चौदहवां भाग
बी.एस.सी. का परिणाम आ चुका था। मैंने देखा- नीलू भी एम्.एस. सी.
कर चुका है। सुप्रिया ने भी एम.ए., बी.एड भी कर लिया है, सुकेश कैम्पस से एम्.फिल.
कर ही रहा है और कितने ही लोग हैं जो इनसे भी ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं और नीलू तो पूरे
विश्वविद्यालय में दूसरी पोजीशन रखता है, जब सब इतने पढ़े-लिखे लोगो को कहीं नौकरी
नहीं मिलती तो फिर मैं क्यों एम्.एस.सी. में दाखिला लेकर और दो साल बर्बाद करूँ? निर्णय
कर लिया था कि अब आगे नहीं पढूँगा। नीलू भी पढाई पूरी करके घर वापिस आ चुका था।
जैसे ही मैंने आगे न पढने का ऐलान किया, पूरे घर में खलबली मच गयी, सबसे ज्यादा
गुस्से में पिताजी थे। उन्होंने सुकेश भैया को एम्.एस.सी. के फॉर्म लेकर आने को
बोला लेकिन मुझ पर किसी बात का कोई असर नहीं हुआ। काफी तनाव का माहौल था, लेकिन अब
सबको ये तो समझ आने लगा था कि उम्र के साथ-साथ मेरा स्वभाव जिद्दी हो गया है।
पिताजी को लगता था कि ये सब बचपन से जो अंग्रेजी दवाइयाँ खाई हैं, ये उनका असर है।
शायद यही वजह भी थी कि पिताजी बहुत बीमार होने पर भी अंग्रेजी दवाईयों का सेवन
नहीं करते थे।
नीलू और मैं दोनों ही देखते-सुनते कि पिताजी सुप्रिया दीदी की शादी
के लिए लड़के की तलाश में हैं। साथ ही घर में शादी के खर्च को लेकर भी बातें होती
हैं. चार-चार अच्छे जवान घर में हैं, किसी एक की भी नौकरी नहीं। सुकेश की शादी इस
बीच कर दी गयी थी। उसने एम्. फिल. बीच में ही छोड़ कही नौकरी करनी शुरू कर दी थी।
नीलू और मैंने प्लान किया कि पिताजी के खर्चो का बोझ कम करने और सुप्रिया दीदी की
शादी के लिए पैसा इकठ्ठा करने के लिए कुछ करते हैं, लेकिन क्या करें? विपिन की
तगड़ी सिफारिश होने के चलते नौकरी लग चुकी थी। विपिन को नीलू की नौकरी के लिए भी
कहा लेकिन न ही उसने गौर किया औरर न ही वह कुछ करा ही सकता था। प्लान बना--कोचिंग
सेंटर खोलते हैं। दोनों ने खुद पम्पलेट तैयार किया, समस्या आई कि नाम क्या रखा
जाए? मैं चूँकि दीदी से ज्यादा स्नेह रखता था इसलिए दीदी के नाम पर “प्रिया कोचिंग
क्लास” रखा गया। पम्पलेट छपकर आ गए थे, बैनर भी बन गए थे। रात में जब अँधेरा हो
जाता तो दोनों भाई साईकिल उठाते, खुद की बनायी लेई से पम्पलेट चिपकाते। कई गली के
नुक्कड़ पर बैनर लगा दिए गए थे। लगभग हर स्कूल के गेट पर “प्रिया कोचिंग क्लास” के पम्पलेट चिपक गए थे। युद्ध स्तर
पर तैयारी शुरू कर दी गयी थी।
इसी के साथ एक दिन अपना बायो डाटा हाथ से लिख मैं एक नामी-गिरामी पब्लिक
स्कूल में गणित अध्यापक का इंटरव्यू देने चले गया। स्कूल-मनेजर को पिताजी के नाम
का परिचय दिया। मनेजर साहब ने आठ सौ रूपये मासिक वेतन पर ज्वाइन करने की ऑफ़र दी।
मैंने कहा-“मनेजर साहब आप भी जानते हैं शहर में गणित के मास्टर मिलते नहीं, और चूँकि
मैं रोज रिक्शा से आया जाया करूँगा इसलिए आप जो पैसा मुझे देंगे वह तो मेरा सब
आने-जाने में खर्च हो जायेगा, बाकी क्या मैं समाज सेवा के लिए स्कूल में पढ़ाऊँगा?”
“देखो सुदीप बाबू, हम आपको लास्ट एक हजार मासिक दे सकते हैं, बाकी
को तो हम आठ सौ पचास से ज्यादा किसी को भी नहीं देते।“
“मैं तो पन्द्रह सौ मासिक से एक भी पैसा कम में अपनी सेवा नहीं दे
सकता, आपकी दी तन्खवाह से बेहतर मैं एक बैच ट्यूशन पढ़ा लूँगा तो मात्र एक घण्टें
में इससे जयादा कमा लूँगा।“
“काफी देर चर्चा के बाद मनेजर पन्द्रह सौ मासिक पर तैयार हुआ और बोला-“चाहो
तो आज से ही शुरू कर दो चाहो तो कल से।“
“जी मैं कल से ही ज्वाइन करूँगा।“- कहकर मैंने अभिवादन किया और
वहाँ से चल दिया। जैन कालोनी को पार करते हुए विद्दिवाडा से निकल प्रेमी हलवाई की
दूकान पर आया। आधा किलो बर्फी ली और गॉंव आकर सुप्रिया दीदी को सबसे पहले ये खबर
सुनाई-“आज मैं अपने लिए एक छोटी सी नौकरी पक्की कर आया हूँ। लो मुँह मीठा शुरू करो।“
“मेरे छोटू भाई, घर में तुमसे बड़े होते हुए तू नौकरी करेगा और उधर
कोचिंग भी देगा?”
“हाँ, दीदी, दोनों काम करूँगा और फिर नीलू भी तो साथ में हैं न?”
“क्यों करना चाहता है तू ये नौकरी? अभी तुझे सरकारी नौकरी के लिए
तैयारी करनी चाहिए या फिर आगे पढना चाहिए।“
“दीदी, आपकी शादी भी करनी है न तो उसके लिए पैसे चाहिये, पहले बहुत
सारा पैसा इकठ्ठा करके पिताजी को दे दूँ ताकि उन्हें शादी में मदद मिल जाए। फिर
सरकारी नौकरी की सोचेंगे। और सरकारी नौकरी यूँ तो है नहीं कि मेरा ही इन्तजार कर
रही है, आज गया और लग गयी। तैयारी करूँगा फॉर्म भरूँगा।“
“अच्छा ये तो बता, कितनी सैलरी मिलेगी तुझे वहाँ?”-सुप्रिया ने
पूछा।
“दीदी, मनेजर किसी को साढ़े आठ सौ से ज्यादा नहीं देता, लेकिन मैंने
उसे पन्द्रह सौ मासिक पर राजी किया है।“
“व्हाट, पन्द्रह सौ? इतनी सैलरी में तू क्या-क्या करेगा रे,
आने-जाने, खाने का खर्चा भी कर लेगा और पिताजी को भी दे देगा?”
“तो क्या हुआ दीदी, आज पन्द्रह सौ की बात है एक दिन पन्द्रह हजार
भी कमाऊँगा।“
“ठीक है मेरे छोटू भाई, तू ऐसे ही कामयाब हो, और आगे बढ़ता जा, एक
दिन बैंक में ऑफिसर बन, पिताजी भी तो यही चाहते हैं कि जब तुम आगे पढना नहीं चाहते
हो तो बैंक, या एस.एस. सी. की तैयारी करो।“
“न दीदी, न ही तो मुझे बैंक की सारे दिन की कमरतोड़ नौकरी करनी और न
ही रिश्वतखोरी की क्लर्क वाली नौकरी। मुझे टीचिंग ही करनी है। ये मैंने निर्णय कर
लिया है।“
“छोटू! बस ये ही तो दिक्कत है तेरे साथ, तू बड़ा ही जिद्दी हो गया
है।“
“अच्छा छोडो दीदी ये सब, बड़ी भूख लगी है और थकान भी बहुत हो रही है।
कुछ खिला दो, या चाय बना दो।“
सुप्रिया किचन में चाय बनाने के लिए चली गई।
अगले दिन मैंने स्कूल की ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी। नया माहौल नये
साथी, नई पहचान, कुल मिलकर मैं अब थोडा खुश था।
मेरा टाइम टेबल में पहला पीरियड फ्री था, स्टाफ रूम में बैठा होता,
आठवी क्लास और स्टाफ रूप एक बरांडे के दो पार्ट करके बनाये गए थे। आठवी क्लास में पहला
पीरियड मिस. बलजीत कौर का होता था, बड़ी तन्मय होकर अंग्रेजी पढ़ाती, मैं देखता तो
लगता जैसे वह बच्चो को कम और मुझे ज्यादा पढ़ा रही है। पहला परिचय भी उससे ही हुआ
था। बलजीत ने बताया कि वह
शुगर मिल क्वार्टर में रहती है, उसके पापाजी शुगर मिल में चीफ इंजिनियर हैं। वह
अंग्रेजी में एम.ए.थी। उसने बच्चों पर हिंदी में न बोलने की पाबन्दी लगा रखी थी,
जो हिंदी में बोलता उस पर फाइन लगाती। मैं अक्सर कहता- “बलजीत जी,
बच्चो की जान मत लो, जिस भाषा में उन्हें सम्प्रेषण आसान लगे उसमें करने दें।“
“जनाब, मैं अंग्रेजी की
टीचर हूँ अब मैं अंग्रेजी बोलना नहीं सिखाऊँगी तो कौन सिखाएगा?”
“फिर तो हमें भी बच्चो
को गणित में बोलना सिखाना चाहिए।“
“अरे, गणित कोई
लैंग्वेज नहीं जिसे बोला जा सके?”
“हम तो बोल सकते हैं।“
“कैसे, जरा बोलकर
दिखाओ?”
“देखिये मैडम हमारे साथ
ज्यादा तीन-पाँच मत करिए, यहाँ से नौ दो ग्यारह
हो जाइये, वरना तिया- पान्चा करना पडेगा।“
“ये क्या कह रहे हैं
आप?”
“जी आपने ही तो कहा था
कि गणित में बोलिए।“
“ओह, हाँ, मुझे लगा आप
नाराज होकर ऐसे बोल रहे हैं।“
“नाराज और आपसे?”
इस तरह दोनों में अच्छा परिचय ही नहीं हुआ बल्कि दोस्ती भी हो गयी
थी।
कोचिंग सेंटर के लिए इन्क्वायरी आने लगी थी, नीलू और मैं दोनों ही
पढ़ाने लगे थे।
गणित और विज्ञान दोनों ही पढाना होता था, अब बैच बनने शुरू हो गए थे, हमारा मुख्य
फोकस नवी और दसवी पर था लेकिन कितने ही बच्चे छोटी क्लासेज के भी आ गए थे। मैं
सुबह स्कूल जाता और दोपहर को वापिस आकर कुछ देर रेस्ट करता फिर पढाता, नीलू तब तक
एक बैच पढ़ा चुका होता। असल में अधिकांश बच्चे दूर-दराज के गॉंवों से आते थे इसलिए
स्कूलों की छुट्टी होते ही पढाना होता था। तब मार्कर बोर्ड या घर में चाक-बोर्ड पर
पढ़ाने का चलन नहीं था। राईज पेपर के नीचे कार्बन लगाकर लिखना होता था, और बाद में
वो पेपर नोट्स के रूप में बाँट दिए जाते, १२ से १५ बच्चो को एक बैच में पढ़ाने के
लिए इतने पेपर तक छापना बड़ा मुश्किल काम होता। लेकिन मैं और नीलू दोनों ही इस काम
में अभ्यस्त थे। कुल मिलाकर धन्धा चलने के आसार लगने लगे थे। स्कूल में भी मैंने
जल्दी ही बच्चो के दिलो में अपना स्थान बना लिया था।
स्कूल और कोचिंग साथ-साथ
चल रहे थे। स्कूल से पहली सैलरी मिली, परम्परा के हिसाब से पहली सैलरी से स्टाफ को
समोसे और गुलाब-जामुन की पार्टी देनी होती थी। पता चला कि बलजीत की भी ये पहली ही
सैलरी थी। बलजीत शुगर मिल तक पैदल आती थी, मैं जैन-कॉलोनी से ही रिक्शा ले लेता,
उसने बलजीत को रिक्शा में चलने की ऑफर की, बलजीत ने ज़बाब दिया-“सुदीप जी, पैदल
चलने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और मोटापा नहीं आता। मुझे तो इससे भी ज्यादा पैदल
चलने की आदत है।“
“ठीक है मैडम, कल से
मैं भी कोशिश करूँगा आपसे साथ पैदल चलने के लिए। अब दोनों जैन कॉलोनी से
विद्दिवाडा तक पैदल आते, रास्ते में बाते करते हुए चलते। चोपले से मैं रिक्शा
लेता, अब ये नियत क्रम बन गया था। मैंने एक बात जरुर नोट की, जहाँ बलजीत लेडिज
स्टाफ से कम बात करती वहीँ मुझसे कुछ ज्यादा ही बात हो जाती, मिस्टर त्यागी साइंस
पढ़ाते थे, अनोस मथ्यूज जियोग्राफी पढाता था। निशा जैन और मिसेज कलानिधि हिन्दी
पढ़ाते थे। अनोस किशोर की आवाज में गाने गुनगुनाता था, क्या बढ़िया गला था, वह
जियोग्राफी में एम.ए. था, म्यूजिक का मास्टर था। त्यागी जी बेहद सीधे थे, फ़ौज की
नौकरी से रिटायर होकर आये थे। स्कूल की कई ब्राँच थी, ये सीनियर ब्रांच या मेन
ब्रांच कही जाती थी, ब्रांच इंचार्ज कुछ ज्यादा ही टोका-टाकी करती थी, उनका विषय
भी अंग्रेजी था। स्वाभाविक ही था बलजीत से अक्सर उलझती ।
बलजीत स्कूल की हर
परेशानी मुझसे ही शेयर करती, महिला स्टाफ में उसकी कोई दोस्त नहीं थी। वह किसी से
ज्यादा घुलना-मिलना भी नहीं चाहती थी। स्कूल में दो महीने में ही ये पता चल गया था
कि यहाँ बड़ी पॉलिटिक्स है। प्रिंसिपल साहब मनेजर के दामाद थे,
मालिक जैसा रुतबा रखते थे। अनोस अक्सर मुझे आगाह करता रहता था। वह ही सब तरह की
राजनीति से परिचित कराता था। दोनों में अच्छी दोस्ती होने लगी थी। बलजीत कहती- “सुदीप
जो तुम्हें सावधान रहने को कहता है- मुझे लगता है हमें उनसे भी सावधान रहना चाहिए।“
मुझे भी उसकी बात में दम लगता।
बलजीत जब भी सुदीप जी
बोलती मैं कहता- “ये जी कब हटेगा मैडम जी?”
“जब आपका मैडम जी कहना
हट जायेगा।“-उसने एक दिन जबाब दे ही दिया।
“ठीक है बलजीत, समझो आज
से हट गया।“-सुदीप ने तपाक से बोला।
मैं बचपन से ही किसी के
साथ औपचारिक नहीं रहा पाता था, जल्दी ही बलजीत से भी अनौपचारिक हो गया, आप से तुम
तक का सफर जल्दी ही तय हो गया था।
मैं और बलजीत साथ-साथ
स्कूल से आते थे, जैसे ही चौपला पार करना होता, बलजीत कहती-“बाय-बाय सर।“
अब ये एक तकियाकलाम सा
बन गया था। जिन दोस्तों को बलजीत के बारे में पता था, वो भी अब ‘बाय बाय सर” वाला
डायलोग बोलने लगे थे।
उसी दौरान यू.पी. में
बी.टी सी. के फॉर्म निकले हुए थे। पम्मी का फाइनल इयर था, वह मेरे पास आया और
फॉर्म भरने की इच्छा जाहिर की। मैंने ये कहकर मना कर दिया कि पिछले बीस सालों में
यू.पी. में कोई अध्यापक नहीं लिया गया, फिर बी.टी.सी करके पक्के वाला बेरोजगार
बनने का ठप्पा लगवाना है क्या?
पम्मी एक दिन दो फॉर्म
ले आया और बोला-“यार, चल फॉर्म भर देते हैं,
एडमिशन होगा या नहीं या लेना है या नहीं ये बाद में डिसाइड कर लेंगे।“ फॉर्म भर
दिया गया। एग्जाम भी दे दिया। एग्जाम वाले दिन मैंने १५ मिनट में एग्जाम ख़त्म करके
बड़ी हुटिंग की, इस एग्जाम को एकदम सीरियसली नहीं लिया था, पिताजी भी नहीं चाहते थे
कि बी.टी.सी. की जाए, उनका सपना तो बेटे को बैंक पी.ओ. बनते हुए देखने का था।
ये भी तय नहीं था कि
रिजल्ट आएगा या नहीं और जिला स्तर की प्रतियोगिता में नम्बर आएगा भी या नहीं,
हालाकि पम्मी इस एग्जाम को लेकर बड़ा ही उत्साहित था। अब रिजल्ट का ही इन्तजार किया
जा सकता था।
एग्जाम देकर मैं भूल
गया और अपने रोज के रूटीन में मस्त हो गया। एक दिन स्कूल में एक बड़ी अजीब घटना
घटी, आठवी क्लास का एक लड़का विकास त्यागी, क्लास में बहुत बदतमीजी किया करता था,
कोई भी स्टाफ वाला उसे नहीं छेड़ता था, मेरा उस क्लास में पाँचवा पीरियड होता था,
पढ़ाते हुए उस विकास ने विसल बजायी।
मैंने पूछा-“किसने
बजायी विसल?”
कोई भी बताने को तैयार
न था।
मैंने विकास से पूछा-”तुम
बताओ विकास किसने बजायी?”
“मैंने बजायी, बोल क्या
करेगा तू?”-विकास का जवाब था।
झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद
करते हुए कहा-“माँ-बाप ने तमीज नहीं सिखाई।“
“तुझे बाहर देख लूँगा।“-विकास
चिल्लाकर बोला।
“अभी नहीं दिखा मैं
तुझे?”- मैंने दो थप्पड़ और रसीद कर दिए।
मूड ख़राब हो चुका था,
क्लास छोड़ स्टाफ रूम में आ गया। बलजीत का पीरियड फ्री था,
वह स्टाफ रूम में ही बैठी थी, उसने पूछा-“क्या हुआ सुदीप, परेशान भी हो और गुस्से
में भी।“
मैंने सारा किस्सा कह
सुनाया।
बलजीत ने बताया-“जानते
हो, ये लड़का जिस परिवार से
है उसमें कई लोगो पर मर्डर, फिरोती इत्यादि के केस लगे हैं, इसलिए सारा स्टाफ इससे
डरता है, तुम्हे पंगे में नहीं पड़ना चाहिये।“
“यार बलजीत नाहक ही
डरती हो तुम भी, आठवी क्लास के बच्चे की दादागिरी झेल ली तो फिर हमारा तो जीना ही
बेकार है, अब ये कुछ नहीं करेगा, सुदीप के थप्पड़ की गूँज बहुत दूर तक जाएगी। अभी
कॉलेज छोड़ा ही है और किस्से वहाँ भी बड़े मशहूर हैं।“
उस दिन छुट्टी हुई तो
उसी क्लास की स्टूडेंट साक्षी छुट्टी के बाद जैन कॉलोनी से बड़े बाजार तक मेरे साथ-साथ
आई और बोली-“सर, विकास कुछ भी कर सकता है, वो बैग में चाकू भी रखता है, बाद में
धमकी दे रहा था कि इस लंगड़े को मास्टरी सिखाऊँगा।“
“साक्षी बेटा! चिंता मत
करो, तुम्हारे सर बहुत सक्षम हैं, ऐसी गीदड़ धमकी से कोई असर नहीं होता। फिर भी
थैंक्स तुमने मुझे इतना सब बताया।“
“फिर भी सर सावधान होकर
जाइये।“-कहकर साक्षी अपनी गली की ओर चली गयी, जाते-जाते उसने बाय-बाय सर जरुर बोला।
जवाब में मैंने भी बाय कहा।
इस घटना का इफ़ेक्ट कुछ
तो होना है ये अंदेशा मुझे था। अगले दिन आठवी की गणित की दो बच्चो की कॉपी दफ्तर
में थी। खाली पीरियड में प्रिंसिपल ने अपने ऑफिस में तलब किया-“मिस्टर सुदीप, आपकी
कंप्लेन है कि आपका कोर्स काफी पीछे हैं आप क्लास-वर्क कम कराते हैं, गणित के क्वेश्चन
बोर्ड पर भी नहीं कराते?”
“सर, आपको गलत सूचना
मिली है, वजह मैं जानता हूँ।“
“देखिये स्कूल में कोई
पोलिटिक्स नहीं कीजिये, ये कॉपी मैंने मंगाई हैं, इनमें कोई काम नहीं कराया गया है।“
“ठीक है श्रीमान जी,
मैं भी कुछ कापियाँ मंगाता हूँ, उन्हें भी देख लीजिये, और हाँ आप खुद मैथ्स से
हैं, इन कापियों को गौर से देखिये, इनमें मेरे इन्कम्प्लीट वर्क के नोट को फाड़
दिया गया है, सबूत के तौर पर पेन के लिखे से नीचे छप गए पेन के निशान को देख
लीजिये।“-कहते हुए सुदीप ने कॉपी दिखाई और साथ ही क्लास से कुछ और कॉपी लाकर दिखाई।
सुदीप एक झटके में कुर्सी से खड़ा हुआ और दफ्तर से निकलने से पहले बोला- “सुनील जी
आई मीन सर, आगे से पूरी तहकीकात करके ही अपने दफ्तर बुलाया कीजिये और ये भी जान
लीजिये सुदीप नौकरी शौक के लिए करता है, गरज में नहीं।“
सुनील ने नीचा दिखाने
और अपनी हार का बदला लेने के लिए एक और हथकंडा अपनाया। अभी दो-चार दिन ही इस घटना
को हुए थे वो मेरे पढ़ाते समय क्लास में आये और बिना मुझसे बात किये बच्चो से
बोले-“स्टूडेंट्स, सर क्लास में पढ़ाते हैं या नहीं?”
बच्चे शांत बैठे रहे,
साहब फिर मेरी तरफ देखकर बोले-“आप क्या करा रहे थे अभी? आपकी शिकायत मिली है कि आप
क्लास में पढ़ाते कम हैं और बातें ज्यादा करते हैं।“
आँखों में मानो खून उतर
आया, मैंने कहा-“ मिस्टर! गेट आउट फ्रॉम माय क्लास।“
सुनील को इस तरह के
उत्तर की बिलकुल आशा न थी। वह चुपचाप क्लास से बाहर निकल अपने दफ्तर पहुँचा। दो ही
मिनट हुए थे कि चपरासी आया, बोला-“सर आपको सुनील सर बुला रहे हैं।“
मैंने कहा-“भैया,
जाकर बोलो सुदीप सर कभी बीच में क्लास नहीं छोड़ते, जब पीरियड ओवर होगा तब आयेंगे ।“-कहकर
बच्चो को पढाना शुरू किया दिया।
क्लास ओवर हुई तो दफ्तर
का रुख किया, अन्दर दाखिल होकर प्रिंसिपल के सामने की कुर्सी पर बैठते हुए
बोला-“कहिये सर किसलिए याद किया?”
“मिस्टर सुदीप, आपने जो
बदतमीजी क्लास में की उसकी वजह जान सकता हूँ, आप जानते हैं मैं यहाँ का प्रिंसिपल
हूँ।“
“जी, एकदम जानता हूँ कि
आप यहाँ के प्रिंसिपल हैं, लेकिन जिस तरह से आपकी रेपुटेशन है उसी तरह से एक टीचर
की क्लास में रेपुटेशन होती है, अगर किसी भी स्कूल का प्रिंसिपल इस तरह से क्लास
में जाकर टीचर को बेइज्जत करे, उस स्कूल के बच्चे टीचर से न ही पढ़ सकते हैं और न
ही उसकी इज्जत कर सकते हैं। श्रीमानजी, आपको अपना व्यवहार
सुधारना चाहिए। अगर आपको मुझसे कोई दिक्कत थी या मेरी किसी पेरेंट्स के यहाँ से
कोई शिकायत थी तो आप मुझे बुलाकर पहले डिस्कस कर सकते थे। जो कि आपने नहीं किया,
ये एक संस्था प्रमुख के लक्षण नहीं। अगर आपको मेरी बात गलत लगे तो आप मनेजर साहब
से शिकायत कर सकते हैं, वैसे भी रेजिग्नेशन लेटर तो हमने जोइनिंग के साथ ही लिख
छोड़ा था, जब कहेंगे बैग से निकाल पेश कर देंगे।“
प्रिंसिपल साहब हैरान
कि हमने बुलाया किसलिए था और ये जनाब हमें ही उल्टा प्रिसिपली सिखा गए।
बात आई-गयी हो गयी थी,
मैं मेहनत और लगन से पढाता रहा, कुछ बच्चे कहते कि अलजेब्रा बहुत कठिन है, कुछ समझ
नहीं आता, मैंने बच्चो से चैलेंज किया –“अगर एक हफ्ते में आपने नहीं कहा कि
अलजेब्रा सबसे इजी है तो स्कूल छोड़कर चला जाऊँगा।“
कितनी ही तरकीबे सोची
तब जाकर अलजेब्रा उन्हें समझाया, और बच्चे हैरान थे कि उन्हें अलजेब्रा इतनी आसानी
से समझ कैसे आ गया।
सातवी क्लास के तीन
बच्चे- विशाल, गौरव और अभिषेक मुझे बहुत लाइक करते थे। अभिषेक मेरा भांजा लगता था,
वह स्कूल में सर बोलता था लेकिन घर पर मामा ही बोलता। गौरव भी कभी रास्ते में मिलता
तो मामा बोलता, तब मैं उसे कहता, अरे गौरव, तुम तो सर बोला करो,
तब वह कहता-“आप अभिषेक के मामा हो, और वो मेरा सबसे पक्का दोस्त, तो फिर आप मेरे
भी मामा ही हुए।
इस तरह बच्चो से बहुत
प्रेम मिलता। रेसिस से पहले पीरियड चौथी क्लास में होता था, रेसिस की घंटी लगते ही
बच्चो को लंच प्रेयर करनी होती, बच्चे अपना-अपना टिफिन खोलकर एक-एक बाईट खिलाते
उसके बाद ही खाना खाते। कभी बच्चो की आँख बन्द हुए चुपके से निकल जाता तो वो स्टाफ
रूम में बुलाने आ जाते और कहते अगर सुदीप सर हमारे साथ खाना नहीं खायेंगे तो हम
लंच ही नहीं करेंगे। इंचार्ज इस बात से भी तंग थी कि मैं बच्चो में इतना पोपुलर
क्यों हूँ? दूसरी बड़ी समस्या थी, बलजीत अपना टिफिन खोकर वेट कर रही होती। कंप्यूटर
क्लासेज शुरू होने के बाद से तो रुपाली मैडम भी इन्तजार कर रही होती। रुपाली
कम्पूटर पढ़ाने के लिए अपोइन्ट हुई थी और आते ही उसने मुझे और बलजीत की कम्पनी को
ज्वाइन किया था।
कहते हैं जिन्दगी में
खट्टे मीठे दोनों ही अनुभव होते हैं, स्कूल में पढाने का आनन्द ही अलग था, लेकिन
कुछ ऐसा भी घट रहा था जिसका अंदाजा मुझे नहीं था।
असेम्बली में कभी मनेजर
साहब नहीं आते थे, उनको असेम्बली में देखना सबको आश्चर्यचकित कर रहा था, प्रेयर
ख़त्म हुई तो मनेजर साहब ने असेम्बली को संबोधित किया-“ अनोस मेथ्यूज को स्कूल से
टर्मिनेट कर दिया गया है, आज के बाद वो इस स्कूल प्रिमिसिस में कदम नहीं रखेंगे,
कुछ दिन में नए जियोग्राफी टीचर की व्यवस्था हो जाएगी तब तक बाकी स्टाफ कॉपरेट करे।“
असेम्बली डिस्पर्स कर
दी गयी। अभी लोग अपनी-अपनी क्लास में भी नहीं पहुँचे थे कि चपरासी स्टाफ रूम में
आकर बोल गया कि सुदीप सर को मनेजर साहब ऑफिस में बुला रहे हैं। मैं जैसे ही ऑफिस
में गया, मनेजर साहब ने बैठने के लिए बोलकर कहा-“ सुदीप हम ये नहीं कह रहे कि आप
भी इन्वोल्व, लेकिन कहीं न कही गलती आपकी भी है?”
“हुआ क्या है सर,
ये भी तो पता चले?”
“क्या तुम सचमुच इतने
भोले हो कि तुम्हें कुछ नहीं पता?”
“सर, जब ये ही नहीं पता
चलेगा कि बात क्या है तो मैं आपको क्या जबाब दूँगा?”
“यानि आप एनोस के
एपिसोड के बारे में कुछ नहीं जानते?”
“जी सर, वाकई मुझे कुछ
नहीं मालूम, आपके असेम्बली के अनाउंसमेंट से बहुत लोग शॉकड हैं।“
“ठीक है फिर आप जाकर
अपनी क्लास पढ़ाओ, जरुरत पड़ी तो आपसे फिर बात करेंगे।“
मुझे कुछ भी समझ नहीं
आया, क्या हुआ, क्यों हुआ, और उसे क्यों बुलाया गया था?
बलजीत भी कुछ नहीं
जानती थी, मैंने कलानिधि मैडम से पूछा। वहाँ से सच पता चला।
हुआ कुछ यूँ था - आठवी
क्लास की साक्षी और एनोस में काफी समय से इश्क था, मैं क्लास में टेस्ट ले रहा था,
मुझे टॉयलेट जाना था। इत्तेफाक था कि एनोस स्टाफ रूम में खाली बैठा था, स्टाफ रूम
से एनोस को बुलाया और कहा कि दो मिनट मेरी क्लास देखो-मैं टॉयलेट होकर आता हूँ,
इसी दौरान एनोस ने साक्षी को लव-लैटर दिया, मैं टॉयलेट से वापिस आया तो एनोस वापिस
स्टाफ-रूम में जा चुका था, किसी ने ये खबर इंचार्ज मैडम तक पहुँचाई, आनन-फानन में
साक्षी के बैग की तलाशी हुई तो सब कुछ सामने आया। कलानिधि मैडम ने ये भी बताया कि
कॉपी चेकिंग के बहाने से प्रेम पत्र का आदान-प्रदान काफी समय से चल रहा था।
हालाकि मैं पूरे प्रकरण
में क्लीन चिट पाया गया था लेकिन इस घटना से मन बड़ा व्यथित हुआ। मैंने बहुत कुछ
देखा था, राजनीति भी की थी, गुंडई, दबंगई भी, लेकिन क्या बच्चो के समान स्टूडेंट्स
से भी इश्क फ़रमाया जा सकता था, जिस एनोस को मैं अपना मित्र समझने लगा था, उसके
प्रति मेरा हृदय घृणा से भर गया।
अभी इस घटना को कुछ समय
ही हुआ था कि एक घटना और हो गयी, बलजीत के अंग्रेजी पढ़ाते हुए इंचार्ज मैडम ने
उन्हें ग्रामर के किसी टोपिक पर क्लास-रूम में टोक दिया, बात बहस पर आई तो बलजीत
ने मुझसे पूछा- “क्या ऐसा कोई नियम है जिस पर इंचार्ज मैडम अडिग हैं”, मुझे भी
इंग्लिश ग्रामर की अच्छी नोलेज थी, मैंने बलजीत के पक्ष में कहा-“ इंचार्ज मैडम आप
किताब से देख ले, वोर्न एंड मार्टिन मेरे पास है कल आपको नियम दिखा दूँगा।“
इंचार्ज मैडम गलत होते
हुए भी मानने को तैयार नहीं थी। शायद इगो उन्हें ज्यादा परेशान कर रहा था। उन्हें
लगा कि मैं जानबूझकर टारगेट करना चाहता हूँ, उन्होंने इस घटना को
एनोस एपिसोड से जोड़ने की कोशिश की।
बलजीत का इस एपिसोड के
बाद मन दुखी था, उसने एक दिन कहा-“अच्छा सुदीप! मेरी जगह आप होते तो आप क्या
करते?”
मैंने जवाब दिया-“मैं
आपकी जगह होता तो रिजाईन करके नौकरी छोड़कर चला जाता।“
“सुदीप,
मैंने भी ये ही सोचा है कि मुझे ये स्कूल छोड़कर आगे पढाई करनी चाहिए।“
“हाँ बलजीत, आपका
निर्णय एकदम उचित है।“
“लेकिन मैं ऐसे नहीं
जाना चाहती, कुछ तो सबक सिखाना पड़ेगा इन लोगो को।“
“नहीं दोस्त, कोई सबक
नहीं सिखाना, सुनो! मैं खुद दिसंबर में ये स्कूल छोड़ रहा हूँ।“
“भला आप क्यों छोड़ रहे
हो?”
मैंने अपने बैग से लैटर
निकालकर दिखाते हुए कहा-“देखो मेरा बी.टी.सी. में एडमिशन हो गया है। दिसम्बर में
फीस जमा करनी है, उन्नीस दिसम्बर से
क्लासेज शुरू हैं, लेकिन आप ये खबर अपने तक ही सीमित रखना।“
बलजीत ने किसी को शेयर
न करने का आश्वासन देते हुए कहा-“सुदीप कुछ कहना है आपसे इस उम्मीद के साथ कि आप
मना नहीं करोगे।“
“जी कहिये?”
“मैं चाहती हूँ कि मेरा
रेजिग्नेशन लैटर आप अपने हाथ से लिखे।“
“एक बार फिर से सोच लो।“
“सोच लिया, मैंने एक
बार नहीं बार बार सोचा।“
“पर रेजिग्नेशन मेरे
हाथ से ही क्यों?”
“आप नहीं समझेंगे।“–कहकर
बलजीत ने बात टाल दी।
अगले दिन मैं घर से
बलजीत का रेजिग्नेशन लिख कर लाया और उसे दे दिया। लास्ट पीरियड में बलजीत ने
रेजिग्नेशन सुनील सर को थमा दिया और सीधे स्टाफरूम का रुख किया।
छुट्टी हुई तो सबने
जाने के साईन किये और घर जाने लगे। आज रुपाली और बलजीत साथ-साथ घर के लिए निकले।
रुपाली का घर पंजाबी कॉलोनी में था, जो कि रेलवे फाटक के पास ही थी, बलजीत को शुगर
मिल क्वार्टर जाना था और मुझे उससे थोडा आगे डाकघर वाली गली।
मैं उन दोनों से चार
कदम पीछे चल रहा था, मेरे कानो में दोनों की बातें स्पष्ट सुन रही थी। दोनों की
बातों का केंद्र मैं स्वयं था।
बलजीत के स्कूल छोड़ने
के अगले दिन स्कूल में कुछ खाली-खाली लगा। रुपाली ने कहा
“सर, मुझे मालूम है आप
क्यों उदास हैं?”
“नही रुपाली, मैं तो
उदास नहीं, आपको कुछ ग़लतफ़हमी हुई है।“
“मुझे बलजीत ने सब कुछ
बता दिया है, यूँ समझ लो कि आपके बारे में काफी कुछ अंदाजा हो गया है।“
“ओह! क्या-क्या बताया
है बलजीत जी ने आपको, हमें भी तो जाने?”
“बोल रही थी कि पूरे
स्टाफ में अगर किसी पर भरोसा किया जा सकता है तो वो सुदीप सर हैं, बहुत ही अच्छे
हैं, स्मार्ट तो हैं ही।“-रुपाली ने कहा।
“कुछ ज्यादा नहीं हो
गया?”-सुदीप बोला।
“अरे सर, अभी तो आधा भी
नहीं हुआ, और भी बहुत कुछ बोला मैडम ने।“
“फिर बता ही दीजिये.. उन्होंने क्या क्या
बोला?”
“मैडम बता रही थी कि वो
डेस्टिनी पर बहुत विश्वास करती हैं, और हस्त-रेखा का ज्ञान भी रखती है, उन्होंने
कहा- रुपाली, मेरे हाथो की रेखा कहती हैं कि अगर मैंने शादी की तो दो साल के
अन्दर-अन्दर मेरे पति की मृत्यु हो जाएगी, मैंने कितनी ही बार सुदीप को प्रोपोस
करने की बात सोची लेकिन फिर ख्याल आया कि अपनी भावनाओं के लिए किसी की जान लेने का
मुझे कोई अधिकार नहीं। अगर मेरी डेस्टिनी में विधवा होने का योग न लिखा होता तो
मैं सुदीप को अपना जीवनसाथी चुनने से गुरेज न करती। सुदीप की जो भी जीवन संगिनी
बनेगी वो बहुत ही खुशकिस्मत होगी। काश वो खुशनसीब मैं होती?”
“बाप रे बाप, साथ कम
करते हुए तो एक शब्द नहीं बोला, और आपको इतना कुछ बोल दिया, धन्य हैं मैडम जी।“-मैंने
कहा।
मैंने नोट किया कि
बलजीत के स्कूल छोड़ने के बाद रुपाली कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखाती। दोनों चौपले
तक साथ आते। रुपाली की बातें पागलपन से भरपूर होती। मुझे उसमें एक भरपूर बचपना
दिखाई देता। हाफ इयरली एग्जाम में बड़े हॉल में दोनों की ड्यूटी एक साथ लगी, कॉपी
और क्वेश्चन पेपर बाँटने ले बाद दोनों राउंड ले रहे थे, तभी रुपाली पास आकर
बोली-“सर आज मैं बहुत परेशान हूँ, प्रिंसिपल साहब मुझे टीज करते हैं, मुझे उनकी निगाहें
भी अच्छी नहीं लगती।“-कहकर उसने मेरे कंधे पर सिर रखा और आँसू बहाने लगी।
मैंने कहा- “रुपाली,
खुद को सम्भालो, ये एग्जाम हॉल है और
आप यहाँ ड्यूटी पर हो, ये आपका ड्राइंग रूम नहीं।“
उसे अहसास हुआ तो उसने अपने
आँसू पोंछे और राउंड लगाने लगी। एग्जाम ख़त्म हुआ तो हमने कॉपी इकट्ठी की और जमा
करके धूप में बैठ गए, छुट्टी होने में अभी समय था।
रुपाली ने कहा-“सर!
आपसे कुछ मन की बात कहने का मन है, इजाजत हो तो कह दूँ?”
“कहना तो मुझे भी है,
तुमसे।“
“जी फिर पहले आप कहिये।“
“मैं इसी महीने ये
स्कूल ये नौकरी छोड़ रहा हूँ।“
“व्हाट? पर क्यों?”
“क्योंकि मेरा टीचर
ट्रेनिंग में नम्बर आ गया है, अब दो साल ट्रेनिंग होगी।“
“आपको बहुत-बहुत बधाई,
आप जीवन में तरक्की करें।“
“अच्छा,
तुम भी कुछ कहना चाहती थी, कहो क्या कहना था?”
“बस, सुदीप सर, कई बार
जो कहने का मन होता है वो शब्द जुबान पर नहीं आ पाते, समझ लो आज मेरे साथ भी कुछ
ऐसा ही हो रहा है। बस अब तो इतना ही कहूँगी कि आप जहाँ भी रहे खुश रहे। आपकी
सलामती की हमेशा दुआ करुँगी।“
“कुछ छुपा रही हो ?बताओ
न बात क्या है?”
“कुछ नहीं, सर, मैं
बलजीत मैडम जितनी खुशनसीब नहीं, आपका साथ नहीं मिला,
आप जा रहे हैं, बस इस बात ने थोडा दुखी कर दिया।“
और बातें होती तब तक
छुट्टी का समय हो गया।
रुपाली की बहकी-बहकी
बातें मन को बेचैन कर रही थी।
क्रमशः
No comments:
Post a Comment