"सिस्टम "
लघुकथा
( यह लघुकथा खूब चर्चित और प्रसारित हुई )
महानगर का प्रत्येक चौराहा व्यस्त, लाईटों से नियंत्रित ट्रेफिक ... जैसे ही रेड लाईट होती एक साइड की गाड़ियों में ब्रेक लग जाते.. तकनीकी ने मनुष्य को यांत्रिक बना दिया जिसे लोग सिस्टम कहते हैं.महानगर तो जैसे चलते ही सिस्टम से हैं...एक सिस्टम ये भी है कि चौराहे पर गाड़ियाँ रुकते ही अख़बार,खिलोने,इत्यादि बेचने वाले गाड़ियों की ओर दौड़ पड़ते हैं ...कभी छोटे बच्चे अपनी कमीज निकाल कर हाथ में ले शीशे साफ़ करने लगते हैं और एक रूपये के सिक्के के लिए हाथ फैलाने लगते हैं...किसी को दया आ जाये तो शीशा उतार कर उन्हें सिक्का पकड़ा दे वर्ना गाड़ी तो साफ़ हो ही गयी...
अभी रेड लाईट हुई तो १४-१५ साल की साधारण नैन-नक्श की एक छरहरी लड़की एक कार की तरफ दौड़ी...वह इस कदर गरीब थी कि शरीर को ढकने के लिए पूर्ण कपडे भी नहीं थे. बदन अधिकांश उघडा हुआ था.., दुपट्टे की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी...उसकी स्थिति उसकी गरीबी को बयाँ करने के लिए काफी थी...
सलेटी रंग की हौंडा सिटी के शीशे पर उसने दस्तक दी..कला शीशा नीचे सरका...लड़की ने कार में बैठे युवास से याचना भरी दृष्टि से कहा--"साहब एक गुलाब कह्रीद लीजिये ना ,आज तो एक भी नहीं बिका.."
युवक ने कला चश्मा नीचे सरका कर उसके बदन को ऊपर से नीचे तक भरपूर निहारा...थोड़ी गर्दन शीशे से बाहर निकाली ,बोला-" ऐसी बात है , चलो हम सारे फूल खरीद लेते हैं ...एक काम करो... फूल गाड़ी में पीछे रख दो..."
"जी बाबु जी "
"कितने पैसे हुए?"
बाबूजी ३०० सौ रूपये..."
"अरे मेरा पर्स पास ही मेरे शो -रूम पर है..तुम गाड़ी में बैठो...मैं तुम्हे वहां से पैसे दे देता हूँ"
लड़की खुश थी कि उसके सरे फूल बिक गए उसने खिड़की खोली और गाड़ी में बैठ गयी.... उसे लगा आज सारे दिन धुप में नहीं भटकना पड़ेगा ...वह सोचने लगी -"बाबूजी कितने अच्छे हैं ..उन्होंने उसे गाड़ी में भी बैठाया है.. आज तक तो लोग उसे गाड़ी छूने भी नहीं देते थे..."-लाईट के ग्रीन होते ही हौंडा -सिटी ने रफ़्तार पकड़ ली थी...
वह बेचारी बेबस लड़की फिर कभी उस चौराहे पर दिखाई नहीं दी...रेड लाइट पर गाड़ियों के रुकने और ग्रीन होने पर स्पीड पकड़ने का सिस्टम जारी है..
लघुकथा संग्रह "कामरेड संजय
रचनाकार :संदीप तोमर
प्रकाशक :निहाल पब्लिकेशन एन्ड बुक डिस्ट्रीब्यूटर्स
दिल्ली.
अभी रेड लाईट हुई तो १४-१५ साल की साधारण नैन-नक्श की एक छरहरी लड़की एक कार की तरफ दौड़ी...वह इस कदर गरीब थी कि शरीर को ढकने के लिए पूर्ण कपडे भी नहीं थे. बदन अधिकांश उघडा हुआ था.., दुपट्टे की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी...उसकी स्थिति उसकी गरीबी को बयाँ करने के लिए काफी थी...
सलेटी रंग की हौंडा सिटी के शीशे पर उसने दस्तक दी..कला शीशा नीचे सरका...लड़की ने कार में बैठे युवास से याचना भरी दृष्टि से कहा--"साहब एक गुलाब कह्रीद लीजिये ना ,आज तो एक भी नहीं बिका.."
युवक ने कला चश्मा नीचे सरका कर उसके बदन को ऊपर से नीचे तक भरपूर निहारा...थोड़ी गर्दन शीशे से बाहर निकाली ,बोला-" ऐसी बात है , चलो हम सारे फूल खरीद लेते हैं ...एक काम करो... फूल गाड़ी में पीछे रख दो..."
"जी बाबु जी "
"कितने पैसे हुए?"
बाबूजी ३०० सौ रूपये..."
"अरे मेरा पर्स पास ही मेरे शो -रूम पर है..तुम गाड़ी में बैठो...मैं तुम्हे वहां से पैसे दे देता हूँ"
लड़की खुश थी कि उसके सरे फूल बिक गए उसने खिड़की खोली और गाड़ी में बैठ गयी.... उसे लगा आज सारे दिन धुप में नहीं भटकना पड़ेगा ...वह सोचने लगी -"बाबूजी कितने अच्छे हैं ..उन्होंने उसे गाड़ी में भी बैठाया है.. आज तक तो लोग उसे गाड़ी छूने भी नहीं देते थे..."-लाईट के ग्रीन होते ही हौंडा -सिटी ने रफ़्तार पकड़ ली थी...
वह बेचारी बेबस लड़की फिर कभी उस चौराहे पर दिखाई नहीं दी...रेड लाइट पर गाड़ियों के रुकने और ग्रीन होने पर स्पीड पकड़ने का सिस्टम जारी है..
लघुकथा संग्रह "कामरेड संजय
रचनाकार :संदीप तोमर
प्रकाशक :निहाल पब्लिकेशन एन्ड बुक डिस्ट्रीब्यूटर्स
दिल्ली.
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