२००७ में लिखी एक रचना......
जिनके दर पे मेरे लव्जों ने आगाज किया हैलव्जों से मेरे उसने हर पल एतराज़ किया है
बिन छुए जाम छाया है नशा मुहब्बत का
पर कब मुझ पर किसने ऐतबार किया है
सपने में हमने कह दिया उसे खुदा एक रोज़
उसने हर फ़साना हमारा दरकिनार किया है
नवाजा उसे हर गीत-गज़ल और रुबाई में
हर बात को फिर क्यूँ यूँ बदनाम किया है
वो बार बार आजमाइश का सामान खोजते है
जज्बातों का जख्मों से क्या इनाम दिया है
उनकी होशियारी का हुनर तो देखो यारों
जज्ब कर रिश्तों को क्या अंजाम दिया है
खबर है कि अब बिकने लगे हैं अल्फाज भी
देखते है कि मेरी नज्मों का क्या दाम दिया है
"उमंग" संदीप
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