Wednesday, 13 May 2015

कहानी संग्रह यंगर्स लव {लेखक : संदीप तोमर } की भूमिका


कहानी संग्रह यंगर्स लव
{लेखक : संदीप तोमर } 


भूमिका

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किसी शायर का एक शेर है ----
वो शख्स प्यार के काबिल है क्या किया जाये
मगर वही मेरा कातिल है क्या किया जाये.
अगर हम आस पास के मानवीय संबंधों को देखें तो शेर की पंक्तियों की प्रासंगिकता समझ आती है...तब ये पंक्तिया न होकर जीवन दर्शन बन जाती हैं..जब कभी मैं बचपन , किशोरावस्था ,युवावस्था,के तमाम सुन्दर-असुंदर रूप देखता हूँ. तो वो तमाम शख्स मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं..जिनके साथ जीवन यात्रा के पडावो पर अनुभव -दर-अनुभव मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा बनते गए...
जब ये अनुभव डायरी में दर्ज होने लगे तो मुझे महसूस हुआ कि मुझमे अक्षरों की एक नयी दुनिया विस्तार ले रही थी जिसमे एक अजीब सा आकर्षण था...यह आकर्षण मुझे अपने आगोश में लिए दीख पड़ता था...मैं उस उजली दुनिया में अपने आप को बहुत ही प्रकाशित और उर्जायुक्त महसूस कर रहा था,...
मुझे अक्षरों की इस दुनिया के साथ क्रीडा-कौतुक करने (होने) में आनंद हो आता था..मैं अक्षरों की एक सामूहिक बौछार की हर फुहार ,हर बूंद, को अपने चेहरे को नम करते देखा...यह एक ऐसी दुनिया थी जिसका रस मैं किसी के साथ नहीं बनता सकता था...
शायद अक्षरों से चलने वाला सफ़र शब्दों के रूप में तब्दील होता हुआ वाक्यों की ओर उन्मुख होता गया,...मैंने तमाम उन नायक -नायिकाओं को इस दुनिया में खींचने की कोशिश की जो मेरी जिन्दगी में अपना स्थान सुनिश्चित कर चुके थे..उनमे से कुछ इस क्रीडा का आनंद उठाने में अक्षम थे...तो कुछ अपना क्रम निर्धारित करने में व्यस्त हो गए...कुछ एक शख्स अपने कदम आगे बढाने को तैयार ना थे..समाज में अमरत्व उन्हें कलंक प्रतीत हुआ...या फिर यूँ कहूँ की वे लेखक की सह-यात्रा में कलंकित होने के भय से ग्रसित थे..मैं अपना दामन फैलाये ,अपनी पलके उनकी राहों में बिछाये खड़ा रहा....
उन तमाम नायिकाओं की छवि मुझे कृष्णा अष्टमी के चाँद की सी महसूस हुई...बादलों की कालिमा ने उन्हें अपने आगोश में छुपा लिया था हर एक पल...हर एक क्षण कृष्ण पक्ष था चन्द्र आभा के लिए मन को दमित करने पर उतारू रहता था...अब मैं अपने सफ़र का अकेला राही था.....मानो हर एक हमसफ़र ...पीछे छूटता जा रहा था...और हर पात्र का चेहरा धुंधला सा होने लगा था.......महसूस होने लगा था कि अब ये तमाम शख्स अमरत्व को प्राप्त न हो पाएंगे.. उदासी मेरे ह्रदय में गहरी पैठ बनाने को उतारू थी...सपने प्राणहीन होने लगे थे...
तभी एक ऐसे शख्स से मुलाकात हुई तो सपने दिखाने के जादू में अभ्यस्त ,कविवर पाश से भी ज्यादा सिद्धस्त ,,,उसने कहा ---
"जब अपने दिल में कोई सपना सजा लो तो इसे जाने मत देना... क्योंकि मेरे दोस्त सपने ही वो छोटे-छोटे से बीज हैं जिनसे बेहतर भविष्य के अंकुर फूटेंगे और एक बेहतर कल तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक देगा....
और अगर सपना सच न भी हुआ तो क्या गम किया जाये ? उत्तेजित होने से भी क्या होगा ? ये संसार बहुत फैलाव लिए है, इसके पास देने के लिए बहुत कुछ है ...असफलता का स्वाद चखा है ,,,जरुरत है एक और सपना पालने की , और और भविष्य की आस बेहतर संसार का निर्माण करेगी ..यही जिन्दगी का फलसफा है..
और मजेदार बात तो देखिये यही शख्स यही साथी अनायास ही अनेक पात्रों के रूप में कहानियों में पसरता चला गया...कभी नायिका के रूप में कभी सह-नायिका के रूप में ,कभी नरेटर के रूप में ..... भले ही इस शख्स का कोई भौतिक वजूद न रहा हो..लेकिन मानसिक और भावनात्मक रूप में यह शख्स इस कदर जुडा की कल्पना में इससे संवाद कुछ यूँ हुआ----
"नए दोस्तों के साथ बैठकर जिए चाँद लम्हात यादों की गुफ्तगू का एक बहाना होते हैं , जिसमे अपनी तमाम जिन्दगी से फिर से रूबरू होने का मौका मिल जाता है यह अमे अक्सर अहसास दिलाता है कि हम फिर से उस जन्म में पहुँच गए और यह अवसर सशरीर साथ रहने ज्यादा सकून भरा अहसास करवाता है...क्योंकि उस पल साथ जिए जीवन को हम एक ही पल में जी लेते हैं..वो सब बातें एक कलाम सा लगती है जिसे हम हृदय के हर कोने ने गता प्रतीत होते हैं...लगता है उस पल जुबान पर आया हर लफ्ज़ मुहब्बत की चासनी में डूबा है..उस वक़्त प्रेम और छल जो भी हमारे जीवन में है सब हृदय से छन-छन कर बाहर आता है, और विडंबना तो देखिये वहा किसी से कोई शिकायत नहीं करता ...वह भूल जाता है कि उस दुनिया को छोड़े ,उस पल को जिए कितना अरसा हो गया ...
जो बीत गया उसे मृत प्राय मान लिया जाता है ...लेकिन यहाँ विचार भूत काल में गोता लगाते हैं.तो ये मृत नही होते बल्कि जीवंत हो उठते हैं..हर मन में स्मृतियाँ होती हैं जो हमारे अन्दर कहीं गहरे में पैठी होती हिन् ..ये स्मृतियाँ जहन में सुरक्षित होती हैं.जिन्हें जब चाहे आईने की तरह साफ साफ देखा जा सकता है.... जब कभी पुनः ऐसा माहौल बनता है तो फिर से दृश्य आँखों के सामने घुमने लगते हैं बाहर आने के लिए करवट ले रहे हों.यादों के अन्दर भी यादें गुंथी होती हैं ,ये यादें आनंद की हैं जीने का अंदाज अलग है तो यादें अलग हैं.हर जिन्दगी में खट्टे मीठे अनुभव होते हैं.लेकिन सबका स्वाद अलग है न्यारा है...
हर इंसान बेहतर जीवन जीने के लिए सपना पालता है.बेहतरी के लिए रस्ते तलाशता है और उसी से मंजर भी जुदा हो जाते हैं...जिन्दगी में बदलाव का सूत्र पुरानी यादों से ही जुडा है..जो बीत गया वाही भविष्य के रास्ते भी तय करता है...इससे जरुर फर्क पड़ता है कि पिछला जिया जीवन कितन बेहतर था...
इस संवाद ने मुझे एक नयी दृष्टि दी... एक नयी सोच विकसित हुई... वो तमाम वाक्यात जो मेरी जिन्दगी में घटे मेरी आँखों के सामने जो मंजर आये वो सब मेरी डायरी का हिस्सा बनने लगे...और कहानी की शक्ल लेने लगे...टुकड़ों में घटी कहानियां परिपक्व होने लगी.और इस तरह संकलन में बदलने लगी...इसी राह में आस पास के मानवीय संबंधों , घटनाओं ,परिस्थितयों इत्यादि को देखने का नजरिया बदल गया...और ऐसे पत्रों की रचना होने लगी जो मेरे होकर भी आप सबके हैं...समाज के हैं इन पात्रों के साथ एक पूरी दुनिया का सृजन होने लगा...एक समूची दुनिया अपना आकार लेने लगी..इससे एक बड़ी घटना यह हुई कि स्वयं का व्यक्तित्व इन पात्रों के साथ आत्मीय होने लगा...इन पात्रों के साथ दुःख सुख बांटते हुए स्वयं इनकी रों में बहने लगा..दरिया में उनके साथ डूबता ...यहाँ वहां विचरण करने लगा....
इन कहानियों को पढ़ते हुए आपको लगेगा की ये पात्र हमारे आस-पास की दुनियां के हैं... इन पात्रों में समय और समाज के संस्कार विद्यमान हैं.... और ये संस्कार मुझे भी संस्कारमय बना एक दिव्यलोक का भ्रमण कराते हैं.. कभी कभी आपको भी लगेगा कि लेखक हमारी जुबान में संवाद लिख रहा है..किसी कहानी की नायिका आपकी अपनी नायिका प्रतीत हो सकती है...आपको अनुभव होगा कि कहानी के पात्रों का वजूद आपके सामने मौजूद है... वो आज भी जिन्दा हैं ,,साँस लेते हुए हांफते हुए ,,अपने समाज, काल और व्यक्तित्व से जूझते हुए ,,, राहत पाने की तलाश में प्रतीक्षारत......
मेरे पाठक मेरे प्रति अपनी उदारता का परिचय देते हुए मेरे पत्रों के साथ आत्मिक रूप से जुडाव महसूस करेंगे ,,उनके साथ मित्रता का हाथ बढ़ाएंगे और खूब आनंदित होंगे...इसी विश्वास के साथ ...
आपका
संदीप तोमर



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