Friday, 16 April 2021

माँ लीला- व्यक्तित्व

 


"माँ लीला: एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व”


हमेशा सादे कपडे और हवाई चप्पल पहनने वाली माँ लीला को टिहरी बांध से विस्थापित हुए लोगो की आवाज़ के रूप में पूरे देश में जाना जाता है फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने में दक्ष माँ लीला को गढ़वाली बोलने वालो के बीच देखने पर यही लगता है कि वे टिहरी बाँध विस्थापितों के बीच की एक आम महिला हैं उनकी इस सफलता का श्रेय उनके सादे जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत को जीवन में उतारने को दिया जाना चाहिये

माँ लीला एक साधक हैं, एक स्व स्फूर्त कलाकर हैं। एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली माँ लीला ने सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में गहन शोध किया है।वे समाज को बहुत करीब से देखती हैं। वे आचार्य रजनीश (ओशो) की विचारधारा से प्रभावित हैंउन्होंने टिहरी बांध योजना से प्रभावित होने वाले लगभग सभी गांवों के लोगों को स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ा रही हैं वे बांध के विस्थापितों के लिए नए नए रोजगार सृजन केलिए उपाय खोजती रहती हैं


माँ लीला के बारे में लोग ये नहीं कह पाएंगे कि वे नारे लगा-लगाकर लोगो को उनके अधिकार दिलाने की लडाई लड़ रही हैं लेकिन वे टिहरी बांध से प्रभावित हर व्यक्ति को स्वावलंबन का पाठ पढ़ाती मिल जायेंगी. मात्र डेढ़-दो साल की अल्प अवधि में उन्होंने विस्थापित महिलाओं को वेस्ट मटिरियल से अनेक कसिदाकार्री सीखकर उनमे आत्म विश्वास भरा है।विस्थापित बस्ती में ही एक दूकान पर उनका बनाया सामान बेचा जाता है और उससे जो आय होती है, उसे सामान तैयार करने वालो में मुनाफे के रूप में बाँट दिया जाता है।  माँ लीला शांति के साथ काम करने में विश्वास करती हैंजब से इस पुनर्वास बस्ती में आई है तब से ही सक्रिय रही हैं लेकिन वे राजनीति से हमेशा दूर रहने में विश्वास करती हैं


उनकी अपील कितनी है इसका अंदाज़ा हर उस व्यक्ति को है जिसने उनके काम और जीवनचर्या को देखा है, मृदु आवाज लिए वो बहुत ही सरल और सहज तरीके से काम करने में विश्वास रखती हैं, पुनर्वास बस्ती की महिलाए और पुरुष छोटी-बड़ी समस्याए लेकर उनके पास आती हैं और माँ उनका समाधान इतनी आसानी से करती हैं कि लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। वे ज़्यादातर समय वहीं रहती हैं. वहां के स्थानीय लोगो लो शायद ही ये अहसास हो कि वे कभी दिल्ली से उनके बीच आई थीं। स्थानीय लोग उन्हें अपने बीच का ही समझते है और वही सम्मान उन्हें देते हैं।

उनका ये अनोखा आन्दोलन उन्हें अनशन, भूख हड़ताल या फिर धारणा प्रदर्शन के लिए नहीं उकसाता। ऐसा करके वे बिना वजह मौत के मुंह में चले जाने की मानसिकता पर विश्वास नहीं करती। वे जिन्दा रहकर साम्स्याओं का मुकाबला करने में विश्वास करती हैं। वे स्वावलंबन को सफलता और जीवन की बेहतरी की सबसे बड़ी सीढी मानती हैं।  
माँ लीला को किसी बड़े राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सम्मान की चाहत नहीं है।वे काम करने में विश्वास करती हैं। सबसे बड़ा सम्मान वे ध्यान को मानती हैं, ओशो ध्यान केंद्र में आने वाले लोग इस बात को प्रमाणित करते हैं कि वे एक ओजस्वी वक्ता, आध्यात्म, योग इत्यादि की बड़ी जानकार हैं, उनकी वाणी में अमृत है और जिव्हा पर नियंत्रण। उनका अध्यात्म उन्हें जियो और जीने दो पर चलने की प्रेरणा एटा है और ऐसा ही वे दूसरो को शिक्षा देती हैं।

माँ लीला एक सच्ची पर्यावरण प्रेमी भी हैं। टिहरी बांध परियोजना के लिए लगभग 280 मीटर ऊँची इस बाँध परियोजना से मध्य हिमालय का बड़ा हिस्सा डुबा। । टिहरी बाँध जैसी विस्थापन की अनुत्तरित समस्याएं और पर्यावरण का कभी सही नहीं होने वाला विनाश जिसमें हजारों, लाखों पेड़ काटें गए। इसके बारे में प्रकृति को समझने वाले वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् सहित लोग आंदोंलन करते रहे है। लेकिन माँ लीला ने इसका एक बेहतरीन रास्ता निकाला । उन्होंने ध्यान से जुड़े लोगो से बहुत कम चंदा लेकर अपने ध्यान केंद्र पर कुछ पोध तैयार की जिनपर उन्होंने चंदे से सहयोग देने वाले के नाम की कतराने लगाकार पेंट से उनके नाम लिख दिए हैं, इन पौधों को जल्दी ही अलग अलग जगह पर लगाये जाने की योजना है। इन पौधों के तने मोटे हो जाने पर इन पर लगी कतराने हटाकर स्थायी रूप से नाम लिख दिया जाएगा। ताकि पर्यावरण हितैषी लोगो के नाम से लोग परिचित हो सके। इसके पीछे एक उद्देश्य माँ लीला ये बताती हैं कि इससे अन्य लोगो में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा होगी और हम इस खुबसूरत पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरों, बाढ़, सुखा इत्यादि से बचा सकेंगे।  

वे किसी प्रकार की सरकारी या गैर सरकारी सहायता में विश्वास नहीं करती। मानव कल्याण के लिए मानव सेवा और मानव द्वारा सहायता को वे महत्व देती हैं,  उनका मानना है कि जो हो गया उसे तो बदला नहीं जा सकता, फिर विकास के रास्ते में रोड़े न अटका कर रास्ते ही बना लिए जाएवे कहती हैं कि विकास के बदले में चुकाई जाने वाली मानवीय क़ीमत के लिए वे कतई तैयार नहीं हैं लेकिन मात्र विरोध करने से भी तो कोई हल नहीं निकलता। अतः हमें बह्विशय के लिए स्वयं तैयार होना होगा। उनका अध्यात्म उन्हें ये ही सीख देता है।

माँ लीला बहुमुखी व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं, उन पर कला की विशेष कृपा हैं, विविध कलाओं में पारंगत माँ किसी भी वस्तु को प्रोग योग्य नहीं है ऐसा नहीं मानती, वे हर वस्तु से कुछ नया बनाए जाने की कोशिश करती हैं, उनके ध्यान केंद्र की साज-सज्जा से ये बात देखी समझी और पारखी जा सकती है।शहरी संस्कृति में जीवन का एक बाड़ा हिस्सा बिताने के बाद वे कैसा महसूस करती है इसके जबाब में उनका कहना है कि जीवन में शांति का होना बहुत आवश्यक है। ऊर्जा का ह्रास किसलिए? ऊर्जा को सहेजकर उसका सदुपयोग किया जाए। ध्यान से पुनः ऊर्जा संचित की जाए और काम को करते रहे।

वे एक अच्छी होस्पिटेलिटी में विश्वास करती हैं। आगंतुकों की सेवा में उन्हें प्रसन्ता का अनुभव होता है। कहा जा सकता है कि माँ  लीला एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हैं।   

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