तुम्हारी अन्तः चेतना
कितना झेला तनावभटकते तुम्हारे भाव
मलिन होता स्वभाव
प्रिये
मैं जानना चाहता हूँ
तुम्हारी दृष्टि का वेग
तुम्हारा उद्वेग
डूबता तेज़
भावनाओं से परहेज
हाँ प्रिये
मैं चाहता हूँ
तुम रखों खुद पर संयम
ना हो प्रेम का दंभ
ना ही हो फर्ज कम
यही होगा तुम्हारे मेरे बीच
पनपे हर रिश्ते का संबल
रखना सिद्धांतों का ध्यानपल-प्रतिपल
ना होने देना मन में हलचल
प्रिये
मैं देखना चाहता हूँ
तुम्हारे जीवन का उत्कर्ष
चेहरे पर हर्ष
पर नहीं चाहता
तुम्हारे जीवन में
स्व भावना को कोई स्पर्श
इसीलिए
प्रिये
मैं जानना चाहता हूँ
तुम्हारे हृदय उदगार
और देहना चाहता हूँ
शांत होते हुए
प्रेम का हर ज्वार
नहीं बनूँगा बाधक
तुम्हारे जीवन में
और तुम भी
न होने देना
मेरी भावनाओं को बदनाम
क्या कर सकोगी तुम
मुझ गरीब पर
सिर्फ ये अहसान
बताओ क्या तुम
पूरा कर पाओगी
मेरा ये अरमान !!!!
"उमंग"संदीप
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