Wednesday, 13 May 2015

कुछ नहीं बदला- संदीप तोमर

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सुदीप के साथ काम करने वाली सजातीय कमला ने उसे नेहा से मिलवाया ...... नेहा के परिवास में ६ लाद्द्किया थी और पिता निहायत ही गरीब..... सुदीप को लगा कि मेरे लिए मिशाल कायम करने और अपने मनमुताबिक शादी करने का इससे अच्छा रिश्ता नहीं मिल सकता...... उसने नेहा के पिता को शादी के लिए हाँ कर दी.... और अपनी मंशा से उन्हें अवगत करा दिया...... नेहा के पिता ने जब सुना कि बटेऊ बिना बारात और बिना दहेज़ के शादी करना चाहते हैं तो उन्हें लगा कि बिन मांगे मन्नत पूरी हो गयी......
सुदीप के घर वालों ने अनमने मन से उसका विवाह कर दिया ...... सुदीप ने वैवाहिक जीवन में भी अपनी पढाई को जरी रखा और वो अधिक अच्छे ओहदे के लिए प्रयास करता रहा..... उसकी पत्नी नेहा उसे पढने को मना करती और पूर्णरूप से घर परिवार ने रच बस जाने का दबाव डालती...... साथ ही रोज़ डिस्को ,,,रेस्तरो जाने की जिद्द करती...... सुदीप के मन में जैसे एक फ़ांस सी गड गयी......अब छोटी छोटी बातों पर विवाद होने लगे......उस इदं तो हद ही हो गयी..... सुदीप की तबियत खराब थी..... और नेहा ने खाना नहीं बनाया था..... सुदीप के कहने पर जबाब मिला आपकी तो रोज़ ही तबियत ख़राब रहती है...... मैं क्या सारा दिन चूल्हे में खटने के लिए हूँ.... ढाबे से खाना माँगा लो...मेरा आज खाना बनाने का बिलकुल मन नहीं है...... विवाद बढ़ गया तो नेहा ने अपना बैग सम्भाला और मायके चली गयी.....
हफ्ते बाद भी नेहा नहीं आई...... आया तो कोर्ट का नोटिस..... सुदीप ने नोटिस पढ़ा जिसमे उसके ऊपर दहेज़ उत्पीडन के चार्जेस लगे थे.... उसे याद आने लगा कि कैसे उसकी सादगीपूर्ण शादी को मिडिया में भी कवरेज मिला था...... आँखे आसुंओ से तर बतर थी और पिता का चेहरा आंसू की बूंदों में तैर रहा था.......

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