तेरहवां भाग
थर्ड इयर शुरू हो गया। बबलू ने चिन्मिया डिग्री कॉलेज हरिद्वार में
अपना ट्रांसफर करवा लिया था। अभी थर्ड इयर की पढाई ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी, और
कॉलेज में गर्मागर्मी का माहौल शुरू था, प्रिंसिपल पाण्डेय के खिलाफ पूरा माहौल
था, लेकिन स्टूडेंट्स उसके पक्ष में थे, प्रवक्ता हड़ताल के मूड में थे। मिस्टर
गुप्ता फिजिक्स पढ़ाते थे, वो प्रवक्ता यूनियन में किसी पद पर थे। मैं भी तब तक एक
राजनीतिक पार्टी के छात्र-संगठन का सदस्य बन गया था। संगठन मुझे किसी बड़े पद पर
लाना चाहता था लेकिन मैंने केवल थर्ड इयर का स्टूडेंट रिप्रेसेंटेटिव बनना स्वीकार
किया, मेरा मत था कि पद बड़ा नहीं होता, काम बड़ा होता है। डंकल प्रस्ताव पर रोज
चर्चा होती थी, मेरे सुझाव पर पूरे शहर में स्टूडेंट्स द्वारा एक जुलूस निकाला
गया, जिसमे डंकल प्रस्ताव का विरोध किया गया था, खूब नारेबाजी हुई, पुलिस से भी
झड़प हुई, मुझे इस आन्दोलन से काफी हाईप मिली थी, हालाकि विज्ञान वर्ग का होने के
चलते राजनीति से बचना भी चाहता था। प्रेक्टिकल के मार्क्स का भी बड़ा पंगा रहता था।
जो फिजिक्स में ट्यूशन नहीं लगाता उसे मार्क्स नहीं मिलते, विपिन और मैं दोनों ही
तब ट्यूशन लगाते जब एग्जाम के दो-तीन महीने शेष रहते।
पाण्डेय साहब के खिलाफ माहौल बन रहा था, मेरी चर्चा भी काफी
प्रवक्ताओं के बीच थी, कॉलेज स्टाफ ली मीटिंग में तय हुआ कि किसी तरह कॉलेज में
स्टूडेंट्स से हड़ताल करायी जाए। लेकिन पूरा संगठन पाण्डेय के साथ खड़ा था, ऐसे में
हड़ताल की कैसे सोची जा सकती थी, ये काम गुप्ताजी को दिया गया। गुप्ताजी ने मीटिंग
में कहा-“एक लड़का है, मेरे पास फिजिक्स पढने आता है, स्टूडेंट्स में उसका प्रभाव
है, उससे मनाया जा सकता है अगर उसे हमने कन्विंस कर लिया तो हडताल पक्की, फिर इस
पाण्डेय को कुर्सी छोड़कर भागना पड़ेगा उसके बाद कंसल साहब या माथुर साहब में से किसी
एक का प्रिंसिपल बनना तय।“
गुप्ताजी को ये जिम्मेदारी देकर मीटिंग समाप्त हो गयी थी।
पाँच बजे विपिन और मैं गुप्ताजी के पास पढने गए, एक घंटा पढ़ाने के
बाद गुप्ताजी ने सब स्टूडेंट्स को भेज दिया लेकिन मुझे बोला-“सुदीप आप अभी रुकिए,
आपसे जरुरी बात करनी है।“
मुझे ये अंदेशा तो था कि कुछ खिचड़ी पक रही है, मेरी राजनीति पर
पूरी नजर थी, पल-पल की खबर भी मेरे पास रहती थी। गुप्ताजी की बात सुनकर विपिन चलने
के लिए कुर्सी से उठा, मैंने उसका हाथ पकड उसे बैठा लिया। गुप्ता जी ने कहना शुरू किया-“सुदीप,
तुम हमारे अच्छे और होनहार शिष्य हो, तुम्हारी स्टूडेंट्स में पकड भी अच्छी है, हम
चाहते हैं तुम स्टूडेंट्स को विश्वास में लेकर हड़ताल करवा दो। वैसे भी जब से बालेश्वर
ग्रुप को तुमने मजा चखाया है तब से उस ग्रुप के हौसले पस्त हैं और तुम्हारी इमेज
सब स्टूडेंट्स में अच्छी है।“
बालेश्वर ग्रुप से हमारा झगडा मात्र एक माचिस के ऊपर हुआ था। उस
दिन एक पुराना साथी कानपूर से आया था, जो वहाँ शुगर में कोर्स कर रहा था, उसने
सिगरेट पीने की इच्छा जाहिर की थी, मैंने कहा भी था कि मैं सिगरेट नहीं पीता, चार-पाँच
दोस्त कॉलेज के ग्राउंड में बैठे थे, मैंने जिस दोस्त को दस रूपये का नोट देकर
सिगरेट लाने को कहा, वह बिना माचिस के सिगरेट ले आया, अब बिना माचिस के सिगरेट
सुलग नहीं सकती थी, पास ही दूसरा ग्रुप बैठा था, उस ग्रुप से माचिस माँगने को लेकर
झगडा शुरू हुआ, हमारे लड़के को बालेश्वर के लड़के ने थप्पड़ मारा था, उस दिन मैंने
चैलेंज किया कि शाम तक अगर बालेश्वर और उसके लड़के ने माफ़ी नहीं माँगी तो बालेश्वर
गैंग का सफाया होगा। दोनों ही ग्रुप के लड़के चार बजे तक इधर-उधर पूरी तैयारी से
घूमते रहे थे। बालेश्वर आया लायब्रेरी में मीटिंग हुई, समझौता हुआ कि आपस में
दोनों ग्रुप नहीं टकरायेंगे। लेकिन अपने लड़के को लगा थप्पड़ मेरे गले नहीं उतर रहा
था। समझौते के लिए जैसे ही बालेश्वर और हमारे लड़के को आमने-समाने खड़ा किया, लड़के
ने मुझसे नजरें मिलायी, मैंने आँख से इशारा किया और एक झन्नाटेदार थप्पड़ की गूँज
सबने सुनी, बालेश्वर ने कहा-“सुदीप बाबू! ये ठीक नहीं हुआ, ये सब तुम्हे महँगा पड़
सकता है?”
”सुन बालेस, ठाकुर सुदीप के यहाँ समझौता भी बराबरी से होता है
दुश्मनी भी, तेरे लड़के ने मेरे लड़के को थप्पड़ मारा- ये सब जानते हैं फिर बिना उधार
चुकता किये अगर ये समझौता हुआ होता तो हमें तो नमस्कार करने वालो के लाले पड़ जाते,
राजनीति तो दूर की बात है।“
“फिर भी...”
“फिर भी क्या? तुम्हारी मर्जी हाथ मिलाना है या हथियार?”
बालेश्वर ने मौके की नजाकत को देखते हुए और संगठन पर मेरी पकड को
सोच हाथ आगे बढ़ा दिया था। ये घटना इतनी बड़ी थी कि पूरे शहर में चर्चा हुई।
गुप्ताजी इसी बात का फायदा उठाना चाहते थे। मैंने उन्हें बड़े ही
राजनितिक ढंग से जबाब भी दिया था-“सर आपकी हर आज्ञा मेरे लिए रामाज्ञा है लेकिन
स्टूडेंट्स का मिजाज भी देखना पड़ेगा, मेरी पूरी कोशिश होगी कि कॉलेज के गेट पर
ताला डलवा दूँ लेकिन पहले संगठन के अध्यक्ष से मीटिंग करनी होगी, और सब
पदाधिकारियों का रुख भी पता करना पड़ेगा।“
कहकर मैं उठा और गुरु-चरण-स्पर्श कर नीचे आ गया। विपिन साथ ही था।
नीचे आकर साईकिल उठाते हुए विपिन ने कहा-“अब तू क्या करेगा सुदीप?”
“कुछ भी नहीं, करना क्या है? कमरे पर चलेंगे, ब्रेड समोसा खायेंगे,
थम्स-अप पियेंगे।“
“और वो जो गुप्ताजी से वायदा करके आया है उसका क्या करेगा?”
“अबे तुम सालो रहोगे उल्लू के पट्ठे ही, अबे सारे वायदे पूरे किये
जाते हैं क्या? गुप्ता क्या मेरी प्रेमिका है जिससे मैंने चाँद-सितारे तोड़ लाने का
वायदा किया, जिसे पूरा न करने पर वो रूठ जाएगी। तू साईकिल चला, और चलकर समोसे
खिला, राजनीति हम पर छोड़ दे।“
विपिन को कुछ पल्ले नहीं पड़ा कि ये क्या गेम प्लान कर रहा है?
दोनों कमरे पर समोसे ब्रेड और थम्स-अप लेकर गए और पार्टी की। विपिन अपने घर के लिए
निकला तो मैंने रियल अनेलेसिस की किताब उठा सवाल करने शुरू किये।
दो दिन मैं गुप्ताजी के ट्यूशन नहीं गया, दो दिन बाद ट्यूशन गया।
पढने के बाद विपिन को रोक गुप्ताजी से बात शुरू की- “सर, मैं दो दिन तक सब
स्टूडेंट्स और संगठन के लडको से मीटिंग्स करता रहा, पाण्डेय के खिलाफ कोई जाने को
तैयार नहीं है, मेरे पास अब एक ही उपाय बचता है- मैं अकेला भूख-हड़ताल पर बैठ जाता
हूँ, इधर आप लोग क्लासेज का बहिष्कार कर दीजिये, या फिर मण्डल-कमीशन के खिलाफ जैसे
राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह किया था, वैसे ही मैं भी घोषणा कर देता हूँ कि अगर
पाण्डेय जी प्रवक्ताओं की माँगें मान पढाई शुरू नहीं कराते तो मैं आत्मदाह करूँगा।“
“अरे नहीं नहीं बेटा, तुम हमारे दोस्त के बेटे हो, हम तुम्हारी जान
की कीमत पर कैसे अपनी माँगें मनवाकर खुश हो पाएंगे, चलो कोई बात नहीं, मैं अगली
मीटिंग में सब बात रखता हूँ। अभी तुम जाओ आगे जो निर्णय होगा मैं तुमसे बाद में
बात करता हूँ। “-गुप्ताजी ने कहा।
विपिन और मैं कमरे पर चल दिए, विपिन फिर बोला-“अबे यार ये आइडिया
कहाँ से आया?”
“बेटा सब कुछ तुझे बता दिया तो फिर राजनीति मैं नहीं तू करेगा, चल
आज अपने घर मसेज भिजवा कि आज बहुत पढना है। आज रात नाईट शो देखेंगे। जब तूने क्लास
बंक करवाकर ‘बाजीगर’ दिखाई थी उसके बाद से सिनेमा ही नहीं देखा।
फाइनल इयर में विपिन और मैं दोनों को ही सिनेमा देखने और चुटकी पान
मसाला खाने का शौक लगा। इस बीच एक लड़के से परिचय हुआ जो होमगार्ड भर्ती हुआ था, वह
थाने से पर्ची पर दरोगा की मोहर लगाकर लाता और आकर मुझसे कहता-“यार इस पर्ची पर
लिख, मैनेजर मैं तीन लड़के भेज रहा हूँ, इन्हें फिल्म दिखा देना।“- इस तरह अक्सर वो
लोग फ्री में फिल्म देखने लगे, वो जाकर पीछे की सीट पर बैठ जाते, जब टिकट चेकर
बैटरी मारता हुआ आता तो वो उसे मोहर लगी पर्ची दिखा देते, वह पर्ची को लेकर चला
जाता। होमगार्ड उन्हें ठेली-रेहड़ी वालो से फ्री में फल-जलेगी-पेठे की मिठाई खिलाता।
यानी कुल मिलाकर फाइनल इयर फुल मस्ती में बीत रहा था। पढाई मे लगभग ढिलाई हो रही
थी।
सर्दी का मौसम था-पम्मी ने आकर बताया आज उसके घर किसी की शादी का
कार्ड आया है, तू गैस करके बता किसका होगा?”
“अबे साले पम्मी, फिलोसोफर की औलाद, तुझे बताना है तो बता- वर्ना
भाड में जाए तू और तेरा कार्ड, चल अब मतलब की उल्टी कर और भोंक?”
“सुनेगा तो उछल पड़ेगा।“
“अबे देख, ऊपर छत है इससे ज्यादा तो नहीं उछलूँगा न?”
“सुन फिर, तेरी अक्षरा की इसी महीने शादी है।“
“सुन बे, अगर अक्षरा की शादी है तो तू क्यों खुश हो रहा है? अबे
फेरे तुझसे तो नहीं ही होने।“
“हाँ बेटा, होने तो तुझसे भी नहीं।“
“अच्छा बेटा, अगर तेरे यहाँ कार्ड आया है तो आया तो मेरे यहाँ भी
होगा।“
“देख तेरे यहाँ कार्ड आना और तेरे पास कार्ड आना दोनों बातो में
फर्क है?”
“अच्छा तो तू ये कहना चाहता है कि वो मुझे अपनी शादी का कार्ड देने
आएगी। और आकर कहेगी-“सुदीप मेरे राजा, मेरे सोना, मेरे बाबू, फला-फला दिन मेरी
शादी है, और देख तू मेरी शादी में नहीं आया तो मैं फेरो तक नहीं जाऊँगी।“
“होना तो कुछ ऐसा ही चाहिए। आखिर पुराना इश्क और पुरानी शराब में
कोई तो बात होती है।“
“तो बे हरिश्चंद्र की सातवी औलाद, हमें ये बता जो वो बी.एस.सी.
फर्स्ट इयर में आप फेल मारे थे, जो वो साला मन्दिर के बहाने उसकी गली के चक्कर
काटते थे वो क्या साला सब हमारा इश्क था, तुम सब साले..ब....ह...न.... के टके खुद
इश्क फरमाते रहे और आज हमें उसकी शादी का प्रवान्ना सुनाकर हमें जलाने आये हो।“
बात कुछ भी हो मुझे ऐसा लगता था कि अक्षरा शादी का निमंत्रण जरुर
देगी। लेकिन इन्जार सिर्फ इंतज़ार ही रहा। गॉंव से पता चला कि फला दिन अक्षरा की
शादी है और शादी गॉंव में न होकर शहर में है। और जनाब सुदीप साहब यानि हमें ये
आदेश हुआ कि हम शादी में शगुन डाल आयें। जिस आदेश की हमने एक झटके में अवहेलना कर
दी, बस थोडा ये बहाना लगाया कि शादी की भीड़ से हमें धक्का-मुक्की में गिरने का डर
रहता है तो हम नहीं जायेंगे।
अक्षरा की शादी की शाम को पहले शेखर मेरे पास आया, बोला-“सुदीप चल
अक्षरा की शादी में चलते हैं।“
“अबे मेरे बाप, तुझे क्या मतलब मैं उसकी शादी में जाऊँ या नहीं जाऊँ?
साले चल पड़े मुँह उठाकर।“
“गुस्सा क्यों होता है, चलना है तो बता नहीं चलना तो चादर तानकर सो
जा।“
अभी शेखर को भेजा ही था कि पम्मी आ धमका-“अबे सुदीप, ये क्या तू
अभी तक तैयार नहीं हुआ? चलना नहीं शादी में?”
“हाँ, हाँ चलना क्यों नहीं है, बस सेहराबंदी हो जाए उसके बाद चलते
हैं न।“
“मतलब।“
“मतलब के बच्चे तू चाहता क्या है? उसकी शादी की कुर्सियाँ लगाने जाऊँ
या फिर वेटर बन मेहमानों की खातिरदारी करने?” यानि तू सब साले दोस्त चाहते क्या
हो? सालो मुझे पागल कर दोगे तुम।“
“अच्छा सुन, गुस्सा मत कर कोई पैगाम हो तो बता?”
मैं थोडा शांत हुआ बोला-“सॉरी यार, अभी शेखर ने आकर दिमाग ख़राब
किया हुआ था, पैगाम का तूने अच्छा याद दिलाया, तू रुक दो मिनट हम कुछ पैगाम लिखकर
देते हैं।“
मैंने एक कार्ड बनाया और उस पर लिखा-
“गर आप हमें शादी का पैगाम भिजवाते
हम भी उस जश्न के भागीदार बन जाते.
गर तोहफा न बन पड़ता हमसे कोई
आँखों के आँसू ही सनम दिखा जाते।“
कार्ड पम्मी को देकर कहा-“भैया जरा संभालकर ले जाना, ये पैगाम नहीं
हमारे जज्बात हैं जो आज यूँ इस कदर दिल से फूटे हैं। पम्मी मुझे अकेला छोड़ चला गया।
मैं आज खुद को अकेला महसूस कर रहा था। दिल में आया कि आज शराब में ड़ूब जाऊँ, लेकिन शराब के नाम से उबकाई
आ गयी। बस मैंने अपना चेहरा हाथों में छुपा लिया, और अश्कों ने बहना शुरू कर दिया।
बढियाँ लिखा👌👌👌
ReplyDeleteकिशोर जी , हमने आत्मकथा को किस्सागोई में लिखा ताकि मित्र लोग आन्नदित हो वर्ण अधिकांश आत्मकथाएं बहुत बोरिंग फील कराती हैं.
ReplyDeleteफिर आपका भी असर है
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