जिज्ञासा हुई कि लोगो का संदीप तोमर के बारे में क्या नजरिया है तो कुछ लेख, सोशल मीडिया पर
टिप्पणी और मेल इत्यादि को कंघालना शुरू किया, जो कुछ भी सामग्री मिली उसे बिना संशोधित किए आप पाठको के सुपुर्द कर रहा हूँ। अन्य कोई मित्र अपने विचार भेजना चाहे तो उसे एडिट करके शामिल कर लिया जाएगा।आपका मित्र
संदीप तोमर
बिना
मिले भी परिचित
संदीप तोमर से मैं कभी मिला नहीं यह कहना सही नहीं होगा, क्योंकि एक साहित्य का दूसरे साहित्यकार से मिलन और परिचय रचना
/कृत्यों से होता है।और यही होना भी चाहिए ऐसा मेरा मानना है।
फेसबुक हम फ्रेंड बने।इनकी लघुकथाएं और कविताओं को मैं खोज खोज कर
ख पढ़ने लगा।इंक्की रचनाओं से गुजरते हुए एक कान मैंने महसूस किया कि संदीप तोमर
के अंदर एक सच्च और सजग साहित्यकार योग मुद्रा में बैठा हुआ है।
साहित्य सृजन के अतिरिक्त इनके अंदर अगर कुछ और है, तो वह है निर्माणता।
नए रचनाकार को प्रकाशन का पथ भी देते हैं और निर्मल में और वचन से
उनके साथ खड़े भी होते हैं।
मुझे याद है, पलाश पत्रिका में मेरे अनुरोध पर
संदीप तोमर जी ने अपनी आठ दस मौलिक रचना भेजी थी। साथ ही पटना की एक नवोदित कथा लेखिका की लघुकथा भी। पत्र में लिखा
था कि मेरी रचनाओं को जगह नहीं मिले, लेकिन नए लेखक को जरूर छापें, क्योंकि नवोदित रचनाकार साहित्य के भविष्य होते हैं।
शब्द सीमा का बन्धन है।इसलिए बस।
मुझे विश्वास है कि हिंदी साहित्य की दुनिया में संदीप तोमर अपनी रचनाओं के बल पर नाम और शौहरत अर्जित करेंगे।
---उमाकांत भारती
(संपादक) पलाश पत्रिका,
भागलपुर, बिहार।,9608228922
संदीप तोमर एक जुझारू लेखक
संदीप तोमर लघुकथा लेखन में एक बहुत ही जाना पहचाना और स्थापित नाम है । लघुकथा इनके लिए
एक जीवन की संज्ञात्मक विधा है । मैंने व्हाट्सएप पर या फेसबुक के किसी ग्रुप में
इन्हें चर्चा करते हुए अनेक बार पढ़ा है । दिल्ली में अपने साहित्यिक मित्रों के
साथ जब गोष्ठी होती है तो इनका लघुकथा चिंतन प्रखर हो उठता है । जिस प्रकार लघुकथा
को यह परिभाषित करते हैं यह स्वयं में एक परिपूर्ण रचना बन जाती है । मैं समझता
हूं इन्होंने लघुकथा को अब अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है । वास्तव में लघु
कथा लेखन एक गंभीर चिंतन है और संदीप तोमर इस चिंता को पूरी तरह समझते भी हैं और
इसका अनुसरण भी करते हैं लघुकथा जिन बिंदुओं के आधार पर की जाती है संदीप तोमर के
लिए वे बिंदु पूरी तरह से ज्ञात हैं और उनके हाथ से उनकी कलम से लिखी हुई अधिकांश
रचनाएं समाज के जिस वर्ग से संबंधित होकर रचना बनती है वह लघुकथा के तत्वों के
आधार पर एक संपूर्ण रचना होती है ।
ग़ज़लकार दुष्यंत ने अपनी ग़ज़ल में कहा भी है
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
और मैं कह सकता हूं कि संदीप तोमर लघुकथा को इसी दृष्टि से देखते
भी हैं और वे इसी दृष्टि से लघुकथा को जीते भी हैं ।
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ ।
वो लघुकथा आपको सुनाता हूँ ।।
कभी-कभी लघुकथा के प्रति अपने स्नेह के वशीभूत होकर यह बहस करते -
करते इतना आगे निकल जाते हैं कि वह बहस एक विवाद में बदल जाती है । यह लघुकथा के
प्रति इनका स्नेह ही कहा जा सकता है कि यह लघुकथा पर एक
खरोंच भी आते हुए देखना गवारा नहीं करते ?
वास्तव में आज ऐसे ही लघुकथा मनीषियों की आवश्यकता है जो लघुकथा को
अपने जीवन से सार्थक कर सकते हैं । मैं इनके अनुकरणीय साहित्यिक जीवन को प्रणाम
करता हूँ व इनके लेखन के प्रति अपने अनुकरणीय विचारों को भी सांझा करता हूँ ।
मैं संदीप तोमर के सुखद भविष्य की कामना करता हूँ व उम्मीद करता हूँ कि एक लंबे समय तक निरंतर यह साहित्य जगत को और विशेषकर लघुकथा जगत को प्रकाशवान करते रहेंगे ।
राजकुमार निजात (व्हाट्सएप नंबर 90175 29760, 94167 29760)
वरिष्ठ साहित्यकार व लघुकथाकार
मकान नंबर 57 , गली नंबर 1,
हरि विष्णु कॉलोनी , कंगनपुर रोड़ , सिरसा -- 1250 55 ( हरियाणा )
उजालों की ओर
यू़ं तो मशहूर साहित्यकार जनाब संदीप तोमर साहिब से बतौर लेखक, समीक्षक/समालोचक तथा विचारक के रूप में मेरा आभासी परिचय सोशल मीडिया के फेसबुक नामक प्लेटफॉर्म पर लघुकथा समूहों और ओपनबुक्सऑनलाइनडॉटकॉम साहित्यिक पत्रिका वेबसाईट के माध्यम से हुआ; लेकिन नाम 'संदीप' मेरे विद्यालयीन और महाविद्यालयीन छात्र जीवन के इसी नाम के प्रिय सहपाठियों के रूप में मेरे दिमाग़ में स्थायी रूप से अंकित रहा है। मेरे छात्र रूपी और शिक्षक रूपी अनुभव में 'संदीप' नाम के व्यक्ति हमेशा सहृदयी, होनहार, प्रतिभाशाली, चंचल और वाकपटु रहे हैं। कभी-कभी तनिक शरारती भी।
जनाब संदीप तोमर साहिब भी मेरी नज़र और तज़र्बे में एक नेक और बहुमुखी यानी दो से अधिक प्रतिभाओं के धनी इंसान हैं। स्पष्टवादी हैं। काम की सटीक बात, दो टूक बात कह जाते हैं। एक बहुत अच्छे लेखक व लघुकथाकार हैं। एक फेसबुक समूह की लघुकथा प्रतियोगिता में उनकी एडमिनशिप में मुझे यानि मेरी लघुकथा को पुरस्कृत भी किया गया है। संयोग से उसी लघुकथा का मंचीय पाठ करने का अवसर मुझे भाषा सहोदरी साहित्यिक संस्था की सहोदरी के एक सम्मेलन में नई दिल्ली में मिला था। दरअसल उस संस्था के 'सहोदरी लघुकथा संकलन' में मेरी लघुकथायें भी प्रकाशित हुईं थीं। वह सम्मेलन मेरे लिए कई मामलों में बहुत महत्वपूर्ण तो था ही; वहां संदीप साहिब की उपस्थिति और रूबरू मुलाक़ात ने वह सम्मेलन मेरे लिए इसलिए अधिक महत्वपूर्ण बना दिया था कि उन्होंने ही न सिर्फ़ मेरे लघुकथा-पाठ की दिल खोलकर प्रशंसा और मेरी हौसला अफ़ज़ाई की थी, बल्कि मेरे दिल्ली में ठहरने संबंधित जानकारी लेकर मुझसे ख़ुद अपने घर चलने व वहीं ठहरने को बड़ी ही विनम्रता से कहा था। लेकिन चूंकि वह मेरी पहली दिल्ली सम्मेलन सहभागिता थी, मैं वहां सम्मिलित हुए सभी रचनाकारों/साहित्यकारों से मिलने का अवसर चूकना नहीं चाहता था; रात्रि में व्यवस्था के अनुसार उन सभी के साथ रुक कर उनके सान्निध्य का लाभ लेना चाहता था; सो मैंने उनका आमंत्रण विनम्रतापूर्वक कारण बताते हुए अस्वीकार कर दिया। बाद में मुझे उस समयअहसास हुआ, जब मुझे उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में विस्तार से जानकारी मिली फेसबुक पर। फेसबुक पर उन्होंने मेरी रचनाओं पर भी समय देकर मुझे प्रोत्साहित और मार्गदर्शित किया है।
बतौर शिक्षक मैंने हेलन केलर, एवलिन ग्लेनी जैसे विदेशी और देशी कुछ अद्वितीय महान व्यक्तित्वों
के बारे में विद्यार्थियों को पढ़ाया है। उनके दृढ़-संकल्प, संघर्ष और जद्दोजहद के साथ अपने अभीष्ट लक्ष्यों को साधने में
अभूतपूर्व सफलताओं के बारे में पढ़ा और पढ़ाया; सीखा और सिखाया है। परिचितों में सामान्य आंशिक या गंभीर दिव्यांगजन में भी मैंने ऐसे
गुण पाये हैं। हिंदुस्तान में ऐसे वर्ग को कई गुना अधिक संघर्ष करते हुए समाज में
अपना स्थान क़ायम करना होता है। जनाब संदीप तोमर साहिब की रचनाओं, टिप्पणियों, समीक्षात्मक/समालोचनात्मक टिप्पणियों, आलेखों, विचार-विमर्शो आदि से उनके व्यक्तित्व
के आयाम और गहराई से हम ख़ुद-ब-ख़ुद परिचित होते जाते हैं। हालांकि यह भी देखा गया
है कि कुछ लोग उनके विचारों से सहमत नहीं होते या उनकी टिप्पणियों पर तीखी
प्रतिक्रिया दें जाते हैं, लेकिन उनकी स्पष्टवादिता, दृढ़ता, न्यायप्रियता, दूरदर्शिता की व उनकी समाजसेवी गतिविधियों की भरपूर प्रशंसा भी
अवश्य करते हैं। मैं जनाब संदीप तोमर साहिब की इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्हें
अपने प्रिय परिचितों और प्रेरणा देने वाले शख़्सियतों में शामिल करते हुए उनसे
लाभान्वित होते रहने की कोशिश करता हूं। उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं।
शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
[23 अक्टूबर, 2019]
(शिक्षक, रेडियो अनाउंसर, लेखक)
पुत्र श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
473551
(भारत)
[ लैंडमार्क्स: 1- हैपिडेज़ स्कूल, 2- गणेशा ब्लेश्ड पब्लिक स्कूल]
[वाट्सएप नंबर - 9406589589 Bsnl]
07987465975 jio
ई-मेल पता : shahzad.usmani.writes@gmail.com
कम समय में जितना भी आपको समझ पाई हेँ, वह ये कि आप एक बहुत सवेदनशील, कर्मठ और जुझारू इंसान हैं । आप की तमाम पोस्ट पढ़कर मैंने पाया कि आप मानवीय, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक सभी मुद्दों पर सम्वेदनशीलता से मंथन और चिन्तन करते हैं और समस्याओ के निदान भी देने की अनूठी सामर्थ्य रखते हैं । मैंने ऐसे व्यक्ति सहज ही साहित्य की ओर मुड़ते देखें हैं और जिस दिन में जाना कि आप साहित्य जगत का सक्रिय हिस्सा है, तो यह देख कर, मुझे अपने अनुमान पर फ़क्र हुआ था ।
आप जैसे सच्चे - अच्छे लोगो की साहित्य को
बहुत ज़रूरत है । आप साहित्य से कभी भी उदासीन मत होइएगा । आप में वे अपेक्षित चिंगारियाँ हैं जो साहित्यकार की क़लम को जीवित रखने के लिए जरूरी होती हैं । कहने की ज़रूरत नहीं सुबोध, प्राञ्जल भाषा तो आपके पास है ही।
सम्वेदनाओं के धनी सन्दीप जी की ताई कहानी पढ़ी थी, यह कहानी प्रारम्भ से अन्त तक मेरे मन को अपनी भाषा, शैली और कथाशिल्प के जादू से बाँधे रही । ऐसे ही एक कहानी “परछाई पीछा नहीं छोडती” पढ़ी, नायक की क़तरा-क़तरा पीड़ा, उसका टूट कर अपनी प्रेयसी को, उसकी हर बात को याद करना मन को तर करता गया । नायिका भी शिद्दत और संजीदगी से नायक के प्रेम में सरापा डूबी हुई है । तसव्वुर में दोनों एक दूसरे से कितना प्यार, कितना दुलार, कितने आँसूँ, कितनी मुस्कान बाँटते हैं , पर फिर भी उनका अन्तस आधा भरा और आधा खाली रहता है क्योंकि गहरे प्रेम का तल. कभी पूरा नही भरता ।उसमें प्यार के न जाने कितने दरिया समा जाने की अपरिमित सशक्त ज़मीन होती है जो प्यार को परत दर परत समोए जाती है । पाठक मन को अपने साथ बहा ले जाने वाली, पाक़ मुहब्बत के निर्झर सी बहती इस कहानी की जितनी भी सराहना की जाए कम है । कहना न होगा, आप संवेदनाओ के धनी हैं ।
आपके लिए दिल से शुभकामनाएँ और दुआएँ है कि आप अपनी खरी शख़्सियत और खरी क़लम के बल पर, समाज की एक सक्रिय इकाई बने और भरपूर प्रतिष्ठा प्राप्त करते हुए, अभीष्ट सपनों को साकार करें ।
दीप्ति गुप्ता
(पूर्व प्रोफ़ेसर)
पुणे , महाराष्ट्र
संदीप तोमर : एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व
ज्योतिष शास्त्र की कई शाखाएं हैं। इनमें एक है फिज़ियोगनामी। इसके अंतर्गत मस्तक की रेखाओं को पढ़कर विद्वान लोग आकलन करते है। यह दक्षिण भारत मे विकसित है। ठीक उसी प्रकार हमारी वाणी भी हमारे बारे में बहुत कुछ प्रकट कर देती है। संदीप तोमर से जब भी बात हुई ऐसा लगा जैसे किसी आत्मीय स्नेहिल स्वजन से बात कर रहा हूँ। इनकी वाणी से आत्मीयता का बोध होना स्वाभाविक है। अपनों से बड़ों के प्रति जो सम्मान है वह इनके निश्छल चरित्र का द्योतक तो है ही वरन इस बात को भी दर्शाता है कि इन्होंने अपने माता-पिता से सुसंस्कार ही अर्जित किये हैं। ऐसा लगता ही नही कि मैँ किसी महान साहित्यकार से बात कर रहा हूँ। बातों के माध्यम से यह भी स्पष्ट हुआ कि वे एक कुशल एवं व्यवहारिक पथ-प्रदर्शक भी हैं। दानवीर वो नहीं जो धन से सहायता करता हो बल्कि वो है जो निःस्वार्थ भाव से किसी जरूरतमंद की सहायता के आगे बढ़ता हो, साथ देता हो। ऐसे हैं प्रिय संदीप तोमर।
साहित्यिक कृतियों की बात करे तो एक लाख शब्द भी कम हैं, क्योंकि उनकी पुस्तकों की संख्या बहुत है। उनकी सम्पूर्ण व्याख्या बहुत विस्तृत हो जाएगी। गद्य और पद्य दोनों अवयवों पर उनका समान अधिकार लगता है। साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएं लिखी हैं। उपन्यास, कहानियां, संस्मरण, रेखाचित्र, लघु कथाएं, निबंध, व्यंग्य आदि। उनके उपन्यासों और कहानियों के चरित्र काल्पनिक होते भी हकीकी लगते हैं। उनके कथानक हमारे सामाजिक और राजनैतिक परिवेशों से जुड़े हुए हैं जिनमे हो रही क्रियाएं हमारे वास्तविक जीवन से जुड़ी लगती हैं। कुछ कथानकों को संदीप तोमर ने इतिहास में स्थापित कर जो रचनाएं लिखी हैं वे सार्वकालिक लगती हैं। महानगरी की चकाचौंध के बीच रहते हुए भी वे झोपड़ी झुग्गी में रहने वाले गरीबी और भूंख की त्रासदी झेलने वाले, अवसादों और अभावों से ग्रस्त लोगों के प्रति अत्यन्त संवेदनशील हैं। यह मानवीय संवेदना उनकी कहानियों में स्पष्ट है। राजनैतिक परिवेश में होने वाले भ्रष्टाचारों और व्यभिचारों और राष्ट्र के प्रति अनीतियों के धुर विरोधी हैं तोमर जी। अपनी निर्भीक और बेबाक टिप्पणी के लिए मशहूर हैं। तोमर जी एक उद्भट विद्वान समीक्षक हैं। वे नीर क्षीर विवेकी हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य में शायद ही इन जैसा समीक्षक हो। आज भी 4 ,5 पुस्तकें समीक्षा की प्रतीक्षा में रहती हैं। आपकी काव्यगत रचनाओं में मुझे एक क्रांतिकारी कवि के दर्शन होते है और याद आते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला। उनकी कतिपय रचनाओं में श्री अज्ञेय जी जैसी सारगर्भिता और संत कबीर जैसी अनबूझ पहेली। समाज और सामान्य जन की पीड़ा पर उनकी कलम चलती है तो ऐसा प्रतीत होता है कि कवि पाश सामने खड़े हैं, ऐसे बहुआयामी साहित्यकार को नमन।
आधुनिक हिंदी साहित्य में सुदर व्यंग्य लिखने वालों की श्रेणी में संदीप तोमर जी का सर्वोच्च स्थान है। सामाजिक और राजनैतिक घटने वाली दिन प्रति दिन की घटनाओं पर तोमर जी की पैनी दृष्टि रहती है। इसके भीतर छुपा है वह व्यक्ति जो सुधार की ओर संकेत करता ही जिसके हृदय में छूपी है जन कल्याण की भावना।एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व आधुनिक भारतीय समाज को मिला है, हिंदी साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा।
सूरज मल रस्तोगी
(वरिष्ठ साहित्यकार)
बरेली
एक सुंदर फ्रेम में सन्दीप तोमर
आपका संदेश मिला, बस आपकी दीवार पर प्रदर्शित पोस्ट्स को पढ़ रही हूँ। और आज एक नये संदीप का पता चला ...। एक आभा मंडल जिसके चेहरे पर मैं अक्सर देखती हूँ, हँसता-मुस्कुराता, चुलबुला सा साहित्य की गहरी समझ रखने वाला लड़का है संदीप तोमर।
मैं आपके सभी लेखों और कहानियों को पढ़ूंगी .. और एक निष्कर्ष पर
पहुंचूंगी ... जल्दी में नहीं रहूंगी. कृपया मुझे जानकारी प्राप्त करने के लिए कुछ
समय दें ....। मुझे समय लगेगा भाई।
आपके बारे में लिखने का मतलब है कि शब्दों की उथली शांति नहीं होनी
चाहिए .. एक सुंदर फ्रेम में हो सब कुछ। संदीप मैं पूरी तरह से हिल गई हूं ...।
वाह!क्या खूब लिखते हो तुम।
सोचती हूँ कि तुम दूर क्यों रह गए हो..शायद इसमें मेरे पितामह की
कोई मंशा नहीं होगी।
सफलता सफलता से नहीं बनती। यह विफलता पर बनाई जाती है। यह हताशा पर बनाई जाती है। कभी-कभी यह तबाही पर बनाई जाती है .... गुड नाइट, मीठे स्वप्न। शांतिपूर्ण तरीके से नींद लें। फिर कहती हूँ आपके बारे में लिखने का मतलब है कि शब्दों का उथला टुकड़ा नहीं होना चाहिए ... एक सुंदर फ्रेम में डालना है।
लता यादव
(वरिष्ठ लेखिका)
गुरुग्राम
दोस्ती का पर्याय सन्दीप तोमर
आपने मेरी साधारण सी राइटिंग को भी बहुत अच्छा कहा था, साथ ही बोला था-" बस थोडा सा गोलाई में घुमा दिया करो, जब भी सुंदर लिखना होता है तो आपकीं बात याद कर मुस्कुरा देती हूं।
*"पढ़ाई रटना नहीं, डिग्री हासिल करना मात्र नहीं समझकर
डेली लाइफ से रिलेट करो।"- बस आपकीं बात पल्ले बांध ली।
*इंसान में कोई भेद-भाव नहीं, कोई छोटा-बड़ा नहीं, सब कर्मो से जाना जाता है।
सन्दीप जी , कॉलेज टाइम में कही आपकीं बातें आज भी
इंसानियत सिखाती हैं, आप कितने लोगों के लिए आज भी प्रेरणा
स्रोत हो।
आपको दिल से सलूट।
(अध्यापिका)
करावल नगर
बेबाक लहजे में छिपा भावुक मन
सन्दीप तोमर, साहित्य के क्षेत्र का जाना - पहचाना
चेहरा हैं। उपन्यास, लघुकथा, संस्मरण, समीक्षाएं आदि कई विधाओं में इनकी कलम
सिद्धहस्त है। इनके लिखे कुछ उपन्यास न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर
भी धूम मचा रहे हैं।
सन्दीप जी जितना अपने लेखन के कारण चर्चित रहते हैं उतना ही अपने
बेबाक बयानों के लिए भी। खरा- खरा बोलने वाले संदीप से कुछ लोग नाराज भी हो जाते
हैं तो कुछ उनकी इसी साफ़गोई के कायल हैं। विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय स्वयं की
विचारधारा की उपज है।
लेकिन इस बेबाक चेहरे के पीछे एक कोमल चेहरा भी छिपा है जिसे जानने
वाले बहुत कम लोग हैं। उनके नज़दीकी लोग भी शर्तिया नहीं कह सकते कि वह संदीप तोमर
को अच्छी तरह जानते हैं। इसका कारण वह स्वयं हैं क्योकि वह सबके लिए खुद को
स्प्ष्ट करना पसंद भी नहीं करते।
बेशक यह बेपरवाही भरा अंदाज उनको अलमस्त दर्शाता है मगर हक़ीक़त कुछ
अलग है। शायद अतीत के कटु अनुभवों ने उन्हें यह लबादा ओढ़ने पर मजबूर किया हो।
सन्दीप तोमर जी के व्यक्तिव पर कुछ कहना शीशे पर नक्काशी करने के
समान नाजुक काम है।
मैं सन्दीप तोमर जी को विगत दो वर्ष से जानती हूं मगर उनसे
वार्तालाप एक वर्ष से आरम्भ हुआ।
इस अंतराल में मैंने पाया कि सन्दीप तोमर बाहर से जो दुनिया को
दिखते हैं ,अंदर से वैसे नहीं हैं। दुनिया सिर्फ
वही जान सकी जितना उन्होंने दिखाया।
सन्दीप तोमर में एक छटपटाहट है । बचपन में उनकी शारीरिक अक्षमता पर
लोगों का उपहास, सहानुभूतिपूर्ण निगाह का असर कहीं
अवचेतन में गहराई तक बैठा है।
" यह बड़ा होकर क्या कर सकेगा!" परिजनों की इस चिंता को अपने
जीवन का ध्येय बनाकर जीवन समर में उतरे संदीप तोमर ने स्वयं को न केवल सक्षम सिद्ध
किया अपितु अपनी लेखनी से अपने परिजनों को गर्व करने का अवसर भी प्रदान किया।
मगर इस सब जद्दोजहद में भी हृदय के कोमल तंतु मुरझाए नहीं। प्रेम
की सम्पूर्णता की चाहत में मन बंजारे सा भटकता रहा। वैसे भी लेखक भावुक प्रवत्ति
के होते हैं।
उन्हें जीवन के अलग- अलग पड़ावों मे प्रेम मिला भी मगर किसी न किसी
वजह से उनसे दूर भी चला गया। प्रेम की इन
असफलताओं ने सन्दीप को तोड़ा नहीं बल्कि उन्हें उनके लक्ष्य के प्रति और मजबूत कर
दिया।
वैसे भी सच्चा प्रेम ताकत बनता है, कमजोरी नहीं। प्रेम सन्दीप की कमजोरी कभी नहीं बन सका लेकिन उसे
पाने की चाहत अवश्य उनमें बनी रही जोकि स्वाभाविक है। संसार का प्रत्येक प्राणी
स्नेह चाहता है। उपेक्षित होकर या वीतरागी बनकर संसार मे रहना आसान नहीं होता।
सन्दीप तोमर ने आरम्भ के दिनों में सरलता से लोगों पर विश्वास किया
लेकिन कुछ लोगों ने इस विश्वास का गलत फायदा उठा कर उन्हें छला भी।
यह वह समय था जब भावुक मन का सन्दीप तोमर एक बेबाक संदीप तोमर में
परिवर्तित होने लगा। अपनी बेबाकी के पीछे अपने धराशाही होते प्रेम को छिपाने का
प्रयास करते हुए सन्दीप तोमर ने कलम का साथ पकड़ लिया और खूब लिखा।
दिल से निकले शब्द मन मे घर कर लेते हैं, यही हुआ उनकी रचनाओं के साथ और सन्दीप तोमर की ख्याति एक अच्छे
साहित्यकार के रूप में होने लगी। ख्याति बढ़ी तो कुछ प्रसंशक मिले तो कुछ ऐसे लोग
भी जो उनकी सफलता हजम नहीं कर पा रहे थे।
खरा- खरा बोलना तो संदीप तोमर के क्षेत्र की विशेषता थी तो भला
इससे वह अछूते क्यों रहते! लोगों की बातों का मुंहतोड़ जबाब देने की कोशिश करते
संदीप की छवि मुँहफट इंसान की बन गई। सन्दीप तोमर ने इस छवि को तोड़ने का प्रयास भी
नहीं किया क्योकि कहीं न कहीं यह छवि उन्हें अपने हित मे लगी।
इतना होने पर भी सन्दीप तोमर आज भी बेहद भावुक इंसान हैं। हमेशा
दूसरों की मदद के लिए तत्पर।
हर तस्वीर के दो रूख़ होते हैं। सन्दीप तोमर की तस्वीर के ये दो पहलू हैं। प्रेम की चाहत में छटपटाता भावुक मन कहीं न कहीं उनकी लेखनी का प्रेरणास्रोत बनकर उन्हें लिखते रहने के लिए उकसाता रहता है और संसार की कड़वी सच्चाई व संघर्षों का बेबाक होकर सामना करने की जिद उनके व्यक्तित्व को एक मजबूत स्वाभिमानी व्यक्ति का रूप देती है।
भोपाल मध्य प्रदेश
हिंदी दिवस पर
अमेरिका प्रवास के दौरान मैंने देखा, सनी वैली पब्लिक लाइब्रेरी में हिंदी की पुस्तकों का अच्छा संग्रह
है।
इन दिनों नये लेखकों ने वहाँ लोकप्रिय स्थान पाया है ।
क्योंकि हिंदी का प्रचार -प्रसार बढ़ रहा है ।
जहाँ तक मैंनें महसूस किया है स्थापित लेखक -लेखिकाओं की बजाय
नवोदितों की पुस्तके ज्यादा चाव से पढी़ जाती हैं ।
एक तो वे सामान्य हिंदी का प्रयोग ,दूसरे अंग्रेजी और हिंग्लिश का धड़ल्ले से प्रयोग करते है ।
यहीं उनकी सफलता और लोकप्रियता का कारक है ,क्योंकि वो आम बोलचाल की हिंदी है न कि शुद्ध साहित्यिक ,संस्कृतनिष्ठ ,जिसेपढ़ने के लिये डिक्शनरी खोलनी पडे़
।।
कुछ किताबों और लेखकों के नाम दे रही हूँ जो लोक प्रिय है ।
१-बनारस टाकीज़ .......सत्य व्यास
२-जिंदगी शायराना .....राजा नितिन परिहार
३-थ्री गर्लफ्रेंड्स .....संदीप तोमर
४- इस सराय मे ......प्रमोद त्रिवेदी
५- मसाला चाय ......दिव्यप्रकाश दुबे
६- बस इत्ती सी थी कहानी ......नीलेश मिसरा
७-भीगी आग .....विजय दुबे
और इनमें भी सबसे ज्यादा माँग बनारस टकीज़, मसाला चाय और थ्री गर्लफ्रेंड्स है ।
क्योंकि पढ़ते समय पाठक का सहज ,सरल प्रवाह बना रहता है । पंद्रह वर्ष पहले जब अमेरिका गयी थी तब लाइब्रेरी में पंचतंत्र ,और दादी नानी की कहांनियाँ छोड़ कर एक भी किताब नहीं थी और अब देख
कर सुखद आश्चर्य । इन पंद्रह वर्षों
में हमारी हिंदी ने भी विदेशों में भी अपनी पैठ बना ली है । इसका श्रेय मैं नवोदित लेखकों को दूँगी । हिंदी के प्रचार -प्रसार में महती योगदान के
लिये !!!
एक और खुशी की बात भी है हिंदी की सहयोगी भोजपुरी भी अपना स्थान
बना रही है भले धीरे से ही सही । इसका भी श्रेय उन भोजपुरी की शार्ट फिल्मों का है । इसका श्रेय भी "ललका गुलाब "को मिलना चाहिये । जय हिंदी ,हम हिंदी भाषी और हमारा हिंदुस्तान , लहराये अपना परचम ।
हेमलता श्रीवास्तव
मध्य
प्रदेश
सोशल
मिडिया से
कुछ
लोगो से मुलाकात नहीं होती लेकिन उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली होता है और इस
कदर प्रभावित कर जाता है कि हम उनके व्यक्तित्व में खुद को ढूंढने लग जाते हैं।
दिल में जज्बा हो कुछ क्र गुजरने का तो इन्सान मेहनत के दम पर समाज
की सोच बदल सकता है।
आप एक खास सख्सियत हैं जो दिन-रात, सुबह- शाम मेरे आस-पास हर जगह खुशबू की तरह चलते हो... सोचता
हूँ आपने ऐसा क्यों बना दिया मुझे... महका दिया आपने मुझे उस गलती को सुधारकर जो
मेरे लिए सबसे बड़ी बाधक थी.... उस तरफ अब लौटना भी नहीं चाहता .... ।
शब्द नहीं हैं मेरे पास आपके लिए संदीप तोमर जी।
खेमराज सिंघल (दौसा)
(स्टेशन मास्टर, दक्षिण रेलवे)
केरल
मैं
फेसबुक पर आपकी लघुकथाएं पढ़ रहा हूँ, ईमानदारी की बात तो ये है कि लघुकथा की तमीज
सिर्फ असगर वजाहत और संदीप तोमर के आलावा किसी के पास नहीं है। दोनों के पास विजन साफ़ है। बाकी लघुकथाकार अपनी किताब बेचने के
लिए तुष्टिकरण की नीति अपना रहे हैं। चारो तरफ राग दरबारी और राग जैजैवंती ही
सुनाई दे रहे हैं।
आलोक कुमार सतपुते
रायपुर
(छत्तीसगढ़)
भौतिक रूप के गुण से नायक बनना काफी आसान है लेकिन हीरो की तरह जीवन की सभी बाधाओं के खिलाफ खड़े होने में बहुत साहस लगता है। आपने हर विषम परिस्थिति के बावजूद अपने जीवन को गरिमा से जोड़ दिया है। आप वास्तव में एक असली हीरो हैं।
स्वाति सिंह
(प्रवक्ता, केंदीय विद्यालय)
पटना
मैंने आपकी लेखनी में तीक्ष्णता को महसूस किया है और आप मेरी नजर
में बहुत ऊपर हैं। आने वाले सालों में समकालीन लघुकथाकारों में आप एक विशिष्ट
दर्जा पाएंगे, ऐसा मेरा मानना है।
कान्ता राय
(लघुकथा लेखिका)
भोपाल
आपमें
एक बहुत बड़ा गुण है कि आप “सही” सीखने को तैयार रहते हैं। बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा रखते हैं। और सही जानकारी को समझकर,
स्वीकार भी दिल से करते हैं।
दीप्ति गुप्ता
पुणे
मेरे प्रिय मित्र श्री सन्दीप तोमर जी,
आप बहुमुखी प्रतिभासंपन्न हैं। पेशे से विज्ञान के शिक्षक हैं
परन्तु हिन्दी में साहित्य लेखन और पत्रकारिता में भी अद्भुत पकड़ रखते हैं।
समाजसेवा और राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय हैं। विचारधारा से कट्टर
मार्क्सवादी हैं जहाँ आपके मेरे बीच भारी मतभेद रहता है।
ह्रदय मानवीय गुणों से भरपूर और व्यवहार सैदव संतुलित रहता है।
वैचारिक मतभेद के बावजूद हमारे बीच प्रेम और परस्पर सम्मान की भावना सैदव विद्यमान
रहती है। आप बड़े बही के समान आदरणीय हैं।
सुदर्शन श्रीवास्तव
सिडनी, आस्ट्रेलिया
बधाई
प्रिय भाई संदीप जी।
प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पाखी’ के पुनर्प्रकाशन के शुरुआती दौर में ही
आपकी दो लघुकथाओं- “बटवारा” और “चिड़िया का मजहब” का प्रकाशन हुआ है। पत्रिका में
लघुकथा की वापसी आपकी लघुकथा से हो रही है। ये बहुत बड़ी बात है भाई। विधा के
स्वयंभू ‘धुरंधरो’ को आपने उनकी औकात दिखा दी। वे लोग पाखी में छपकर दिखाए तो
मानें?
जॉन मार्टिन
(चित्रकार और लघुकथा लेखक)
कलकत्ता
सन्दीप तोमर एक ऐसे प्रतिभाशाली लेखक हैं जिनकी रचनाओ में चाहे वह
उपन्यास हो, लघुकथा हो, कहानी हो या फिर कविता, सभी में कुव्यवस्था के प्रति
विद्रोह के तेवर तो मौजूद हैं ही, साथ ही उनमें प्रेम से लबालब लफ्जों की थिरकन भी
है। उनके पास कहन भी है और शब्द भी हैं। मैं उनमें अपार सम्भावनाएं देखता हूँ।
अशोक वर्मा
(प्रसिद्ध गजलकार और लेखक)
लाजवंती गार्डन, दिल्ली
सन्दीप
जी,
आप
अनुपम हैं। वास्तविकता है कि आप एक उत्तम
साहित्यकार होने के साथ ही मानवीय मूल्यों के धनी हैं। हम आपस में मिले या न
मिले...हमारे अंतर्मन का प्रत्येक राज हमारी कलम खोल देती है। आपकी लेखनी निरंतर
इसी प्रकार चलती रहे, समाज को नए से नया मार्ग देते रहिये।
राजेश प्रभाकर
अटेली , महेंद्रगढ़
हरियाणा
सन्दीप तोमर जी,
आप अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हैं, आपकी पुस्तक “थ्री गर्लफ्रेंड्स
वहाँ वेटिंग में रहती है। बेस्ट राइटर में वहाँ आपका नाम है। मै खुद चालीस दिन की
वेटिंग के बाद इसे इशू करवा पाई थी।
असल में वहाँ पूरे विश्व में प्रचलित भाषाओँ की पुस्तकें हैं। हर
लेखक की पुस्तक की दो कॉपी से अधिक सनी वैली पब्लिक लाइब्रेरी में नहीं रखते हैं।
हेमलता श्रीवास्तव (पाठिका)
इलाहबाद (उ.प्र.)
संदीप तोमर पर विभिन्न विद्व-जनों के विचार
# एक
मुस्तैद व्यक्तिव, जिसकी नज़र देश में मौजूद हर समस्या पर रहती है, देश में होने
वाली हर गतिविधि पर नज़र और उन पर संदीप तोमर के विचार उनकी क्रियाशीलता को दर्शाते
हैं। साथ ही वे एक
बेहतरीन लेखक हैं, मैंने उनकी कितनी ही रचनाएँ पढ़ीं हैं, जो मुझे बेहद पसंद आई,
उनकी रचनाएँ मार्मिक और जीवंत होती हैं।
--रानी भव्या (लेखिका,धनबाद झारखण्ड)
# संदीप
तोमर एक संवेदनशील व्यक्ति हैं, मैं उनकी प्रारंभिक रचनाओं का पाठक रहा हूँ, उनकी
रचनाओं में गहरी संवेदना प्रकट होती है, उनके अंदर मैं सम्पूर्ण कवि को पाता हूँ,
इससे भी बढ़कर वो एक बेहतरीन मित्र हैं, उनकी मित्रता को पाकर मैं अभिभूत हूँ।
--अरविन्द मिलन
(असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, बिहार)
# मैंने संदीप का बचपन देखा है,
उसका संघर्ष देखा है, उसकी कुछ भी कर गुजरने की जिद्द देखी है, हालाकि उसके लिए
जिन्दगी बहुत आसान नहीं थी,फिर भी रुकना उसका काम न था और इसके साथ ही देखा है
उसका जज्बा, किसी की मदद करने की उसकी मिशालें देखी हैं, याद आता है जब सरकारी
नौकरी छोड़ वह दिल्ली पढने चला आया था, तब शायद ही कोई था जिसने उससे निर्णय को सही
माना हो। आज जब उसकी गिनती एक कवि, एक विचारक, एक लघुकथाकार के रूप में होती है तो
फक्र होता है कि हाँ मैं उसके हर रूप, हर पक्ष की साक्षी हूँ, फक्र होता है इस
नामचीन की बड़ी बहन कहलाने में।
--पूनम चौहान (प्रिंसिपल, नई दिल्ली)
# संदीप तोमर जी
फेसबुक मित्रोँ मेँ से मेरे अति निकट हैँ। आप अच्छे कहानीकार, उससे कहीँ अधिक एक बेहतरीन उपन्यासकार हैँ, साहित्य के प्रति
इनका अगाध प्रेम दिखाई देता ही है, इनमेँ जहाँ तक लेखन का प्रश्न है मुझे सोचना
पड़ेगा कि कौन सा विषय इनसे अछूता है? ये सचमुच पात्र हैँ विशिष्ट साहित्यकारो की सूची को सुशोभित करने हेतु।
--उपेन्द्र मिश्र (अधिवक्ता एवं लेखक)
# श्री संदीप तोमर जी की विचारोत्तेजक लेख पठनीय होते हैं। आप बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न
हैं। पेशे से विज्ञान के शिक्षक हैं परन्तु हिन्दी में साहित्य-लेखन और पत्रकारिता
में भी अद्भुत पकड़ रखते हैं। समाजसेवा और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं।
विचारधारा से कट्टर कम्युनिस्ट हैं जहाँ मेरे उनके बीच बहुत भारी मतभेद रहता है।
हृदय मानवीय गुणों से भरपूर और व्यवहार सदैव सन्तुलित रहता है। वैचारिक मतभेद के
बावज़ूद हमारे बीच प्रेम और परस्पर सम्मान की भावना सदैव विद्यमान रहती है। आप बड़े
भाई के समान आदरणीय हैं।
-----सुदर्शन
श्रीवास्तव (शोधार्थी व विचारक, आस्ट्रेलिया)
# संदीप तोमर जी बहुत ही अच्छे
लेखक होने के साथ-साथ एक अच्छे समीक्षक भी है जो बिना भेदभाव के हमारे लेखन को
मार्गदर्शन देते है, अगर कमिंया हो तो सुधारने के लिए प्रेरित करते है और अगर रचना
अच्छी हो तो प्रोत्साहन भी देते है।
आशा है आप हमेशा यूं ही सदाबहार रहेंगे।
-------रजनी चतुर्वेदी
(लेखिका बीना, जिला-सागर म.प्र.)
वाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteकुछ लिखेंगे तो सम्मिलित केआर देंगे।
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