Wednesday, 13 May 2015

(चलते - चलते ))
रेप की जो लगी तोहमत 
हम बल्लियों कूद पड़े...
किसी ने पूछा -जनाब सच में (?)
हम हौले से मुस्काए 
और हामी में होठ फरकाए ..
इनकार भी कैसे करते...
इल्जाम था मरदाना
याद आया पत्नी का
नामर्दगी का ताना
जोश से भरपूर
वो वैद का पुर्जा
जैसे असंतुष्ट प्रेमिका का
लिखा हुआ परवाना
और बराबर में...
कविवर अविश्वास
जाना-पहचाना..
अगला कदम
देशी हकीम की दूकान
ताकत-मरदाना
मशहूर दवाखाना ....

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