अधुरा मिलन
ये एक पुरानी तन्द्रा थी..पूरे पांच साल पुरानी..लेखन जैसे अवरुद्ध हो गया
था..एकदम कुंद ...कोई कथानक नहीं कथा भी नहीं..जैसे किस्सागोई भूल गया था...कारण
कुछ भी हो सकता है.. नौकरी की व्यस्तता या फिर वैवाहिक जीवन का सुख..गृहस्थी में
रमा बसा लेखक क्या खाक लिख पाता.?.. नव विवाहिता के नाज-ओ-नखरे
उसका यौवन उसका चंचला मन ..लेखक को एक अतल गहराई में खींचता गया..मैं अतल गहराई
में जाने की कोशिश करता लेकिन हर बार असफल..मिस्टर अग्रवाल अक्सर कहा करते
-"मुन्धा घड़ा कभी कोई भर पाया है..इस अतल गहराई को कोई नाप पाया है... या फिर
एक निश्चित वलय को पार पाना भी किसी मर्द के बस में नहीं..यहाँ हर तीरंदाज के तीर
विफल।“ स्त्री तू ईश्वर की अजीब रचना
तेरी अथाह गहराई जिसे माप पाना भी असंभव और जिससे पार जा भी मुश्किल.... । तंद्रा अभी-अभी टूटी है..कहानी का प्लाट मिला था
...लेकिन अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं.. मोबाइल की घंटी बजी..एक अजीब सी झुंझलाहट ..जब
भी कोई काम करने बैठो..मोबाइल बज उठता है.. काम में व्यवधान..मिस्टर सलूजा सही हैं
जो इस चल स्वर यंत्र से दूर ही रहते हैं.. अनमने मन से टेबल से मोबाइल
उठा स्क्रीन को देखता हूँ ..ये मिलन की कॉल है। मिलन की आवाज थोड़ी घबरायी, सहमी है।
मिलन ने पूछा- "ज्योति प्रसाद जी अभी घर पर कौन-कौन है?"
"मिसेज मायके गयी है ..बच्चे अभी पैदा ही नहीं हुए , अमा यार घर पर अकेले हैं।" -मैंने जबाब दिया।
"ओह थैंक गॉड...अगर आपको कोई खास काम न हो तो मैं आपके पास आना चाहता हूँ।“-मिलन ने कहा।
"मिलन जी देख लो शादी नयी-नयी है हमारी और शादी का खुमार अभी उतरा नहीं है और
आप बीवी की अनुपस्थिति में आने का कह रहे हो।"--मैंने ठहाका लगाया।
“यार प्रसाद साहब
आपको मजाक सूझ रहा है, यहाँ जान पर बनी हुई है, सीरियसली बताइए आप फ्री हैं?" -उनका गला भर्रा रहा था..मानो आंसू आने
को हों।
"या श्योर, कुछ खास काम तो नहीं है, बस एक कहानी पर काम कर रहा था।" -मैंने थोडा औपचारिक बनने का अभिनय किया।
"प्रसाद साहब, मैं काफी परेशान हूँ, प्लीज मेरी मदद
कीजिये.."-उनकी आवाज में एक याचना थी. मैंने उसे आने की स्वीकृति दे
दी ...उन्हें रास्ता समझाया और कहा-"आओ तो जनकपुरी के स्टैंड पर उतर कर कॉल
कर देना..स्कूटर से लेने आ जाऊंगा।"
वैसे भी मुझ जैसे मसिजीवी के पास कार जैसा साधन तो होता नहीं.. पुराने
स्कूटर से ही चलती है जिन्दगी। अशोक विहार से जनकपुरी तक आने में वक़्त लगता चुनांचे मैंने अस्त-व्यस्त
कमरा ठीक करना उचित समझा। कमरे के अस्त-व्यस्त होने की भी अपनी महिमा है..मिसेज के मायके जाने से
पुरानी महिला मित्र तंग करना शुरू कर देती हैं, हाँ इसे तंग करना कहना ही उचित
होगा या फिर हमबिस्तर होना, उनकी अतृप्त इच्छाएं ,काम-पिपाषा में डूबी उनकी भावनाएं, और उनका मेरे प्रति दैहिक आकर्षण ..उफ़्फ़ कभी कभी सोचता हूँ --एक से ज्यादा
स्त्रियों से प्रेम उचित नहीं..फिर ख्याल आया, उन नवोदित कवयित्रियों को कैसे निराश किया जाये तो मेरे द्वारा सम्पादित
पत्रिका में छपने के लिए प्रेम सुख बिखेरती हैं।
मिलन के आने में अभी समय था..कमरा सही करके किचन में पहुँच गया, देखा तीन दिन के बर्तन पड़े थे, काम वाली माई भी नहीं आई इन दिनों में।
दुनिया का सबसे गन्दा काम है झूठन साफ़ करना झूठन किसी की भी हो दूसरों की
हो या अपनी, बहरहाल लेमन टी का कप मेरे हाथ में था ..सिर्फ उसे ही साफ़ करके एक लेमन टी
तैयार करके लेखन कक्ष में आ, डायरी उठा, पुनः कहानी लिखने के लिए कलम उठायी... कलम साथ नहीं दे पा
रही थी.. लेकिन कुछ था जो व्याकुल कर रहा था जो कागज पर खुद-ब-खुद उतर जाने को
आतुर था। मिलन से प्रथम परिचय
बी.एड की क्लासेज के समय हुआ था।
सांवला रंग रेशम जैसे कोमल बाल जो उसके ललाट पर पड़े होते। हवा के झोंके के छू जाने से पुनः अपनी जगह आ व्यवस्थित हो जाते, कद ५ फीट
६ इंच, कुल मिलाकर एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे मिस्टर मिलन। वो अशोक बिहार में किराये पर
रहते थे और मैं होस्टल न खुल पाने के कारण करमपुरा पेइंग गेस्ट।
मिलन के साथ ही आन्दोलन करके होस्टल पर पड़ा ताला खुलवाया था, यही वजह थी कि
मिलन से दोस्ती बढ़ गयी थी और दोस्ती के साथ ही बढ़ गयी थी नजदीकियां। आज मिलन के आने की खबर ने जहाँ मुझे थोडा विचलित कर
दिया था वहीँ पुरानी यादें मन: पटल पर उभर आई... बी.एड के समय में
मिलन साहब और मैं ,मैं यानि ज्योति प्रसाद का सेक्शन अलग था. और बी.एड
में इतना ज्यादा बर्डन; किसी से बात तक करने की फुर्सत नहीं, सिर्फ लाइब्रेरी में
ही मुलाकात होती थी या फिर अगर थक जाओ तो कैंटीन में चाय पीते हुए। मिलन के अध्ययन से लगता था कि लम्बी रेस का घोडा है.. बी.एड के एग्जाम के
बाद मिलन और मैं कैंटीन में बैठे चाय का आनंद ले रहे थे-"तो मिलन साहब अब क्या करने का इरादा है?"
“ऐसा है प्रसाद साहब, मैं तो एम्.एड में प्रवेश की
सोच रहा हूँ, आपका क्या इरादा है।"
“एम्.एड में फॉर्म तो
डालूँगा लेकिन सीट्स कम हैं ..और फिर सिर्फ डिपार्टमेंट के ही छात्र तो आते नहीं
एंट्रेंस एग्जाम में आल इंडिया से आते है.. दाखिला मिला तो एक साल और छुट्टिया
बढ़वा लेंगे.नहीं तो जाकर अपनी पुरानी नौकरी ज्वाइन कर लेंगे।"
"हाँ प्रसाद साहब आपको नौकरी की तो चिंता ही नहीं, पिताजी का अच्छा खासा कारोबार
और गॉव में खूब खेती बाड़ी, मज़े से जिन्दगी जियोगे..इकलौते वैसे हो।"
" नहीं भाई मैं पिताजी की विरासत पर ऐश नहीं करना चाहता..वर्ना तो उनको
आसामियां ही इतनी हैं कि ब्याज के पैसे से ही गुजारा हो जाये..लेकिन मैं कुछ खुद
का करना चाहता था.. तभी तो पढने की लाइन पर चला. क्लर्की छोड़कर बी.एड करने आया।"
उस दिन हम दोनों ने निर्णय लिया कि एम्.एड के लिए तैयारी करेंगे..और फिर
हमने लाइब्रेरी में बैठने की अवधि बढा दी.. इसी बीच बी.एड के नए
सत्र के फॉर्म निकले, सुबह-सुबह का वक़्त था, मैं चाय पीने कैंटीन में जा रहा था
..कैंटीन लोन के सामने के पेड़ के नीचे मिलन साहब किसी लड़की के साथ खड़े थे। मैं तीन चाय का आर्डर करके
उनके पास आया। मिलन ने परिचय कराया-"प्रसाद
साहब अपनी भाभी से मिलो।"
"भाभी?"--मेरे मुँह विषमय से खुला..लेकिन शब्द अन्दर ही रह
गए.. चाय आ गयी थी। मिलन ने बताया कि इनकी इच्छा बी.एड करने की है इसलिए फॉर्म भरने आई है।उन्होंने पहले कभी शादी का
जिक्र तक नहीं किया था इसलिए मेरे लिए ये आश्चर्यजनक बात थी.. हालाकि किसी का शादीशुदा
होना या न होना कोई ज्यादा मायने नहीं रखता। चाय पीते हुए मिलन
ने मुझे साइड में चलने का इशारा किया। मैं चाय का कप हाथ में लिए उनके साथ दस कदम साइड में आ गया, उसने
कहा-"प्रसाद साहब आप मेरे मित्र है आपसे एक गुजारिश है।"
"जी बोलिए।"
"आप ये बात किसी से शेयर नहीं करेंगे कि मैं शादीशुदा हूँ और पत्नी को फॉर्म
भरने लाया था।"
"ठीक है मिलन साहब मुझे क्या पड़ी है जो..... ।"
चाय पीकर मैं लाइब्रेरी आ गया लेकिन ये बात मेरे दिमाग को कोंधती रही..
क्यों लोग शादी को रहस्यमयी बना देने को उतारू रहते हैं..आखिर ऐसा क्या है जो वो
शादी जैसे विषय को छुपा कर रखना चाहते हैं?
एम्.एड. की प्रवेश परीक्षा का परिणाम आ चुका था. अपने ग्रुप से ५ एडमिशन
थे. बाकि सब बाहर से.. उमेश से एंट्रेंस के समय ही परिचय हो
गया था.. एम्.एड की फीस जमा की तो सब लोग कैंटीन आ गए। हास्य-विनोद का दौर चल पड़ा.
उमेश काफी दिलचस्प और मजाकिया लड़का था. हम लोग एक टेबल के साथ बैठे चाय का इंतज़ार
कर रहे थे। उमेश ने कहा-“ आज ही सब तय कर लो..कौन किसकी गर्ल फ्रेंड होगी..बाद
में कोई किसी के घर में डांका नही डालेगा।”
“अरे उमेश एम्.एड. तक आते आते सबके कपल्स बने होते हैं कोई चांस नहीं।”-मैंने कहा था। “अरे ज्योति भाई आप भी ना..दिल्ली में कोई कभी अंगेज नहीं होता..आप ट्राई तो
करो..कब किसका किसपे सिप्पा जम जाये..इसका कोई भरोसा नहीं।”
“ठीक हैं भाई चुन लो”-मैंने प्रतिउत्तर में कहा, जैसे ये कोई चुनाव प्रतियोगिता
हो, और चुनने में आपको खुली छूट हो.. उमेश ने एक लड़की की ओर इशारा करके कहा-“ये तुम सबकी
भाभी है. इसे कोई गलत नजर से नहीं देखेगा।“
सबने सहमती जाता दी.. अब बारी बिजेंद्र की थी..उसने बबिता से नजरें मिलाने
की कोशिश की.. बबिता अपनी सहेलियों के साथ व्यस्त थी.. बिना बोले सब समझ गए कि
बिजेंद्र की मंशा क्या है? उमेश ने मुझसे पूछा—“ज्योति भाई, आप भी कुछ बताये? कौन खुशनसीब है जो भाई की भाभी बनेगी?”
उसका इतना कहना था कि एक जोर का ठहाका लगा..अरे..भाई की भाभी तो बन गयी अब
तो भाई वाली भाभी चुननी है।
मैंने कहा-“ सच कहूँ तो इस बैच में जितनी लड़कियों से पहचान हुई है
उनमें किसी का स्तर मुझे नहीं लगा जो प्रेमिका बन सके और फिर ये सब चुनने का नहीं
महसूस करने का मामला है, हो सकता है कोई आये जिसे देख अपना भी दिल आहे भरने लगे।”
“कही अपने बी.एड. से तो नहीं?”-बिजेंद्र ने कहा।
“नॉ चांस मिस्टर, ज्योति प्रसाद की माशूका बनने के लिए तो बहुत कुछ चाहिए।”-मैंने मामला हल्का किया।
अब बारी मिलन साहब की थी, उमेश ने छेड़ा-“मिलन जी कहिये किस पर नजरें इनायत है?”
“अरे भाई जिस पर नजरें इनायत हो सकती थी उसका वरन तो आपने कर लिया है, लगता
है अपने भाग्य में तो ज्योति साहब की तरह इंतज़ार करना ही लिखा है।”
इस तरह ग्रुप में हंसी-मजाक चलने लगा..क्लासेज शुरू हुई तो सब पढाई में
रमने लगे. मिसेज माथुर दर्शनशास्त्र पढ़ाती. कुछ समझ न आता तो डायरी में कविता लिखने
लगा। एक दिन क्लास चल रही थी, दकार्ते
के दार्शनिक विचार पर चर्चा थी, कमरे के बाहर से आवाज आई-“एक्सक्युज मी.. मैडम
..मय आई कम इन?’
सबकी नजरें गेट की तरफ ... खुले बाल कंधो पर बिखरे हुए, बालो के ऊपर
चश्मा.. आकर्षक चेहरा, एक बारगी लगा कि सिलसिला फिल्म की रेखाजी खड़ी हैं। मैडम की परमिशन से वो लड़की
अन्दर आई। मैडम ने परिचय पूछा, उसने कहा-“ जी मेरा नाम रीतू अवस्थी है..उदयपुर
से हूँ..कल ही एडमिशन लिया है, एक्चुअली मेरा एडमिशन वेटिंग से हुआ है।”
रीतू को देखकर लगा कि लगता है अपनी तो तलाश अब ख़त्म हुई। ये ही तो है जिसकी तलाश थी। क्लास ख़त्म हुई तो सब चाय के
लिए कैंटीन की तरफ दौड़े। मेरे मन में एक उमंग का संचार हुआ, मैं इसी संचार के साथ कैंटीन की ओर
दौड़ा। रितु अवस्थी का रूप-लावण्य ऐसा
कि कोई भी उस पर मोहित हो सकता था। मेरे दिल की धड़कन उसे देख बढ़ जाती। रेखा जी मेरी
पसंदीदा अभिनेत्री थी.. और उनसे मिलती जुलती शख्सियत मुझे कुछ बेचैन करने लगी। कैंटीन की तरफ जैसे ही मैं
पहुंचा रितु अवस्थी से टक्कर हो गयी।
"सो सॉरी मिस अवस्थी"-मैंने कहा।
"इट्स ओके,, ज्योति प्रसाद जी।"
"आप भी लगता है कैंटीन ही आ रही थी..?"--मैंने बात करने की गरज से बोला।
“जी, असल में मैं आज लंच नहीं लायी, असल में सुबह लंच बना
ही नहीं, माँम की तबियत सही नहीं थी और सुबह तो टाइम ही नहीं
होता कि खुद बना सकें, आप तो होस्टल में रहते हैं, आपको तो बना-बनाया मिल जाता है।"-उधर से जबाब आया।
"जी चलिए, कैंटीन चलते हैं वहीं बैठकर बात करते हैं, साथ में
खाना-पीना भी हो जायेग।“.-मैंने आग्रह पूर्वक कहा। मैं हैरान था कि उन्हें दो ही दिन हुए और मेरा होस्टलर होने का भी ज्ञान है।
अब हम दोनों कैंटीन की एक टेबल पर आमने-सामने बैठे थे।
"मिस अवस्थी, जानते हो मुझे आपमें रेखाजी का अक्स दिखाई देता है.. लगता है
जैसे सिलसिला फिल्म की नायिका मेरे सामने बैठी है।"
"आप मुझ पर लाइन तो
नहीं मार रहे मिस्टर!"--उसने कहा।
मेरा चेहरा झेप सा गया। मुझसे कोई जबाब ना बन पड़ा। मेरी नजरे शंका और शरम से नीचे झुक गयी। एक ठहाका गूंजा तो मैं आश्चर्य
में पड पाया. "क्यों ज्योति प्रसाद जी, लगा न झटका?”--वो हँस रही थी।
"आप शायद गलत सोच रही हैं, मैं पहली मुलाकत में किसी के बारे में राय नहीं
बनाता।"-मैंने झेपते हुए उत्तर
दिया।
समोसे और चाय के दो कप आ चुके थे। उसने कहा- "कैंटीन बॉय को आर्डर दिए बिना ये सब कैसे आ गया और मैं तो
चाय नहीं पीती हाँ कोल्ड ड्रिंक जरुर पीती हूँ।"- राजू कंटीन बॉय
इशारा समझ एक चाय उठा ले गया और एक बोतल कोल्ड ड्रिंक की रख गया।
"अच्छा आपको अपना नाम अजीब सा नहीं लगता, ज्योति....प्रसाद... जी?"
“असल में मेरा नाम
ज्योति प्रसाद है, जी तो आप एक्स्ट्रा लगा रही हैं। वैसे लोग मुझे जे.पी. कहते हैं,
आप भी ऐसा कह सकती है।"
"जेपी मतलब क्रांति...?"
"जी आप ऐसा मान सकती हैं।"
"तब तो आप बड़े दिलचस्प हैं, आपसे दोस्ती करनी पड़ेगी।"
ऐसा सुनकर दिल की धड़कन थोड़ी बढ़ गयी लेकिन सांसो को संयत करने का अभिनय
किया..शायद उस भी ये आभास हो गया कि मेरी सांसे उखड रही हैं।
"क्या हुआ जेपी साहब ? कहाँ खो गए? "
"नहीं, कहीं नहीं खोया, सोच रहा था कि उदयपुर की बाला भी कम दिलचस्प नहीं है।"
“तो फिर बढाइये हाथ
आज से दोस्ती पक्की।“
कमरे की अस्त-व्यस्तता को देखकर एक बारगी गुस्सा आया फिर सामान एडजस्ट कर
लेखन कक्ष में आ चाय का कप ख़त्म कर विल्स का पैकेट निकाल सिगरेट सुलगाई.. और छल्ले
छोड़ने लगा। ये स्थिति अक्सर तनाव के क्षणों में होती है।
मिस अवस्थी का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया था..एक घृणित सा भाव मेरे
मन में आया.. डायरी निकाल मैं कुछ लिखने का प्रयास करने लगा।
मिस अवस्थी की शोख चंचल हंसी सबको उसका कायल कर देती थी...उस दिन कैंटीन से
निकल हम क्लास करने गए तो मैं उसे कनखियों से देखता रहा। कुछ सपने कुछ अरमान पल भर में
मेरे मन में पनपने लगे। क्लास ख़त्म हुई तो उसने कहा था--"जेपी बाइक से मुझे स्टैंड तक छोड़
दोगे?"
होस्टल में रहते हुए भी मैं बाइक रखता था। जेब खर्च के लिए पिताजी पर
आश्रित न होकर ट्यूशन पढाता था तो बाइक मेरी जरुरत बन गयी थी।
मैंने कहा—“ठीक है मिस अवस्थी ..छोड़ आते हैं।“
मैंने बाइक निकाली..वो पीछे बैठ गयी। स्पीड पकड़ते ही उसने अपना हाथ पेट की ओर लाकर कसके पकड़ लिया..एक सुखद
अनुभूति का अहसास हुआ ... बाइक ने स्पीड पकड़ी तो उसकी कॉलोनी तक ही जाकर रुकी..
उसने अन्दर आने का आग्रह किया ..तो मैंने अनभिज्ञता जाहिर की और एक सुखद बाय के
साथ बाइक को वापिस मोड़ लिया।
दो महीने के सुखद मेल मिलाप के बाद यकायक उसका मुझसे दूरी बनाना समझ नहीं
पाया। श्रुति ने एक बार बताया कि आपका दोस्त मिलन और आपकी मिस अवस्थी में कुछ पक
रहा है, मैंने उस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया..लेकिन कैंटीन लाइब्रेरी और क्लास
के बाद दोनों का अक्सर स्टैंड तक साथ जाना देखकर ये तय हो गया था कि कुछ ज्यादा ही
पक रहा था।
श्रुति ने मुझसे कहा था-“जेपी आप रीतू को बता क्यों नहीं देते कि मिलन शादीशुदा
है, वो उसकी जिन्दगी के साथ मजाक कर रहा है।“
मैंने उससे कहा था--"श्रुति तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं उसे बोलूँगा
और वो विश्वास कर लेगीऔर मिलम मेरा दोस्त है वो क्या सोचेगा? एक लड़की के लिए मैं क्या अपने दोस्त की दोस्ती ख़त्म कर दूँ, नहीं
श्रुति..मैं ऐसा नहीं कर सकता।"श्रुति ने मुझे बहुत कन्विंस करने की कोशिश की कि मैं उसे सच बताऊँ।
हम लोग कैंटीन में बैठे थे.. माहौल गानों का था..मिस अवस्थी ने गाना सुनाया
-- सांसो में चले आयो ..हमसे सनम क्या पर्दा...अब बारी मेरी थी, मैंने गाना शुरू किया-“अहसान
तेरा होगा मुझ पर.... ।“ मिलन ने अपनी बारी आने पर सुनाया—“चन्दन सा बदन चंचल चितवन..ये धीरे से
तेरा मुस्काना.. ।“ ये सब सिलसिला चल ही रहा था कि मिलन की क्लास का टाइम हो गया..वो क्लास
करने गया तो श्रुति ने मुझे इशारा किया, मैंने कहा -" मिस अवस्थी आपसे कुछ
बताना था...।"
"जी कहिये।"
"आप जानती हैं मिलन साहब शादीशुदा हैं?"
"मैं आपका मतलब नहीं समझी...?"
इस बीच श्रुति और अन्य दोस्त भी सलीके से वहां से खिसक गए थे... ।
"देखो तुम मेरी अच्छी दोस्त हो, मैं नहीं चाहता कि तुम किसी गलतफहमी का
शिकार रहो, मिलन एक शादीसुदा लड़का है और तुम उससके साथ जितना आगे जाओगी उतना ही
दुखी रहोगी, मेरा फर्ज था तुम्हे बताना..आगे तुम्हारी मर्जी।"
उसका चेहरा रुआंसा हो गया.. वो एक भी शब्द बोले बिना कैंटीन से चली।
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मिलन का फोन आया तो मैं अवचेतन से बाहर आया.. मैंने मिलन को कहा कि तुम
स्टैंड पर मेरा इंतज़ार करो..मैं ५ मिनट में पहुंचता हूँ।
स्कूटर बाहर निकाल किक लगायी ...और मिलन को लेने निकल पड़ा। याद आया वो पल जब एक दिन बाइक
पर मिस अवस्थी बैठी थी। बाइक हवा में बातें कर रही थी, उसने कसकर मुझे पकड़ा हुआ था। बिलकुल वही अंदाज जो रेखाजी के
साथ सपने में घूमने का होता था..मालूम ही नहीं हुआ कि जिन्दगी बेवफा भी हो सकती है। मिस अवस्थी ने बोंटा पार्क
देखकर बाइक रोकने की पेशकश की, मैंने बाइक साइड में लगा दी। और हम एक गेट से बोंटा में
प्रवेश कर गए। थोड़ी देर टहलते रहे। वो पक्षियों के झुण्ड देखती तो उन्हें हाथ से उड़ा देती, मैं कहता-"रितु क्यों इन प्रेमातुर पंछियों को तंग करती हो..मन में
गाली देते होंगे.. ये पाप है। क्या ये हमें तंग कर रहे हैं जो हम इन्हें तंग करे?"
“अरे वाह बड़े प्रकृति प्रेमी हो.. आपका ये अंदाज जो हमने जाना भी नहीं
था..और क्या क्या अंदाज हैं जेपी साहब के?"
"मैं तो प्रेम का रंग ही जानता हूँ, मिस ...अवस्थी।“-मैंने छेड़ने के अंदाज में कहा
था।
घूमते-घूमते हम दोनों एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे थे। पास के झुरमुटों से फुसफुसाने
की आवाज आ रही थी..मिस अवस्थी का ध्यान उस तरफ गया.. तो उसने पूछा-“जेपी ये प्रेमी
जोड़े क्या बात करते हैं..?"
मैंने कहा था --"बात क्या करना? बात तो खुले मैदान में भी होती है यूँ झाड़ियों के पीछे जाकर सिर्फ बातें ही
होती है? खुद समझ सकती हो क्या कुछ होता होगा वहां?"
"आपको बहुत कुछ मालूम है यहाँ के बारे में?"
"डिअर, ये तुम्हारा उदयपुर नहीं दिल्ली है, यहाँ प्रेम के
निराले अंदाज हैं।"-मैंने चुटकी काटी थी।
"अच्छा अगर मैं आपको उधर चलने के लिए कहूँ? आपका क्या रिएक्शन होगा?"
"मैं साफ़ मना कर दूंगा.. ।"
"ऐसा क्या? विश्वामित्र हो? बड़े बड़े ऋषियों का तप भंग किया हम उर्वशी-रम्भाओं ने जनाब ..आप तो किस खेत
का बथुआ हैं।"
"चलो वक़्त आने पर पता चलेगा।"
आज स्कूटर चलते हुए वो अंतिम एकांत मुलाकात याद आई तो दिमाग झन्ना गया। स्टैंड आ चुका था। मिलन खड़े हुए इंतज़ार कर रहा
था.. औपचारिकतावश हाथ मिलाया और उन्हें स्कूटर पर बैठा घर आ गया। रास्ते में औपचारिक बातें ही हुई। घर आकर हम अन्दर दाखिल हुए, मैंने स्टडी में बैठना ज्यादा वाजिब समझा इत्तेफाकन मेड भी आ चुकी थी। मेड ने ही पानी लाकर दिया। मैंने उसे लेमन टी के लिए बोला
और मैं मिलन साहब से बातों में मशगूल हो गया।
मैंने ही बातो का सिलसिला शुरू किया -"मिलन साहब बताइए क्या हुआ? क्यों इतने दुखी हो?"
"बताता हूँ..समझ नहीं पा रहा किन शब्दों से शुरू करूँ?"
"यार जिनके दोनों हाथ में लड्डू हों, उनकी जिन्दगी में कौन सी मुसीबत आ सकती
है..?"
"ज्योति प्रसाद जी, मैं वाकई बहुत परेशान हूँ ऐसी बातें बोलकर आप मुझे शर्मिंदा
न करें।"
"अरे भाई मैं शर्मिंदा कहाँ कर रहा हूँ? मैं तो हैरान हूँ कि आप इतने लम्बे समय से दो-दो को कैसे संभाल रहे हैं?"-मेरे कटाक्ष से शायद
मिलन साहब अन्दर तक आहत हुए बिना नहीं रहे। शायद उनकी आत्मा तक चोट लगी। उन्होंने कहा-"आप सुनोगे तो मेरी हालत पर तरस आएगा।"
"ठीक है सुनाइए।"-मैंने उत्सुकता दिखाने का प्रयास किया।
उन्होंने कहना शुरू किया- "एम्.एड करने के बाद मेरी जॉब टी.जी.टी.
समाजविज्ञान लगी तो रीतू से मिलना-जुलना बंद हो गया, हालाकि वो रिसर्च कर रही थी,
मुलाकात हो सकती थी लेकिन फोन पर ही ज्यादा बातचीत होती थी। मिलना-जुलना न के बराबर था। मैं मिलने को उत्सुक रहता था लेकन समय ही ऐसा था कि चाहकर भी मुलाकात न हो
पाती थी।"
"अच्छा मिलन साहब इस सब के बारे में भाभी को अंदेशा नहीं है?"
"है न तभी तो आपके पास आना पड़ा। रितु के प्रेम भरे मैसेज मोबाइल में थे जिन्हें मैंने स्नेहवश डिलीट नहीं
किया वो मेरी पत्नी आकृति ने पढ़ लिए तो घर में हंगामा होना शुरू। अक्सर झगडे होते, पत्नी बेवकूफ
एक नंबर की, बी.एड में एडमिशन नहीं हो पाया और खुद को अप्लातून समझती है। चोरी-छिपे मेरे मोबाइल को चेक
करती है, खून पी रही है मेरा, मन करता है गला दबा दूँ।"
उफ़ किसी इंसान के दिल में पत्नी के लिए इतनी नफरत। मैंने सोचा.. मुझे मिलन पर
गुस्सा भी आया और तरस भी, मन किया कि कह दूँ कि इस सब के तुम खुद जिम्मेदार हो..
लेकिन कह नहीं पाया। अभी उनका मेरे पास आने का मकसद भी जानना था..मैंने उसे मायूस करना ठीक नहीं
समझा। मैंने कहा--" ऐसा मत सोचो, पत्नी के बारे में ऐसा
सोचना उचित नहीं।"
"आप ठीक कहते हैं ज्योति प्रसाद जी, पत्नी के बारे में बुरा नहीं सोचना
चाहिए लेकिन पत्नी भी तो पति को कुछ समझे, जो पति को खाना भी बनाकर न दे वो क्या
पत्नी?"
"बुरा मत मानना मिलन बाबू लेकिन सोचो अगर पत्नी को उसका दर्जा न मिले, उसे
पता चले कि पति की जिन्दगी में उसके अलावा कोई और भी है या कोई और ही है तो वो भी
क्यों पति के साथ तन-मन से साथ होने का स्वांग करे? इससे अच्छा तो मैं उसका रिवोल्ट करना सही मानता हूँ। हो सकता है आप मेरी बात से
इत्तेफाक न रखते हों.. लेकिन ये ट्रू है।"
"सच तो और भी बहुत हैं लेकिन ये भी तो सच है कि पत्नी के तनाव देने के चलते
ही पति उस प्यार को बाहर खोजता है। क्या मैं प्यार का फल नहीं चखना चाहता था, अगर मुझे प्यार घर में मिला होता
तो क्यों मैं वो प्यार बाहर खोजता?"
मुझे मिलन के तर्क में कोई दम नहीं लगा..लेकिन मेरी इस बात में ज्यादा
दिलचस्पी नहीं थी, बस औपचारिकतावश सुन रहा था, मुझे लगा कैसे पुरुष समाज अपने
फायदे के लिए तर्क गढ़ लेता है, खुद को सही
साबित करने के लिए हजार बातें कहेगा। वाह रे कामातुर मन..तेरा भी हद हाल है।
"लेखक महोदय आप ठहरे नारीवादी लेखक, आपको मेरी समस्या में बहुत सी खामियां
दिख जाएगी..लेकिन कभी हम मर्दों के नजरिये से भी देखा कीजिये। मैंने अपनी गृहस्थी ज़माने के
बहुत प्रयास किये लेकिन सब असफल। आकृति को कुछ नहीं सूझता, उसे बस झगड़ने के बहाने चाहिए।"
"ठीक हैं मिलन साहब समस्या आपकी है आप जायदा जानते होंगे। आप ये बताइए मैं आपकी क्या
सेवा कर सकता हूँ?"--चाय में देरी के कारण मेरा दिमाग थोडा सा भन्नाया हुआ था। चाय आई तो मैंने मिलन को एक कप
पकड़ाया और दूसरा अपने हाथ में पकड़ उन्हें सुनने के लिए इत्मिमान से पैर फैला बैठ
गया।
"मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है...वो रीतू और मेरे बीच में बड़ी बाधा है, वो
नहीं चाहती कि हम कभी मिलें, उसका बस चले तो हम दोनों को मौत के घाट उतार दे।"
मन किया कि बोल दूँ कि एक दिन आप भी मेरे और मिस अवस्थी के बीच बाधा बने
थे.. मेरे प्रेम को पींगे बढ़ने से पहले ही कुचल दिया गया था..जबकि आपके पास खुद की
पत्नी थी और मेरे पास सपनो के सिवा कुछ भी नहीं.. पाश का कहना है कि सबसे खतरनाक
होता है सपनो का मर जाना, लेकिन मेरे सपने तो इन दोनों
ने ही मार दिए थे.. सपनो की भ्रूण हत्या कर दी गयी थी।
गाज़ियाबाद में एक बी.एड. कॉलेज खुला था..परमेश सर वहां डायरेक्टर थे.. मिलन
और मैं दोनों ही प्रो.परमेश के स्नेह के पात्र थे। एक दिन मेरे पास प्रो.साहब का
फोन आया कि गाजियाबाद अपने डोक्युमेन्ट्स लेकर कल आ जाओ, मैंने बिना कोई सवाल किये
हामी भर दी और निश्चित समय पर वहाँ पहुँच गया था.. जाने पर पता चला कि
आज कॉलेज में सिलेक्शन के लिए इंटरव्यू है.. मिलन और मिस अवस्थी दोनों आये हुए
थे.. इंटरव्यू में बहुत से सवाल दर्शनशास्त्र पर पूछे गए.. एक दो सवालों को छोड़
अमूमन सब सवालों के जबाब सही दिए। बाद में पता चला कि
हम तीनो का ही सिलेक्शन हो गया था। मिस अवस्थी ने बेरोजगारी के चलते रिसर्च छोड़ वहां ज्वाइन कर लिया था..मिलन
साहब ने भी सरकारी नौकरी छोड़ जाने का निर्णय लिया लेकिन मैं सरकारी नौकरी का लालच
नहीं त्याग पाया। दोनों जगह ४ हज़ार सैलरी का अंतर था। छठे वेतन आयोग का इंतज़ार था, चुनांचे मैंने अपने विभाग में रहने का ही
निर्णय लिया..और अस्सिस्टेंट प्रोफेसर बनने के सपने को त्याग दिया।
बी.एड. कॉलेज में दोनों का इश्क और परवान चढ़ा.. डॉ.अलका भी उसी
विभाग में नौकरी कर रही थी। जिनकी मार्फ़त मुझे वहां का हाल मालूम होता रहता। जब इश्क और परवान चढ़ा तो
प्रो.परमेश को अखरने लगा। उन्होंने मिलन को चेताया.. ‘इश्क में लोग हद से गुजर जाते हैं’- कहावत को चरितार्थ
करते हुए मिलन ने प्रो.साहब के खिलाफ साजिश रचनी शुरू की। प्रबंधको को प्रो.साहब के
खिलाफ भड़काना शुरू किया और एक दिन उनके ऊपर धन सम्बन्धी धांधलियों का आरोप लगवाकर
खुद हेड की कुर्सी पर कब्ज़ा कर लिया। मिलन साहब की इस कारगुजारी से प्रो.परमेश इतने आहत हुए कि उन्हें दिल की
बीमारी ने आ घेरा। मैं डॉ. अलका के कहने पर इस पूरे दृश्य में मूक ही रहा।
मिलन ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा-" ज्योति प्रसाद जी, मैं अब पत्नी
के साथ और ज्यादा रहना नहीं चाहता, आप तो आजकल पुलिस, राजनीति, अदालत सबमें
जान-पहचान बनाये हुए हो, किसी अच्छे वकील से बातचीत करिए और मुझे पत्नी से छुटकारा
दिलाइये।"
मैंने उन्हें समझाया –“देखो मिलन साहब आपके एक बेटा भी है, तलाक का केस
लम्बा चलेगा। बच्चे की कस्टडी का भी सवाल आएगा और आपको क्या ऐसा लगता है कि आपके तलाक
लेने के बाद मिस अवस्थी आपसे शादी करेगी? और वो आपके बच्चे की परवरिश करेगी? वकील
तो मैं कल ही बुला दूंगा...लेकिन सोच लो।"
"अभी मैंने इतना सब नहीं सोचा लेकिन मुझे एक बार रीतू से बात करनी होगी, वो
शादी करती है या नहीं, ये ज्यादा बड़ी बात नहीं लेकिन पत्नी के साथ नहीं रहना।"
"ऐसा क्या हुआ जो इतना बड़ा निर्णय लेने जा रहे हो, शादी कोई मजाक नहीं और
तलाक भी, हमें बहुत बारीकी से सोचना होगा।"
"आज सुबह ही बड़ा हंगामा हुआ, मरने-मारने जैसी नौबत आ गयी थी। आज मैंने घर छोड़ने का निर्णय
लिया, सोचा कहाँ जाऊ? फिर आपका ख्याल आया।"
“देखो मिलन साहब, मैं आपको कितने दिन रख सकता हूँ, जब तक मेरी पत्नी यहाँ नहीं है, जिस दिन
वो आ जाएगी, मैं आपको एक दिन भी नहीं रख पाऊंगा, मैंने और पत्नी ने मिलकर ये उसूल
बनायें हैं।"
"कोई बात नहीं, मैं तक कुछ और व्यवस्था कर लूँगा।"
"अच्छा मिलन जी, अगर मैं कुछ मध्यस्थता करूँ? आपके जीवन की गाड़ी पटरी पर आ
जाए।"
"नहीं, अब मुझे कोई समझौता नहीं करना...आप बस किसी वकील से बात कीजिये।"
"क्या ये आपका अंतिम निर्णय है?"
"जी, मरना मंजूर है लेकिन अपनी बेवकूफ पत्नी के साथ अब एक
पल नहीं रहना।"
मेरी मेड ने आकर बताया-“खाना तैयार है साहब आप लोग खाना खा लें और साहब आपका
आराम करने का भी समय हो गया, खाना भी आधा घंटा लेट है।“
मैंने उसे डांटा कि जब किसी से बात कर रहा होता हूँ तो ज्यादा बक-बक मत
किया करो। वो शर्मिंदा होकर चली गयी। खाना डाइनिंग टेबल पर लग चुका था..मैं मिलन को लेकर डाइनिंग होल में गया।
मिलन ने डाईनिंग टेबल के पास आकार एक कुर्सी बाहर की ओर खिंची और उस पर बैठ
गया। सामने वाली कुर्सी पर मैं बैठ
गया। मेड ने दोनों के लिए प्लेट रखी
और खाना सर्व किया। दही में बनाया लजीज मटन साथ में चपाती, मिंट की चटनी, लेमन राइस और दाल परोस मेड प्रफुल्लित थी। श्रीमती के मायके जाने के बाद
मेड का घर में जैसे पूरा राज हो जाता। जो चीजे श्रीमती जी कलेस्ट्रोल बढ़ने के डर से नहीं खाने देती, मेड वो सब
बड़े चाव से खिला देती है और उसे बदले में बख्शीश भी मिल जाती है.. दिल पर राज़ करने
वाली मेड मिलती भी कितनी हैं? रीटा का खाना बनाने में जबाब नहीं। श्रीमती जी तो पूरे महीने का
बजट देखती हैं लेकिन रीटा को तो साहब को खुश देखना अच्छा लगता है। डाईनिंग रूम हो या बाथरूम या
फिर बेडरूम उसकी सेवा का जबाब नहीं।
अभी कुछ दिन पहले ही रीटा अमृतसर गयी तो एक कड़ा लेकर आई, श्रीमती से छिपाकर
दिया तो बोली--"साहब आप तो बहुत कुछ देते है, एक छोटा सा गिफ्ट मेरी तरफ से
रख लीजिये।"
उसके आग्रह पर जिंदगी में पहली बार कड़ा पहना, जिस पर पंजाबी में कुछ लिखा
था। जब से वो विधवा हुई है तब से
ही मेड का काम करने लगी है। अच्छी-खासी गृहस्थी पल भर में बिखर गयी थी। एक बेटा स्कूल में पढ़ रहा था,
उसकी पढाई का खर्च वगैरह कैसे वहन करे? रीटा की मदद करके मेरे मन को असीम सुख
मिलता।
मिलन साहब खाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे. मैंने उनसे पूछा -"मिलन
बाबू खाना पसंद नहीं आया क्या?"
"खाना एक दम स्वादिष्ट है ज्योति प्रसाद जी, बस दिमाग में ही उलझन है।"
“उलझन को दूर करने के लिए मैंने एडवोकेट चौधरी को फोन करके शाम की चाय पर
आने का बोल दिया।कुछ तो समाधान निकलेगा ही।“
खाना खाने के बाद मेड मिलन को रेस्ट रूम ले गयी.. और मैं स्टडी में आकर
दिवाननुमा चौकी पर लेट गया..और सुस्ताने लगा.. जब आंख खुली तो साढ़े चार बजे थे। वाशबेसिन पर जाकर मुँह धोया। एडवोकेट चौधरी आये तो रीटा चाय
बना लायी। तीनो के हाथ में चाय के कप थे। परिचय के बाद मैंने कहा -"चौधरी! मेरे मित्र अपनी पत्नी के साथ नहीं
रहना चाहते, इन्हें तलाक़ दिला दीजिये।"
एडवोकेट चौधरी हँसे--"जे.पी.साहब वकील के पास कोई जादुई छड़ी नहीं होती,
पहले फैक्ट्स को समझना होगा, स्टोरी को समझना होगा।"
अब मिलन साहब ने उन्हें सारा किस्सा सुनाया..लेकिन रितु वाला पोर्सन छिपा
लिया, चौधरी ने मामले को अपने तरीके से समझने के बाद उन्हें सारी बातें लिखकर देने
को कहा ताकि एक नोटिस तैयार किया जा सके।
मिलन ने अपनी शंका जाहिर की -" वकील साहब इस पूरे केस में आपकी फीस
क्या होगी?"
"देखिये आप जे.पी के दोस्त है, इस लिहाज से मैं आपके ४० हज़ार एक केस की फीस
लूँगा वैसे मेरा रेट ६० हज़ार है।"
मिलन ने उन्हें एक बार फिर मिलने का कहा... चौधरी साहब चले गए। मिलन को फीस ज्यादा लग रही थी। चौधरी ने जाने से पहले अपना
कार्ड मिलन को थमा दिया था। ४ -५ दिन मेरे पास
रहने के बाद मिलन साहब वापिस चले गए।
उन्हें गए हफ्ता गुजरा होगा, मेरे फोन पर अन्जान नंबर से
कॉल आई.. मैं अमूमन अनजान नंबर कम ही उठाता हूँ। फोन उठाया तो किसी बुजुर्ग की
आवाज थी, बोले- "ज्योति प्रसाद जी मैं मिलन का ससुर बोल रहा हूँ, मिलन ने
मेरी बेटी की जिन्दगी तवाह करके रख दी है। रीतू की वजह से वो मेरी बेटी को
तंग करता है।"
मैंने उत्सुकता का अभिनय करते हुए पूछा-"कौन रीतू?"
"कमाल करते है आप भी इतने क्लोज फ्रेंड होकर रीतू को नहीं जानते, ठीक है मैं बताता हूँ...वो रीतू जो आपके साथ एम्.एड में
पढ़ती थी।"
"देखिये श्रीमान जी हर साथ पढने वाला दोस्त नहीं होता। ठीक वैसे ही जैसे हर जान-पहचान
वाला दोस्त नहीं होता। ठीक है मैंने इन लोगो के साथ एम्.एड. किया लेकिन मेरा इनसे कोई खास संपर्क
नहीं रहा.. मैं स्कूल टीचिंग में आ गया और ये लोग कॉलेज में चले गए लेकिन मुझे समझ
नहीं आया कि आपने मुझे फोन क्यों किया?"
“देखिये सर आप मिलन के दोस्त हैं इस लिहाज से मैंने आपको फोन किया, उसे
समझाईये वो जो खेल खेल रहा है, उसमें वो बर्बाद हो जायेगा.. मेरी बेटी का जो होगा
वो तो होगा लेकिन मैं उसे बर्बाद कर दूंगा।"
"श्रीमान जी मिलन आपका दामाद है आप जो भी करें। मैं आपकी चाहकर भी कोई मदद
नहीं कर सकता। मेरी संवेदना आपकी बेटी के साथ है लेकिन अच्छा हो कि वो दोनों इस मसले पर
बात करें, संवाद से बहुत कुछ हल हो जाता है।"
"अगर मिलन को हल करना होता तो वो वकीलों से सलाह न लेता, आप उसे समझा देना
कि आग से ना खेले जल जायेगा।"
उनके फ़िल्मी डायलोग सुनकर मैंने फोन रख दिया। एक बेटी के बाप का दर्द मुझे
वेदना दे रहा था। साथ ही ये भी रहस्य था कि इन्हें मेरा नंबर कहाँ से मिला और वकील से सलाह
लेने वाली बात का कैसे पता चला?
मैं ये सब रहस्य समझ भी नहीं पाया था कि फिर से मेरे फोन पर एक अजनबी नंबर
से कॉल आया। इस बार आवाज एक महिला की थी -"ज्योति प्रसाद जी मैं मिलन की पत्नी
बोल रही हूँ।"
मैं चौंका, मिलन की पत्नी मुझे क्यों फोन करेगी। मैंने उन्हें औपचारिक नमस्कार
किया... और पूछा--"कहिये आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"
"भाई साहब आपको कुछ बताने की आवश्यकता तो हैं नहीं आप सब जानते ही हैं...बस
आपसे एक बात पूछती हूँ, आपको मेरे और मिलन के तलाक में क्या इंटरेस्ट है?"
"मुझे क्या इंटरेस्ट होने लगा?"
"फिर आपने मिलन को अपने घर में एक हफ्ता क्यों रखा और क्यों उन्हें वकील से
मिलाया?"
मुझे आश्चर्य था कि कोई हमारा कॉमन फ्रेंड नहीं फिर इतनी पुख्ता जानकारी
इन्हें कहाँ से मिली। मैंने अन्जान बनने का अभिनय करते हुए जबाब दिया--"देखिये भाभी जी अगर
कोई मित्र अपनी परेशानी बताकर अपने पास कुछ समय गुजरने का आग्रह करे तो इंसानियत
के नाते क्या उसे नहीं रखना चाहिए? बात बाकि आप दोनों के बीच के खटास पूर्ण रिश्तो
की तो जब तक मैं एक पक्ष को जानता हूँ तब तक कुछ निर्णय नहीं कर सकता। .मैं आज तक इस बात को समझने
में खुद को नाकामयाब पाता हूँ कि आपके कारण मिलन साहब रीतू के करीब गए है या रीतू
के कारण आपसे दूर..?"
"भाई साहब, आप बताइए कोई लड़की किसलिए शादी करती है? मुझसे शादी करके मिलन रीतू के साथ
प्रेम करें ये बात मैं कैसे बर्दास्त करूँ?"
"जी ये ही समझना मुस्किल है।"
एक दिन ये बाथरूम में थे तो रीतू का फोन आया था, मैंने फोन उठाया और उससे
पूछा—“तू मेरे पति को मुझसे क्यों छीन रही है?” तो उसका जबाब था—“मैं छीन रही हूँ
या तुम छीन रही हो...मिलन तुम्हारे पति थे जब थे अब वो मेरे हैं...आप उन्हें छोड़
दीजिये ताकि हम दोनों चैन से रह सकें।"
"ओह उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। पता नहीं वो किस दुनिया में जी रही है, ख्याली दुनिया में ज्यादा देर नहीं
रहा जाता, जिस दिन ख्यालों से बाहर आएगी उसे यथार्थ के दर्शन होंगे तब तक सब कुछ
लुट चुका होगा।"
"लेकिन भाई साहब आश्चर्य इस बात का है कि आप जैसा लेखक भी गलत का साथ दे रहा
है, मुझे इस बात से दुःख भी है और वेदना भी।"
"आप मुझसे क्या उम्मीद करती हैं?"
"मैं चाहती हूँ कि आप मिलन और रीतू का साथ न दें।"
रीतू से मुझे कोई वास्ता नहीं लेकिन आपसे बात करके मुझे यकीन हो गया कि वास्तव
में मुझसे कुछ चूक हुई है, भविष्य में मैं अधिक सावधान रहूँगा, लेकिन दो सवाल मुझे
भी कचोट रहे हैं ---एक आपको मिलन के मेरे पास आने की जानकारी और वकील से मुलाकात
कराने का इल्म कैसे हुआ? दूसरा आप दोनों के बीच ऐसे
हालात कैसे हुए ?"
"जी पहले सवाल का जबाब है मिलन की जेब से वकील का कार्ड मिला और जब मिलन
आपके पास से वापिस आये तो उनके मोबाइल में आपके नंबर पर कॉल थी, मुझे शक हुआ। मैंने आपका नंबर अपने मोबाइल
में फीड कर लिया। पापा ने आपसे बात की तो मेरा शक यकीन में बदल गया और मिलन से जब मैंने पूछा
तो ताव में आकर उन्होंने खुद स्वीकार कर लिया। रहा दूसरा सवाल तो ये मानव मन
की फितरत है कि वो बाह्य सौन्दर्य की ओर भागता है। मिलन जब स्नातक में पढ़ते थे
तो हमारी शादी हो गयी उसके बाद ये दिल्ली पढने आ गए,.. और मैं गॉव में ही रही। बी.एड. के बाद मैंने इनसे जिद्द की कि मुझे भी बी.एड करना है तो ये मुझे
लेकर अशोक विहार आये, तब तक सब ठीक था। मेरा बी.एड. में एडमिशन नहीं हुआ, इनका एडमिशन एम्.एड में हो गया, उसके बाद
पता नहीं क्यों ये उस चुड़ैल के चंगुल में फंस गए..मैंने सुना था कि बिहार से जो
लोग दिल्ली पढने आते है वो अपनी गॉव में रहने वाली पत्नी को भूल यहाँ की सुन्दर
लड़कियों के चक्कर में पड जाते हैं लेकिन मैं अक्सर सोचती थी मेरे मिलन जी ऐसे नहीं
करेंगे। वो मुझे बेहद प्यार करते हैं, लेकिन
मुझे क्या पता था कि मेरे साथ भी धोखा ही होगा..?"
"जी भाभी जी मैं आपका दर्द समझ सकता हूँ.. मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है। मैं आपसे वायदा करता हूँ कि
मैं मिलन का इस मामले में कोई साथ नहीं दूंगा, हाँ लेकिन आप भी मुझसे सिर्फ न्यूट्रल
होने की ही उम्मीद कीजियेगा, मैं आपका भी साथ नहीं दे पाऊंगा।“-कहकर मैंने फोन काट दिया।
मेरे मन में द्वंद्व चलता रहा।
समय बीता तो मैं अपनी जिन्दगी में रम बस गया.. डॉ अलका से कभी-कभी ही बात
हो पाती तब ही पता चलता कि अब तो कॉलेज में स्टूडेंट्स भी हेड और मिस अवस्थी के
चर्चे करते हैं। उन्हीं से पता चला कि एक दिन मिलन
की पत्नी ने कॉलेज आकर मिस अवस्थी को छाते से खूब मारा, हेड साहब अपने केबिन से
नहीं निकले। मुझे सुनकर अफ़सोस हुआ।
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रविवार का दिन था सुबह लिखने के लिहाज से लेखन कक्ष में बैठा सिगरेट के कस
लगा रहा था। मोबाइल की घंटी बजी, मैंने फोन की स्क्रीन देखी- रीतू का नाम डिस्प्ले हो
रहा था। रिसीव बटन को ओके किया तो रीतू
ने कहा--"जी.पी साहब पिछले हफ्ते
मेरी शादी हो गयी, आपको बुलाना चाह्ती थी लेकिन सब कुछ इतना जल्दी में हुआ कि बुला
ही नहीं पायी।"
"क्या करते है आपके पतिदेव?"
“वो डॉक्टर है और
बहुत ही अच्छे है, भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा नेक पति मिला।"
"और मिलन साहब? उनका क्या होगा जो आपके लिए अपनी पत्नी को भी छोड़ने पर
तुले थे..?" “
कौन मिलन? जे.पी. साहब सच कहूँ तो इन ८ दिनों ने सब कुछ भुला
दिया। मिलन कौन थे क्या थे, ये मेरे लिए पिछले जन्म जैसी कोई धुंधली कहानी सा है। अतीत से जिन्दगी नहीं जी जाती,
भविष्य की तरफ देखता चाहिये।"-मिस अवस्थी बोल रही थी लेकिन जैसे मैं उनके शब्द नहीं सुन पा
रहा था।
मेरे कानों में मिलन की पत्नी के शब्द गूंजने लगे-“भाई साहब आप मिलन का साथ
मत दीजियेगा।“
एक शुकून की साँस लेते हुए मैंने मोबाइल का लाल बटन दबा दिया।
अक्सर extra marital relations में यही होता है जहाँ बात खुली, गए काम से और महाभारत शुरू,शब्दों का अछा इस्तेमाल कर लेते हो भाई, मानना पडेगा कलम के धनी हो,वैसे कहानी के अंत मे छाते की पिटाई ने रीतू जी का मन परिवर्तन और किसी ओर से शादी कर लेने पर मै तमाम उन पत्नीयों को जो इस पीड़ा की मारी हैं वो एक बार छाते को आजमा कर जरूर देखने की राय दूँगा ...😀😀😀
ReplyDeleteबढ़िया राय है, भैया
Deleteये बात तो एकदम दुरूस्त है के जहाँ सुन्दर लडकी देखी नही लग गये सब लाईन में क्या शादी शुदा क्या कुवारे| इस बात पर एक पुराना शेर याद आ रहा है...
ReplyDeleteक्यों फिसल पडते हैं मुल्के हसीन में
क्या वहाँ बरसात ही बरसात है.. ?
मौजू शेअर
Delete