँ ने बेटी को गले लगा लिया-"कुछ नहीं मेरी बच्ची, बुखार है ठीक हो जायेगा"
"माँ ये तो आज रोज़ की तरह पैर भी नहीं चला रहा माँ, भाई ठीक तो हो जायेगा ना?"
माँ ने बेटी से सुना तो उसकी रुलाई फूट गयी, सुप्रिया को समझ ही नही आया कि माँ क्यों रो रही है?
डॉ. भार्गव के सुझाव को मान पिताजी मुझे लेकर जिले के नामी गिरामी डॉ. सलूजा के पास गएडॉ सलूजा के क्लिनिक में पोलियो के मरीजों की भीड़ थी, पर्ची कटवा कर माँ और पिताजी हमारी बारी का इंतज़ार करने लगे माँ बेहद परेशान, पिताजी चिंताकुल अपनी बारी आने पर मुझे ले डॉ. के केबिन में गए डॉ. ने चेक-अप किया और बड़े अनोखे अंजाद में बोला-" भाई साहब पोलियो बेहद खतरनाक बीमारी है और इस बच्चे को इसका असर दायें पैर में ज्यादा है, असर बाएं पैर में भी है, इसका इलाज लम्बा चलेगा.."
डॉ साहब ये रोग कैसे होता है? क्या ये बुखार में हवा लगने वाला रोग है?"
"नहीं ऐसा कुछ नहीं है दरअसल लोग इस रोग के लक्षण और वजह दोनों ही नहीं जानते इसलिए गलतफहमी पाल लेते हैपोलियो एक संक्रामक रोग है जो पोलियो-विषाणु से मुख्यतः छोटे बच्चों में होता है। यह बीमारी बच्चें के किसी भी अंग को जिन्दगी भर के लिये कमजोर कर देती है।"
"लेकिन ये होता कैसे है-"पिताजी अध्यापक थे तो उन्हें ये सब जानने की उत्सुकता थी
"मल पदार्थ से पोलिया का वायरस जाता है। ज्यादातर वायरस युक्त भोजन के सेवन करने से यह रोग होता है। यह वायरस श्वास-तंत्र से भी शरीर में प्रवेश कर रोग फैलाता है।"
“डॉ. साहब ये तो आप एकदम नयी बात बता रहे हैं"
“जी भाईसाहब दरससल लोगो को इस बारे में अल्प ज्ञान है इसलिए भ्रांतियां पाल लेते हैं"
"लेकिन डॉ साहब ये तो नसों को मारता है और हड्डियां भी कमजोर करता है"
"नहीं,, पोलियो मॉंसपेशियों व हड्डी की बीमारी नहीं है बल्कि स्पायइनल कॉर्ड व मैडुला की बीमारी है। स्पाइनल कॉर्ड मनुष्य का वह हिस्सा है जो रीड की हड्डी में होता है।"
“इसका मतलब तो ये हुआ कि स्पाइनल कॉर्ड की बीमारी होने के कारण मरीज ठीक नहीं हो सकता"
"ऐसा भी नहीं है, वैसे तो लोगो का मानना है कि ये रोग लाईलाज है लेकिन मैं एक डॉ. हूँ मेरा फर्ज है कोशिश करना"
"लेकिन क्या आप इसके इलाज की गारंटी लेंगे?"
"देखिये! डॉ. कोई भगवान नहीं होता, उसका फर्ज होता है कोशिश करना"
"अच्छा डॉ. साहब ये लकवा जैसा तो नहीं है?"
"लोगो में ये भी भ्रान्ति है कि ये लकवा है, पोलियो वासरस ग्रसित बच्चों में से एक प्रतिशत से भी कम बच्चों में लकवा होता है।"
"पोलियों ज्यादातर बच्चो को ही क्यों होता है?"
"ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चों में पोलियों विषाणु के विरूद्ध किसी प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती है इसी कारण इसका वायरस बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है"
"डॉ साहब आप मेरे बच्चे को ठीक कर दीजिये"
"कोशिश करना मेरा फर्ज है, आप बाहर काउंटर पर फीस जमा करा दीजिये, मैंने दवाई लिख दी हैमेरा कम्पौंडर दवाई बना देगा"
“जी डॉ साहब"-कहकर पिताजी बाहर आयेकम्पौंडर ने दवाई का पूडा हाथ में थमा दिया और १०० रूपये फीस मांगी पिताजी की तन्खवाह बमुश्किल १५० रूपये माहवार और डॉ की एक विजिट की फीस १०० रूपयेसुनकर पिताजी कुछ चौंकें, पूछा-"ये फीस पूरे महीने की है?"
"नही भाई साहब, ये एक बार की फीस है, अभी पंद्रह दिन की दवाई दी है अगली विजिट पर डॉ साहब देखेंगे कि दवा असर कर रही है या नहीं, असर करेगी तो ये ही दवा दी जाएगी नहीं तो फिर दवा बदल देंगे" 
फीस जमा करके पिताजी बाहर आयेबस पकड़ कर घर वापिस पहुंचेदिमाग घूमता रहा... १०० रूपये फीस ...और महीने में कमाई १५० रूपये.. और तीन बच्चे .... साथ में माँ और पिताजी भी.....बड़े भाइयों का कोई सहारा नहीं.. कैसे होगा? कहाँ से पैसा आएगा? कैसे इलाज होगा? लगातार दो साल तक डॉ. सलूजा का इलाज चलता रहा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआपिताजी ने अपना और बच्चो का पेट काटकर इलाज में पैसा लगाया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला, तब कहीं और इलाज कराने का सोचा
किसी ने बताया कि दिल्ली के नारायणा विहार में एक डाक्टर हैं जो पोलियों का इलाज करते हैं माँ-पिताजी दोनों मुझे लेकर नारायण विहार आ गए, डाक्टर से बात हुई फिर वही जबाब मिला- डॉक्टर भगवान नहीं होता, कोशिश ही कर सकता है, आपको बच्चे को लेकर हफ्ते में दो बार आना होगा 
"आप इलाज कैसे करते हो?"-- पिताजी ने जिज्ञासा प्रकट की
"हम बिजली की मशीनों से शरीर में झटके देकर खून का दौर पुनः चालू करने की तकनीक से इलाज करते हैं इससे नसों में जमा खून फिर से शरीर में प्रवाहित होना शुरू हो जाता है"--डॉ मुद्गल ने बताया
पिताजी को अजीब लगा लेकिन क्या कर सकते थे? औलाद का दुःख ही माँ-बाप के लिए सबसे बड़ा दुःख होता है एक आस की किरण की तलाश में पिताजी जगह-जगह की खाक छान रहे थेबस बेटे को कहीं से आराम लग जाए, ये ही उम्मीद लेकर उन्होंने इलाज करने का फैसला कर लिया
अब समस्या थी कि प्राइवेट स्कूल की नौकरी से छुट्टी लेकर कैसे इलाज कराया जाये? बड़े ही मुश्किल हालात थे, माँ ने ये जिम्मा लेने की ठानी, लेकिन चार-चार बच्चो का पालन-पोषण करना जिनमें से तीन अब स्कूल जाने लगे थे और फिर १३० किलोमीटर दूर आना-जाना एक ही दिन में करना, बड़ा ही दूभर काम थासास-ससुर का खाना बनाना, पशुओं के चारे का प्रबंध करना, कैसे होता होगा ये सबदादी को लगा कि बहु अपने बेटे के चक्कर में मुझ पर काम का बोझ न बढ़ा दें इसलिए उसने अपने बड़े बेटे के पास जाने का फैसला कर लिया माँ बेटे को लेकर आई तो सास ने फरमान सुना दिया अपने बच्चो का खुद इंतजाम करना, मैं किसी की कोई आया या नाइन नहीं हूँ.. जो इन टाब्बरों को सारे दिन हांकती रहूँउस दिन सास-बहु में झगडा हुआ माँ को लगता कि सास डाक्टर के पास जाने देती, समय पर बुखार का इलाज हो जाता तो आज मेरे सुदीप को ये सब न होता 
रात को पिताजी ने पत्नी को समझाया कि इस रोग में बुखार बाद में होता है ये बुखार से होने वाला रोग नहीं है तुम क्यों माँ से लड़ रही हो और अगर उसे भाई के पास ही रहना है तो रहने दो हमें अपने बच्चो की परवरिश खुद करनी हैं

अगले दिन दादी अपने बड़े बेटे के यहाँ चली गयी लेकिन दादा ने अपने छोटे बेटे के साथ रहने का फैसला किया

क्रमशः 

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