Tuesday, 13 April 2021

कलम की गाथा

मुझे लोग कलम कहते हैं.

जाने कैसे मुझे ये नाम मिला

नाम क्या बस इनाम मिला

इतिहास, वर्तमान और भविष्य लिखने का काम मिला

लेखकों से मेरा पुराना नाता है, जब बाल्मीकि ने देखा क्रोंच पक्षी को घायल और सुना उसका क्रंदन, तब ही फूटे थे पहली कविता के अंकुर और मुझे पकड़ अपनी अँगुलियों में लिख डाला था तमाम दर्द. ग़ालिब से लेकर प्लेटो, शेक्सपियर से लेकर लेनिन  सबने मुझे थामा अपने हाथों में ..तमाम राजनीतिविद, शिक्षाविद, कविगण, बालकवि मेरी खूबसूरती के कायल रह चुके हैं. सदियों से वीरो की गाथाओ की गवाह रही हूँ मैं...तो क्रूरता का इतिहास भी मेरे बदन की रोशनाई से लिखा गया है ....वीरो के सिरों को ऊपर उठाने और उनकी गर्दनों को मज़बूत बनाने का काम अगर मैंने किया है तो लज्जा की दास्तान की गवाह भी मैं ही हूँ... लोगों की आवाज़ को ताकत भी मैंने ही दि है, राजन का शौर्य इतिहास भी मुझसे ही गढ़ा गया है..लोकतंत्र की आवाज को सारे विश्व तक पहुंचाया है मैनें. मेरे रूप अनेक हैं. कभी गांधी की सहचरी रही हूँ तो कभी हिटलर की नफरत के शोले भी मैंने सहे हैं ... कभी टैगोर की कविता का शांति संदेह भी मैं ही हूँ तो कभी मंटो की कहानियों की तड़प भी मेरे से होकर गुजरती है... पाश का समाजवाद भी मुझमें बसता है..मैं शमशेर की कविता हूँ, नीरज के गीत मुझसे ही खुशबु पाते हैं..

अध्यापक की जेब की शान भी मैं ही हूँ तो बस कंडक्टर के कान की शोभा भी मैंने बढाई है...कलाकार की कला मुझसे ही निखार पाती है..

मासूम बच्चे ही हट मैं ही हूँ..प्रेमी के उदगार मुझसे ही प्राण पाते हैं...

भगवान बनकर धर्म लिखे हैं मैंने

प्रेमी जन के मर्म लिखे हैं मैंने

सियासतें उठाई और गिराई हैं.

शब्दों की गर्माहट से पिघला है पर्वत

मानो मुझमें सर्द रातों की रजाई है

कभी ख़त लिखे तो कभी कसीदे.

लेकिन थकी नहीं. बस चलती गई!

कभी फेंक दी गई हूँ, गली-कूचों में  

कभी कतरा कतरा लिखने को उठाई गयी हूँ!

इस दुनिया में पहचान तो खूब बना ली है मैंने. बस मेरे दिल की आवाज सुनने वाला नहीं कोई...

आज की आधुनिक दुनिया में डिजिटल होने से मेरी एहमियत काफी कम करने के दुष्प्रचार बहुत हुए हैं..लोगों ने मुझे दरकिनार करना भी शुरू किया लेकिन लोग मुझे भूले नहीं हैं... आज भी मैं प्रेमी के हृदय में बसती हूँ.. मैं गीत में हूँ. कविता में हूँ.. किस्से कहानी में हूँ मेरी आज भी इज्ज़त की जाती है और मैं जानती हूँ कि कल भी लोग मेरे योग्याद को सराहेंगे,कल भी मेरी इज्ज़त की जायेगी.

मुझे नहीं चाहिए तुमसे दुनिया जहान ,

बस दे दो अपनी मेज़ का एक कोना

मैं उसी में समझ लुंगी अपनी शान

नहीं भूलूंगी आपका अहसान

बस यूँ दि गयी थोड़ी सी इज्ज़त

बन जाएगी मेरे लिए संबल

बस  ख्यालों को मत मरने देना

मेरे अस्तित्व को बनाये रखना

कल जब मैं फिर से उठाई जाऊँगी

फिर कुछ पन्नों को सजाऊँगी.

नए किस्से नयी गाथा कह जाउंगी



कल फिर मैं कलम कहलाऊँगी.

 

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