Wednesday, 13 May 2015

कंगले की माँ - लघुकथा

कंगले की माँ 

रमेशर की माँ की अर्थी शमसान में उतारकर चिता पर लिटाने की तैयारी हो रही थी.. लोगो ने अर्थी पर से ऊपर डाले गए कपडे उतारकर अलग रख दिए ..अब पार्थिव शरीर को चिता पर चिता पर लिटा दिया गया था...
रमेशर ने अपनी माँ की चिता को दाग दिया..पूरा क्रियाक्रम विधिपूर्वक पूरा किया गया था..जग्गू डॉम ने पूरी क्रिया में भरपूर साथ दिया...
आग की लपटें ऊपर उठ चुकी थी..जग्गू की पत्नी और जग्गू अर्थी पर से उतारे गए कपडे इत्यादि इकट्ठे करने लगे ...
"क्यों जी , किसका अंतिम संस्कार हो रहा है "-जग्गू की पत्नी ने पूछा...
"रमेशर की माँ का "-जग्गू ने जबाब दिया ...
"कौन रमेशर? कहीं ये तुलवा चमार का बेटा तो नहीं.?"- उसकी बीवी ने पूछा...
"हाँ वही है "-जग्गू ने अनमने मन से कहा ...
"हे ईश्वर, तुझे भी इस कंगले की माँ ही मिली थी मारने के लिए ,,उसके तो रिश्ते-नाते वाले भी लगता है उसके जैसे ही कंगाल हैं."-जग्गू की बीवी गुस्से में बोल रही थी...
हाँ भागवान्, साले रमेशर की माँ मर गयी ...हमें क्या फायदा हुआ ?अर्थी से गिनी हुई चार भी नहीं मिली ..."-जग्गू कह रहा था...
जग्गू ने कपड़ो की पोटली बाँध कर लाद ली...और घर की ओर चल दिया...
आग की लपटें अब भी उठ रही थी..
लघुकथा संग्रह "कामरेड संजय
रचनाकार :संदीप तोमर
प्रकाशक :निहाल पब्लिकेशन एन्ड बुक डिस्ट्रीब्यूटर्स
दिल्ली

No comments:

Post a Comment

बलम संग कलकत्ता न जाइयों, चाहे जान चली जाये

  पुस्तक समीक्षा  “बलम संग कलकत्ता न जाइयों , चाहे जान चली जाये”- संदीप तोमर पुस्तक का नाम: बलम कलकत्ता लेखक: गीताश्री प्रकाशन वर्ष: ...